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Punjab Politics: 'एक परिवार-एक टिकट' के सिद्धांत पर SAD, क्या बादल परिवार की छत्रछाया से निकल सकेगा बाहर?

Punjab Politics: पंजाब में आम आदमी पार्टी का उदय, अकाली दलों के लिए अच्छा नहीं रहा है. शिरोमणि अकाली दल की स्थिति तो बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ने के बाद और खराब हो गई है. शीर्ष नेतृत्व ने पार्टी की कार्यशैली में कुछ अहम बदलाव किए हैं.

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Punjab Politics: 'एक परिवार-एक टिकट' के �सिद्धांत पर SAD, क्या बादल परिवार की छत्रछाया से निकल सकेगा बाहर?

सुखबीर सिंह बादल. (फाइल फोटो)

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डीएनए हिंदी: सियासत में कब, कौन एक चूक से हाशिए पर पहुंच जाए कहा नहीं जा सकता है. पंजाब की राजनीति (Punjab Politics) की धुरी जिस सियासी पार्टी के इर्द-गिर्द कभी घूमती थी, उसका हाल सबसे बुरा हो गया है. शिरोमणि अकाली दल (SAD) देखते ही देखते महज तीन सीटों पर सिमट गई है. जिस बादल परिवार की राज्य में तूती बोलती थी, वही बादल परिवार जनता की नजरों से उतर चुका है. न किसान आंदोलन के समर्थन में उतरने से बात बनी, न ही भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन (NDA Alliance) के साथ छोड़ने से. परिवारवाद के कलंक से जूझ रहे शिरोमणि अकाली दल ने रणनीति बना ली है कि कैसे दोबारा पंजाब में अपनी जड़ें मजबूत करनी हैं.

खोए हुए अस्तित्व की तलाश में शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने शुक्रवार को कई स्तर के संगठनात्मक सुधारों का ऐलान किया है. अन्य अकाली गुट हमेशा से शिअद पर परिवारवादी होने का आरोप लगाते थे. अब पार्टी ने  यह तय कर लिया है कि 'एक परिवार, एक टिकट' के सिद्धांत पर पार्टी आगे बढ़ेगी. सिर्फ यही नहीं, पार्टी नेतृत्व ने यह भी फैसला किया है कि आधे उम्मीदवार 50 साल की उम्र से कम होंगे. पार्टी अब युवा चेहरों पर दांव खेलेगी. 

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क्यों सुखबीर बादल ने बदली है पार्टी के लिए रणनीति?

शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल यह भांपने में कामयाब हो गए हैं कि अगर वह परिवारवाद के धब्बे को नहीं मिटाएंगे तो उनकी पार्टी दोबारा अस्तित्व में कभी नहीं आएगी. दूसरे अकाली गुट भी लगातार अगाह कर रहे थे कि अकाली दलों को लोग बादल परिवार की कठपुतली समझ रहे हैं. छोटो-छोटे अकाली दलों की नाराजगी अगर शिरोमणि अकाली दल नजरअंदाज करती तो पार्टी का रहा-सहा जनाधार भी चला जाता. 

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बादल परिवार के पक्ष में न तो पंजाब विधानसभा चुनावों के नतीजे गए, न ही उन्हें किसी आंदोलन का फायदा मिला. अकाली दल के कैडर ही उनसे नाराज हो गए थे जिसकी वजह से ग्राउंड पर स्थितियां और बुरी हो गई हैं. सुखबीर सिंह बादल ने वादा किया है कि अगर अगले चुनाव में शिरोमणि अकाली दल सत्ता में वापसी करता है तो राज्य और जिला स्तर पर अध्यक्ष पद सिर्फ कार्यकर्ताओं को सौंपे जाएंगे.

भाई-भतीजावाद से परहेज करेगा अकाली दल

शिरोमणि अकाली दल ने फैसला किया है कि किसी भी कीमत पर सांसद और विधायकों के परिजन राज्य और जिला बोर्डों के अध्यक्ष नहीं बनेंगे. पार्टी का अध्यक्ष सिर्फ 2 बार नेतृत्व कर सकता है. अगले कार्यकाल के लिए उसे 5 साल इंतजार करना होगा. 

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संविधान में बदलाव करेगा अकाली दल

अभी तक शिअद का संविधान ऐसा नहीं था, जैसी रणनीति सुखबीर सिंह बादल ने बनाई है. पार्टी ने अभी तक अपने संविधान में बदलाव नहीं किया है. यह मौखिक ऐलान है जिसे बदलने की जरूरत पड़ने वाली है. सुखबीर सिंह बादल साल 2008 से ही अध्यक्ष पद पर बने हुए हैं. अगर नए फैसले लागू होते हैं कि सबसे पहले उन्हें ही अपने पद से इस्तीफा देना होगा. 

बादल परिवार की थाती रहा है अकाली दल 

शिरोमणि अकाली दल की कमान कभी बादल परिवार से दूर नहीं गई. 2007 तक सुखबीर बादल के पिता प्रकाश सिंह बादल के पास यह पद था. मार्च 2022 में हुए पंजाब विधानसभा चुनावों के परिणाम के बाद शिअद सिमट गई थी. बादल परिवार एक भी सीट निकालने में कामयाब नहीं हुआ था. एक समिति की सिफारिश पर पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने शिअद संगठन को ही भंग कर दिया था. समिति का कहना था कि सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि पार्टी से कहां चूक हुई और क्यों किसी भी आंदोलन का असर पार्टी के हित में नहीं बदला.

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नए सिरे से खुद को जिंदा करने में जुटा शिअद

पंजाब विधानसभा में कुल 117 सीटे हैं. सभी विधानसभाओं पर शिरोमणि अकाली दल नए सिरे से संगठनात्मक नियुक्ति करने वाला है. सुखबीर सिंह बादल ने भी साफ कर दिया है कि पार्टी में सगठनात्म बदलाव 30 नवंबर तक पूरे कर लिए जाएंगे. शिरोमणि अकाल दल को एक बार फिर से उम्मीद है लोकसभा चुनाव 2024 में अकाली दल, खुद को दोबारा प्रासंगिक साबित कर सकेगी. अभी तक के रुझान ऐसा इशारा नहीं करते हैं कि अकाली दल के हालात बदलने वाले हैं.

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