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DNA TV Show: इजरायल-हमास युद्ध में भी महाशक्तियों की बात अनसुनी, क्या ये चंद देशों की दबंगई खत्म होने का संकेत?

Israel Hamas War Updates: हमास के भयानक हमले के बाद अब इजरायल पूरे फिलिस्तीन को धूल का ढेर बनाने पर आमादा है. उसने संकेत दिया है कि किसी का दखल बर्दाश्त नहीं करेगा. क्या यह उन दिनों की विदाई का एक और संकेत है, जब दुनिया में पत्ता भी कुछ चुनिंदा देशों की मर्जी से हिलता था.

DNA TV Show: इजरायल-हमास युद्ध में भी महाशक्तियों की बात अनसुनी, क्या ये चंद देशों की दबंगई खत्म होने का संकेत?

DNA TV Show

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डीएनए हिंदी: Israel Hamas Latest News- इजरायल के कब्जे से फिलिस्तीन के दावे वाले इलाके छुड़ाने के लिए आतंकी समूह हमास ने 'अल-अक्सा स्टॉर्म' ऑपरेशन शुरू किया है. शनिवार 7 अक्टूबर को हमास ने 20 मिनट में 5 हजार रॉकेट इजरायल पर दागकर इस युद्ध का आगाज किया. अब तक करीब 1,000 इजरायली नागरिक मारे जाने की खबर है. बदले में इजरायल ने हमास के खात्मे के लिए गाजा पट्टी को धूल का ढेर बनाने की तैयारी कर ली है. इजरायल की एयर फोर्स रात-दिन गाजा पट्टी पर बम बरसा रही है. माना जा रहा है कि गाजा पट्टी महज खंडहर इमारतों का रेगिस्तान रह जाएगा. सबसे बड़ी बात ये है कि इस हमले के साथ ही साथ, इजरायल ने पूरी दुनिया को ये संदेश भी दिया है कि, इस बार किसी का दखल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. गाजा पट्टी की ताज़ा तस्वीरें, बहुत डरावनी हैं. इतिहास गवाह है कि जब-जब इजरायल पर हमले हुए हैं, तब-तब उसने भयानक जवाबी हमले किए हैं. केवल यही नहीं, इजरायल ने इन हमलों में जीत के इनाम के तौर पर, और ज्यादा जमीन पर भी कब्जा किया है यानी हर बार अरब देशों को हार मिली है.

पिछले कुछ समय में इजरायल, भारत, चीन, रूस, ये ऐसे देश रहे हैं, जिन्होंने अपने देश का हित सोचते हुए फैसले लिए हैं. कुछ दशक पहले तक ऐसा नहीं होता था. दुनिया पर अमेरिका और यूरोप के देशों का दबदबा था. सीमा विवाद हो, छोटी-मोटी लड़ाइयां हों, अधिकारों से जुड़े मसले हों यानी दो देशों के बीच में कोई भी विवाद हो, उसमें अमेरिका और यूरोपीय देश, दबंग की भूमिका में रहते थे. ये लोग प्रतिबंध लगाया करते थे, लेकिन पिछले कुछ समय में ऐसा देखा गया है कि अमेरिका और यूरोपीय देशों की ये दबंगई, खत्म होती जा रही है. एक तरह से दुनिया में शक्ति का केंद्र अमेरिका और यूरोप से हटकर, अन्य ताकतवर देशों की तरफ मुड़ रहा है. इसके हाल ही में कई उदाहरण मिले हैं.

रूस ने नहीं सुनी अमेरिका और उसके दोस्तों की बात

रूस का उदाहरण ही ले लीजिए. वर्ष 1939 में दूसरे विश्व युद्ध के बाद, किसी भी देश ने बड़े पैमाने पर किसी अन्य देश पर कब्जे की जंग नहीं लड़ी, लेकिन अब पिछले करीब 18 महीनों से रूस ने यूक्रेन पर कब्जे की जंग छेड़ दी. ये अलग बात है कि रूस इस जंग को Special Military Operation बता रहा है, लेकिन पूरी दुनिया जानती है कि यूक्रेन में रूस क्या करना चाहता है. हमेशा की तरह रूस पर अमेरिका और यूरोपीय देशों ने प्रतिबंध लगाए हैं, लेकिन इसके बावजूद रूस पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि उसे अपने मित्र देशों से इतनी मदद मिल रही है,कि वो इस जंग को जारी रख सके.

भारत ने भी दिखाया दुनिया में शक्ति का केंद्र बदल रहा

दुनिया में शक्ति का केंद्र बदल रहा है, New World Order यानी नई विश्व व्यवस्था बनती दिख रही है. इसमें भारत भी शामिल है. भारत में राष्ट्रवाद की लहर है. देश के नागरिक, देश के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हैं. राष्ट्रवाद की लहर, ना सिर्फ आम नागरिकों में दिखी है, बल्कि देश की सत्ता चला रहे शासकों में भी इसकी झलक दिखाई दी है. जून में Canada के अंदर खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर मारा गया था. Canada के प्रधानमंत्री Justine Trudeau ने इस खालिस्तानी आतंकी की मौत का जिम्मेदार, भारत को बता दिया था. Justine Trudeau को लगा था, कि भारत पर आरोप लगाने से, वो दबाव में आ जाएगा. Canada को लगा था कि इस दबाव की वजह से भारत झुकेगा, लेकिन ये दबाव Canada को उल्टा पड़ गया. इस मुद्दे पर भारत के पलटवार ने दुनिया को Canada का दूसरा चेहरा दिखाया. भारत ने अपने सबूतों से दुनिया को ये बताया कि Canada आतंकवादियों और विदेशी अपराधियों को संरक्षण देने वाला देश है. भारत के पलटवार के बाद Canada को झुकना पड़ा.

चीन ने ताइवान पर दिखाया हुआ है सबको ठेंगा

चीन ने ताइवान को लेकर, विश्व की ना सुनने की रणनीति अपनाई हुई है, जबकि आज चीन दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है. इसे शक्तिशाली देश बनाने में अमेरिका का ही हाथ था. वर्ष 1979 में अमेरिका ने Communist चीन के साथ संबंध सुधारने के लिए कई कदम उठाए थे. अमेरिका ने Communist चीन को ना सिर्फ मान्यता दी, बल्कि संयुक्त राष्ट्र में चीन को स्थाई सदस्य के तौर पर शामिल करने का पक्ष लिया. वर्ष 1949 से 1969 तक अमेरिका ने केवल ताइवान से संबंध रखे थे. यही नहीं अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ताइवान को सीट दिलवा दी थी. हालांकि 1980 के बाद हालात बदले तो अमेरिका की मदद से चीन की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ी. अमेरिका मानता था कि चीन के साथ उसके संबंध बेहतर होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अब विश्व व्यवस्था बदलने का असर ये है कि ताइवान के मामले में चीन ने अमेरिकी धमकियों को भी नकार दिया है.

अब इजरायल भी दिखा रहा यही बदलाव

दुनिया के बदलते World Order का एक उदाहरण इजरायल भी है, जिसने खुद पर हुए हमास के हमलों का करारा जवाब दिया है. इस्लामिक आतंकी संगठन हमास के गढ़ गाज़ा पट्टी में सिर्फ तबाही नजर आ रही है. इजरायल ने भी हमास से निपटने के लिए अमेरिका की तरफ मुंह नहीं किया, बल्कि उसने अमेरिका समेत सभी देशों को बता दिया कि हमास को उसकी गलती की बड़ी सजा भुगतनी पड़ेगी.

साल 2020 से बदल गई है दुनिया की कूटनीति

  • दरअसल ये बदलाव वर्ष 2020 के बाद से आया है. दुनिया की शक्ति के केंद्र की कूटनीति को हम समझना चाहें, तो हमें बदलता World Order समझना होगा.
  • वर्ष 1945 से लेकर वर्ष 2020 तक दुनिया की शक्ति का केंद्र तीन बार बदलता देखा गया है.
  • वर्ष 1945 से लेकर 1990 तक दुनिया की शक्ति Bi-Polar थीं, यानी शक्ति के दो केंद्र थे.
  • इसमें एक तरफ था NATO और दूसरी तरफ था Soviet Union.
  • ये ऐसा वक्त था जब दूसरे विश्व युद्ध के बाद, इन दोनों महाशक्तियों में शीत युद्ध जारी रहा.
  • इसके बाद वर्ष 1990 से 2020 तक वैश्विक शक्ति Uni-polar हो गई यानी शक्ति का केवल एक केंद्र अमेरिका बन गया था.
  • इस दौरान Soviet Union का विघटन हो गया था. कई स्वतंत्र देश भी बन गए थे, जिससे रूस कमजोर पड़ गया.
  • वर्ष 2020 के बाद से अब वैश्विक शक्ति Multipolar हो गई है यानी शक्ति के कई केंद्र हो गए हैं.

क्यों खत्म हो गई अमेरिकी दादागिरी

वर्ष 1990 से 2020 तक अमेरिका ने अफगानिस्तान और इराक में दो नाकाम युद्ध लड़े. ये दोनों लड़ाइयां उसके लिए महंगी साबित हुई. इराक के मामले में अमेरिका की छवि भी खराब हुई और अफगानिस्तान में आखिरकार अमेरिका को तालिबान के आगे झुकना पड़ा. उसे आखिरकार अफगानिस्तान छोड़कर लौटना पड़ा. इन युद्धों से अमेरिका कमजोर होता गया. अमेरिका के कमजोर होने की वजह से Multipolar World Order की स्थिति बन गई है. शक्ति के इन नए केंद्रों में भारत, इजरायल, चीन, रूस, तुर्की, ईरान और ब्राजील जैसे कई देश हैं. ये देश अमेरिका और उसके सहयोगियों की फिक्र किए बिना, अपने फैसले ले रहे हैं.

अमेरिका की दूसरे के विवादों की अनदेखी भी है कारण

ऐतिहासिक तौर पर ऐसा देखा गया है, कि दुनिया में किन्ही दो देशों के बीच विवाद की स्थिति को निपटाने के लिए अमेरिका का दखल जरूर हुआ है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका ने ऐसा करना बंद कर दिया है. यूक्रेन पर रूस का हमला हो या फिर अर्मेनिया और अजरबैजान का युद्ध, दोनों में ही अमेरिका और उसके सहयोगियों ने सीधी Entry नहीं ली है. यही वजह है कि दुनियाभर के देश ये मानकर चल रहे हैं, उनके विवाद, उनके अपने हैं, और उन्हें खुद ही उनका हल निकालना होगा. यही वजह है कि अब दुनिया नए World Order की ओर बढ़ रही है, जिसमें शक्ति का केंद्र अमेरिका और उसके सहयोगियों से हटकर, दुनिया के कई देशों में बन रहा है.

हमास को ईरान के समर्थन का भी यही कारण

इजरायल पर आतंकी संगठन हमास का अब तक का सबसे बड़ा हमला भी इसी बदलते World Order की वजह से है. ये बात लगातार सामने आ रही है कि आतंकी संगठन हमास के हमले के पीछे ईरान का हाथ है. कई रिपोर्ट्स में ये कहा जा रहा है कि ईरान, हमास की मदद कर रहा था. अब सवाल ये है कि अचानक ईरान ने हमास के जरिए इजरायल पर आतंकी हमले क्यों करवाए, और इसके पीछे उसका मकसद क्या है?

दरअसल, ईरान खुद को पश्चिम एशिया का एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय शक्ति मानता है. ईरान मानता है कि नए World Order में उसका भी एक अहम स्थान है. वैसे तो ईरान, कई दशकों से अमेरिका के आर्थिकि प्रतिबंध झेल रहा है, इस वजह से इसकी अर्थव्यवस्था खराब है, लेकिन इसके बावजूद इस क्षेत्र में ईरान एक बड़ी सैन्य शक्ति है. यमन, सीरिया, लेबनान और फिलिस्तीन जैसे देशों में कई कट्टर संगठन हैं, जिनको ईरान का समर्थन हासिल है. इन हिंसावादी संगठनों के जरिए ईरान, अपना महत्व, दिखाता है.

भारत-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर में ईरान का ना होना भी कारण 

भारत में हुए G-20 सम्मेलन में India Middle East Europe Economic Corridor बनाए जाने की घोषणा हुई. इस Corridor के बनने से भारत, UAE, Saudi Arab, Jordon, Israel और यूरोपीय देशों को काफी लाभ होगा. यही नहीं, ये Corridor यूरोप, इजरायल और भारत के मैत्री संबंध UAE, Saudi Arab और Jordon जैसे देशों से मजबूत कर सकता है. जिन क्षेत्रों से ये Corridor गुजरना है, इस क्षेत्र में ईरान भी एक शक्ति है. ईरान को इस Corridor से कोई लाभ नहीं होने वाला है. Experts का मानना है कि इसी वजह से ईरान ने इजरायल पर हमास के जरिए हमला करवाया. इसके संकेत भी मिले थे.

पिछले महीने UNGA की एक बैठक में इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजमिन नेतन्याहू ने Corridor को लेकर ईरान और फिलिस्तीन के विरोध में बहुत सी बातें कही थीं. माना जा रहा है कि इस वजह से ईरान ने हमास के जरिए इजरायल पर हमला करवाया, ताकि UAE, Saudi Arab और Jordan जैसे देशों से विवाद शुरू हो जाए. ईरान ने आतंकी संगठन हमास के इस हमले के जरिए, इस क्षेत्र में अपनी मौजूदगी और शक्ति का संदेश दिया है.

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