डीएनए हिंदी: किसी भी अनुष्ठान के बाद हिंदू धर्म में आरती का महत्व विशेष रूप से बताया गया है. किसी भी तरह का अनुष्ठान बिना आरती के पूर्ण नहीं होती है. मान्यता के अनुसार किसी भी मंदिर में या घर में बने पूजा-घर में सुबह-शाम आरती की जानी चाहिए. शास्त्रों में भी विधिवत आरती का विस्तार से महत्व बताया गया है. लेकिन आरती में हम अज्ञानता की वजह से कुछ ऐसी गलतियां करते हैं जिससे हमें ही नुकसान उठाना पड़ता है. ऐसे में आरती से जुड़े कुछ दिलचस्प बातें जानना जरूरी है.
आरती करते समय दीपक घुमाने की संख्या भी शास्त्रों में निर्धारित की गई है. ऐसे में कुछ लोग बिना जाने आरती करते हैं जिससे वह न तो सही दिशा में आरती करते हैं और संख्या को भी समझ नहीं पाते हैं. बता दें चार बार आरती को सीधी दिशा में घुमाना चाहिए और दो बार ईश्वर की नाभि की आरती करना चाहिए. इसके साथ 7 बार भगवान के सम्पूर्ण अंग की आरती उतारनी चाहिए.
आरती समाप्त होने के बाद इस बात का ध्यान रखें कि आपने दोनों हाथों से उसे ग्रहण किया है. मान्यता के अनुसार जिस दीप को आरती में जलाया गया है उसमें ईश्वर की शक्ति समा जाती है. यही कारण है कि इस आशीर्वाद को सिर पर ग्रहण किया जाता है. विशेष बात यह भी है कि आरती करने से पूजा में किसी भी प्रकार की भूल-चूक माफ हो जाती है और भक्तों को आशीर्वाद मिलता है.
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ततश्च मूलमन्त्रेण दत्वा पुष्पांजलित्रयम् ।
प्रज्वालयेत् तदार्थ च कर्पूरेण घृतेन वा।
आरार्तिकं शुभे पात्रे विष्मा नेकवार्तिकम्।।
इसका अर्थ है की आरती करते समय हमेशा 1, 5, 7 या उससे अधिक बत्तियों का दीपक जलाना चाहिए. आरती के 5 अंग होते हैं जिनमें से प्रथम है दीपमाला, दूसरी है जलयुक्त संघ, तीसरी है धुले हुए वस्त्र, चौथी है आम और पीपल के पत्ते और पांचवा अंग है साष्टांग दंडवत प्रणाम. आरती में यह 5 अंक जरूर होने चाहिए.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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