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यूपी में एक-दूसरे को बीजेपी की टीम बी बताने में क्यों जुटीं राजनीतिक पार्टियां?

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं. सियासी लड़ाई, बीजेपी बनाम अन्य विपक्षी पार्टियों पर शिफ्ट हो गई है.

यूपी में एक-दूसरे को बीजेपी की टीम बी बताने में क्यों जुटीं राजनीतिक पार्टियां?

अखिलेश यादव, योगी आदित्यनाथ, प्रियंका गांधी और मायावती (फाइल फोटो)

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डीएनए हिंदी: उत्तर प्रदेश की चुनावी बिसात सज चुकी है. सूबे की सत्ता हासिल करने के लिए राजनीतिक पार्टियां एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं. समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से लेकर कांग्रेस और अन्य छोटी पार्टियों तक, सब की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि कैसे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को सूबे की सत्ता से बाहर किया जाए. राजनीतिक पार्टियां जानती हैं कि सूबे में लड़ाई सिर्फ 'मोदी-योगी' की जोड़ी से है.

अगर ऐसा न होता तो सभी सियासी पार्टियां एक-दूसरे को बीजेपी की 'टीम बी' नहीं बतातीं. हालात ऐसे बन रहे हैं कि पार्टियां खुद साबित कर दे रही हैं कि चुनाव बीजेपी के ही इर्द-गिर्द लड़ा जाना है. योगी-मोदी की लहर में भी राजनीतिक पार्टियों के आरोप-प्रत्यारोप हैरान कर देने वाले हैं. समाजवादी पार्टी का कहना है कि बसपा बीजेपी की टीम बी है. बसपा का कहना है कि सपा, बीजेपी की टीम बी है. कांग्रेस को लगता है कि सपा-बसपा दोनों बीजेपी की टीम बी है. 

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) को डंके की चोट पर दूसरी राजनीतिक पार्टियां बीजेपी की 'टीम बी' बताती हैं. वजह यह है कि जितना मुस्लिम तुष्टीकरण की बात असदुद्दीन ओवैसी चुनावी सभाओं में करेंगे, हिंदू वोट बीजेपी के खेमे में चलते चले जाएंगे. बिहार में यही प्रयोग असुदुद्दीन ओवैसी करने में सफल रहे हैं. AIMIM के 5 विधायक बनने के बाद दूसरी राजनीतिक पार्टियों ने ओवैसी को टीम बी ही मानना शुरू कर दिया है.

सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव, बसपा सुप्रीमो मायावती, यूपी कांग्रेस चीफ अजय कुमार लल्लू से लेकर सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर तक, सबकी जुबान पर यही है कि बीजेपी को सूबे की सत्ता से बाहर करना है. सबको लगता है कि बीजेपी यूपी में सुप्रीम पार्टी बन गई है कि जिसके खिलाफ ही सारी लड़ाई है. 

कहां से आया 'टीम बी' का टर्म?

राजनीति में हर दिन नए टर्म गढ़े जाते हैं. यह टर्म खुद सपा के अध्यक्ष यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गढ़ा है. अखिलेश यादव ने एक कार्यक्रम के दौरान यह कह दिया था कि जो कांग्रेस है वही बीजेपी है. जो बीजेपी है वही कांग्रेस है. कांग्रेस को यह बात नागवार गुजरी. कांग्रेस इकलौती पार्टी है जो पूरे देश में बीजेपी के खिलाफ लड़ रही है. दोनों की राजनीतिक धुरी भी अलग-अलग है. ऐसे में कांग्रेस ने पलटवार करते हुआ कहा कि जो भाजपा है वही सपा है. मायावती यूपी की सियासी जमीन पर अब भले ही कम नजर आएं लेकिन उन्होंने साफ इशारा कर दिया है कि इस आरोप-प्रत्यारोप के खेल में वे भी एक खिलाड़ी हैं. उन्होंने कहा कि सपा और भाजपा की राजनीति एक-दूसरे के पोषक और पूरक हैं. 

इन दोनों पार्टियों की सोच जातिवादी व साम्प्रदायिक होने के कारण इनका आस्तित्व एक-दूसरे पर आधारित रहा है. इसी कारण सपा जब सत्ता में होती है तो भाजपा मजबूत होती है जबकि बीएसपी जब सत्ता में रहती है तो भाजपा कमजोर. -मायावती
 

मायावती ने यह बयान तब दिया है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए उन्होंने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था. वही सपा जिससे मायावती को 1995 में गेस्ट हाउस कांड के बाद नफरत हो गई थी. लोकसभा चुनावों में हुआ यह गठबंधन चुनावी नतीजे के तत्काल बाद 23 जून 2019 को एक बार फिर टूट गया था. बसपा को गठबंधन के कमाल से कुल 10 सीटों पर जीत मिल गई, वहीं सपा 5 सीटों पर सिमट गई. सपा के वोटर बसपा के साथ गए, बसपा के वोटरों ने एक सिरे से सपा को खारिज कर दिया. अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव सपा के गढ़ कन्नौज में चुनाव हार गईं. वही बसपा अब सपा को बीजेपी की पूरक बता रही है.

किसने किसको कहा है टीम बी?

सपा, बसपा, कांग्रेस ने एक-दूसरे को बीजेपी का सहयोगी कहा है. ट्विटर के आरोप-प्रत्यारोप सूबे की राजनीतिक की दशा और दिशा तय कर रहे हैं. दरअसल अखिलेश यादव ने कहा था कि बीजेपी और कांग्रेस के बारे में सपाइयों का यही मानना है कि जो कांग्रेस है वही भाजपा है और जो भाजपा है वही कांग्रेस है. अखिलेश यादव के बयान के बाद कांग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से शायराना अंदाज में एक ट्वीट आया, जिसमें योगी आदित्यनाथ के साथ अखिलेश यादव और सपा सरंक्षक मुलायम सिंह यादव की तस्वीर पोस्ट की गई. पक्ष-विपक्ष की इस तस्वीर में सीएम योगी, अखिलेश यादव और मुलायम सिंह साथ खड़े हैं.
 

कांग्रेस का ट्वीट है- जी नई हवा है, जो भाजपा है वही सपा है. इसलिए मुलायम सिंह जी का साथ मोदी जी को मिल रहा है. बिलरिया गंज और आजम खान पर आपका मुंह नहीं खुल रहा है. जनता परेशान है, और ड्राइंग रूम में बैठे बैठे आपका भाजपा के साथ फिक्स्ड मैच चल रहा है.

बसपा ने भी अखिलेश यादव के बयान को भुनाने की कोशिश की. अखिलेश यादव ने हरदोई में मोहम्मद अली जिन्ना पर एक विवादित बयान दिया था. उस पर सवाल उठाते हुए मायावती ने 1 नवंबर को ट्वीट किया था, 'सपा मुखिया द्वारा जिन्ना को लेकर कल हरदोई में दिया गया बयान व उसे लपक कर भाजपा की प्रतिक्रिया यह इन दोनों पार्टियों की अन्दरुनी मिलीभगत व इनकी सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. जिससे यूपी विधानसभा आमचुनाव में माहौल को किसी भी प्रकार से हिन्दू-मुस्लिम करके खराब किया जाए. सपा व भाजपा की राजनीति एक-दूसरे के पोषक व पूरक रही है. इन दोनों पार्टियों की सोच जातिवादी व साम्प्रदायिक होने के कारण इनका आस्तित्व एक-दूसरे पर आधारित रहा है. इसी कारण सपा जब सत्ता में होती है तो भाजपा मजबूत होती है जबकि बीएसपी जब सत्ता में रहती है तो भाजपा कमजोर.'

जब सब बीजेपी की टीम बी तो लड़ाई किससे?

उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा सूबा है जो तय करता है कि देश की बागडोर किसके हाथों में होगी. हो भी क्यों न, यहां 80 लोकसभा सीटें हैं. जिसके सांसद ज्यादा, उसकी देश पर सत्ता. कहा भी जाता है कि जिस पार्टी ने यूपी जीती, केंद्र सरकार बनाने में भूमिका भी उसी की होगी. सूबे की सियासत यही कहती है. राज्य में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सरकार है और केंद्र में भी. यूपी में एक बार सियासी बिसात बिछ गई है. विधानसभा चुनाव नजदीक हैं. जब सब राजनीतिक पार्टियों को यही लग रहा है कि विधानसभा चुनावों में भी लड़ाई बीजेपी से है. सपा, बसपा और कांग्रेस ने खुद को द्वीतियक पार्टियों के तौर पर पेश किया है. राजनीति के जानकारों का कहना है कि पार्टियों के आरोप-प्रत्यारोपों का प्रत्यक्ष लाभ ऐसी स्थिति में बीजेपी को मिलना तय है. 
 

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