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Grahan Sutak : सूर्य या चंद्र ग्रहण के समय भी बंद नहीं होते ये मंदिर, सूतक लगने पर भी करते हैं यहां पिंडदान

Grahan Sutak Kaal: सूतक काल में पूजा-पाठ करना अशुभ माना जाता है. हालांकि भारत में कुछ ऐसे भी मंदिर हैं जो ग्रहण के समय भी खुले रहते हैं. 

Grahan Sutak : सूर्य या चंद्र ग्रहण के समय भी बंद नहीं होते ये मंदिर, सूतक लगने पर भी करते हैं यहां पिंडदान

सूतक काल में भी खुले रहते हैं भारत के ये मंदिर

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डीएनए हिंदी: हिंदू धर्म (Hindu Dharma) में ग्रहण लगने को अशुभ माना जाता है. ग्रहण के दौरान कई कार्यों को करने की मनाही होती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भी ग्रहण लगने की घटना अशुभ मानी जाती है. जब भी सूर्य ग्रहण (Surya Grahan) या चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan) लगता है मंदिर को बंद कर दिया जाता है. ग्रहण लगने से पहले सूतक काल (Sutak Kal) शुरू हो जाता है. इस समय को भी पूजा-पाठ के लिए अशुभ माना जाता है. सूर्य ग्रहण में 12 घंटे और चंद्र ग्रहण में 9 घंटे पहले सूतक लग जाते हैं. भले ही ग्रहण के दौरान पूजा-पाठ करने की मनाही हो लेकिन भारत में कुछ ऐसे भी मंदिर हैं जो ग्रहण के समय भी खुले रहते हैं. 

यह मंदिर न सिर्फ ग्रहण के समय खुले रहते हैं बल्कि इन मंदिरों का महत्व भी इस समय बढ़ जाता है. आज हम आपको ऐसे ही मंदिरों के बारे में बताने वाले है जिनके कपाट ग्रहण काल के दौरान भी खुले रहते हैं. 

विष्णुपद मंदिर (Vishnupad Temple)
यह मंदिर बिहार के गया में स्थित है. इस मंदिर के सूर्य और चंद्र ग्रहण के समय भी कपाट खुले रहते हैं. विष्णुपद मंदिर की ग्रहण के समय और भी ज्यादा मान्यता बढ़ जाती है. यहां पर ग्रहण के समय पिंडदान करना शुभ माना जाता है. 

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महाकाल मंदिर (Mahakal Temple)
उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर भी ग्रहण के दौरान खुला रहता है. यहां पर ग्रहण के समय पर पूजा-पाठ और आरती के समय में अंतर आ जाता है. हालांकि ग्रहण के दौरान किसी को भी मंदिर में आने और दर्शन की मनाही नहीं होती है. 

लक्ष्मीनाथ मंदिर (Laxminath Temple)
लक्ष्मीनाथ मंदिर के कपाट सूतक काल में भी खुले रहते हैं. सूतक काल में भी मंदिर के कपाट खुले रहने से जुड़ी एक कथा है. इसी कथा के अनुसार मंदिर के कपाट खुले रहते हैं. कथा के अनुसार एक बार सूतक काल में जब मंदिर बंद था तो न भगवान की पूजा हुई थी और न ही भोग लगा था. उसी रात एक बालक मंदिर के सामने वाली हलवाई की दुकान से पाजेब देकर प्रसाद लेकर गया था. अगले दिन पता चला कि मंदिर से पाजेब गायब थी. यहीं बात हलवाई ने मंदिर के पुजारी को बताई. माना जाता है कि वह भूखा बच्चा और कोई नहीं खुद लक्ष्मीनाथ भगवान थे. तभी से मंदिर को सूतक और ग्रहण के दौरान भी बंद नहीं किया जाता है. 

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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