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Bangladesh में इस वजह से हो रहा है आरक्षण विरोधी आंदोलन? अब तक 32 लोगों की मौत, देश में हिंसा का माहौल

बांग्लादेश में 1971 में हुए आजादी के संग्राम में शामिल परिवारों के सदस्यों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्राप्त है. छात्रों की तरफ से कहा गया है कि इस आरक्षण को फौरन खत्म किया जाए, और सरकारी नौकरियों में मेरिट के आधार पर चयन हो.

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Bangladesh में इस वजह से हो रहा है आरक्षण विरोधी आंदोलन? अब तक 32 लोगों की मौत, देश में हिंसा का माहौल

Bangladesh student protest

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पूरे बांग्लादेश में छात्रों की ओर से एक बहुत बड़ा आंदोलन चलाया जा रहा है. ये आंदोलन देश में लागू आरक्षण के खिलाफ चलाए जा रहे हैं. इसको लेकर बड़े स्तर पर आगजनी, पथराव और हिंसा की घटनाएं हुई हैं. इन घटनाओं में अभी तक 32 लोगों की मौत हो चुकी है. आंदोलनकारियों की तरफ से आरोप लगाया गया है कि देश में युवाओं के पास राजगार नहीं है. वो बेरोजगार घूम रहे हैं, और ऐसे में कोटा के तहत एक खास तबके को ही जॉब दिया जा रहा है, जबकि बड़ी आबादी को अनदेखा किया जा रहा है. छात्र पूरे देश में इस मुद्दे को लेकर लामबंद हो चुके हैं. बांग्लादेश इससे पहले भी हालिया सालों में इस तरह के आंदोलनों के जद में रह चुका है. आपको बताते चले कि वहां पर 1971 में हुए बांग्लादेश की आजादी के संग्राम में शामिल परिवारों के सदस्यों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्राप्त है. छात्रों की तरफ से कहा गया है कि इस आरक्षण को फौरन खत्म किया जाए, और सरकारी नौकरियों में मेरिट के आधार पर चयन होना चाहिए. 

पीएम हसीना ने कहा कि आरक्षण जारी रहेगा
वहीं देश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की तरफ से साफ कर दिया गया है कि किसी भी सूरत में इस आरक्षण को खत्म नहीं किया जाएगा. साथ ही इस आंदोलन को लेकर जारी हिंसा में शामिल लोगों को सख्त से सख्त सजा दी जाएगी. आरक्षण को लेकर एक पक्ष ये भी है कि इसका सबसे बड़ा लाभार्थी तबका सत्ताधारी शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग के समर्थक हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि 71 में हुई आजादी की लड़ाई में आवामी लीग की तरफ से ही बढ़-चढ़कर इसमें हिस्सा लिया गया था. इसी पार्टी ने देश को पाकिस्तान से आजाद करवाने में बांग्ला लोगों की अगुवाई की थी. आवामी लीग के समर्थकों को बड़े स्तर पर सारकारी नौकरियां मिलने से बाकी लोगों में भारी आक्रोश व्याप्त है. पूरे देश में हिंसा के माहौल को देखते हुए शेख हसीना ने कहा कि इन आंदोलनकारियों से उनकी जान को खतरा है.  

2018 में भी इसको लेकर हो चुका है आंदोलन
इसको लेकर 2018 में भी बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए थे, उस वक्त छात्र और शिक्षक दोनों लामबंद थे, और प्रदर्शन पूरे चार महीने तक चला था. भारी विरोध को देखते हुए शेख हसीना ने उस वक्त इसे हटाने का ऐलान किया था. लेकिन इसे पूरी तरह से हटाया नहीं गया था. इस साल जून में सरकार की तरफ से इसे बरकरार रखने की बात कही गई. उसके बाद से ही मामला फिर से गरमा गया, और इतने बड़े और हिंसक आंदोलन में तब्दील हो गया.

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