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Pitru Paksha in Brahmakumaris: तो ऐसे दानवीर कर्ण से शुरू हुआ पितृपक्ष, ब्रह्माकुमारीज में क्या हैं श्राद्ध का मतलब

Brahmakumaris में Pitru Paksha और Shraddh के माइने क्या हैं, क्या है इसका सही मतलब, दानवीर कर्ण की कहानी से कैसे जुड़ा है पितृपक्ष

Pitru Paksha in Brahmakumaris: तो ऐसे दानवीर कर्ण से शुरू हुआ पितृपक्ष, ब्रह्माकुमारीज में क्या हैं श्राद्ध का मतलब

कर्ण

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डीएनए हिंदी : Pitru Paksha and Shraddh 2022 in Brahmakumaris- अपने पितरों को याद करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने का सबसे शुभ समय पितृपक्ष (Pitru Paksha date) का होता है. वैसे तो हमारे पूर्वज हमेशा ही हमारे साथ होते हैं लेकिन हिंदू धर्म में पितृपक्ष और श्राद्ध के बहुत अहम मतलब हैं. इन 16 दिनों में अपने पितरों को याद करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनका तपर्ण किया जाता है, उनके नाम से पूजा पाठ होती है, ब्राह्मणों को भोजन खिलाया जाता है, इससे वे प्रसन्न होते हैं. ब्रह्माकुमारीज (Brahmakumaris in Hindi) में भी श्राद्ध और पितृपक्ष का एक खास महत्व है, आईए जानते हैं सीनियर राजयोगा टीचर बीके उषा (BK Usha) से कि आखिर गणेश चतुर्थी के बाद ही क्यों श्राद्ध शुरू हो जाते हैं और पितृपक्ष का असल मतलब क्या है. 

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क्या है श्राद्ध और पितृपक्ष का महत्व (Shraddh and Pitru Paksha 2022 in Brahmakumaris)

कहते हैं कि पितृपक्ष में कोई शुभ कार्य नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन श्राद्ध के 16 दिन बहुत ही शुभ होते हैं. गणेश चतुर्थी के बाद बाद ही श्राद्ध के दिन शुरू हो जाते हैं, इसका मतलब यह है कि गणेश अपने माता पिता को बहुत सम्मान करते थे, ऐसे में पितरों को और अपने माता पिता को सम्मान करना ही पितृपक्ष का असल मतलब होता है. गणेश चतुर्थी के बाद और नवरात्र (Navratri 2022) यानी शिव शक्तियों के आने से पहले के दिनों को श्राद्ध के दिन कहते हैं. चलिए जानते हैं आखिर कैसे शुरू हुआ पितृपक्ष

दानवीर कर्ण की कहानी (Karn ki Kahani in Hindi)

दानवीर कर्ण जब स्वर्ग जाता है और भोजन करने बैठता है तो उसकी थाली में सोना होता था,वो कुछ नहीं खा पाता. तभी वो इंद्र देवता के पास जाता है और पूछता है मैं कैसे खाऊं. तब देवता कहते हैं कि क्या तुमने पितरों की सेवा की थी, तुमने तो बस सोना ही दान किया, जो दान किया वही मिलेगा. तुम्हें कभी पूर्वजों के बारे में कुछ नहीं पता था. चलो जाओ अब तुम अगले 16 दिन तक अपने पूर्वजों की सेवा करो और दान करो, उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनके बारे में जानकारी लो, ब्राह्मणों को भोजन कराओ. खुद भी वही करो. इस विधि को खत्म करने के बाद जब वह स्वर्ग में जाता है तो उसे वही मिलता है जो उसने दान किया था. 

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इसका मतलब साफ है कि इंसान को वही प्राप्त होता है जो वो देता है. श्राद्ध एक निमित्त है श्रेष्ठ कर्म करने का. माता-पिता के संस्कारों के माध्यम से हमें प्रेरणा मिलती है, हम अच्छे कर्म करते हैं और शुभ संकल्प रखते हैं. इससे दूसरों को भी प्रेरणा मिलती है

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