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China vs Taiwan: क्या है ताइवान का इतिहास, कैसे यह देश बना चीन और अमेरिका के टकराव की वजह?

China vs Taiwan जंग आज की नहीं बल्कि काफी पुरानी है लेकिन इन दोनों ही देशों के टकराव की वजह वन चाइना पॉलिसी मानी जाती है. चीन ताइवान से टकराव के चलते ही अमेरिका पर भी भड़का हुआ है.

China vs Taiwan: क्या है ताइवान का इतिहास, कैसे यह देश बना चीन और अमेरिका के टकराव की वजह?
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डीएनए हिंदी: अमेरिकी (US) हाउस आफ रीप्रजेंटेटिव की स्पीकर नैंसी पेलोसी (Nancy Pelosi) की ताईवान यात्रा के बाद लगातार चीन का आक्रामक रुख सामने आ रहा है. चीन ताईवान की सीमा पर लगातार युद्धाभ्यास (China vs Taiwan) कर ताइवान को डराने की कोशिश कर रहा है. चीन की सेनाएं इस युद्धाभ्यास में अपने आधुनिक हथियारों और विमानों का इस्तेमाल कर रही हैं. इस नाराजगी की वजह यह है कि चीन ताइवान को अपना हिस्सा ही मानता है. 

क्या है ताइवान का इतिहास

ताइवान की बात करें तो 1949 में चीन से अलग हुआ फॉर्मोसा अब ताइवान के नाम से जाना जाता है. यह चीन से करीब 130 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक द्वीप है. दरअसल, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान चीन में दो पार्टियों के बीच सत्ता के लिए संघर्ष चल रहा था. अंततः 1949 में सत्ताधारी नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमिंतांग) को हराकर कम्युनिस्ट पार्टी जीत गई. इसके बाद कुओमिंतांग के लोग चीन की मुख्य भूमि छोड़कर  उससे 130 किलोमीटर दूर ताइवान एक द्वीप पर चले गए और मुख्य भूमि से संपर्क काटकर अपनी सरकार बना ली.

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रिश्तों में गर्माहट का दौर

1987 के अंत में ताइवान के निवासियों को पहली बार मुख्य भूमि पर जाने की अनुमति दी गई. 1991 में ताइवान ने आपातकालीन शासन को हटा दिया. चीन के साथ युद्ध को एकतरफा समाप्त कर दिया गया. इसके साथ ही दोनों पक्षों के बीच पहली सीधी वार्ता दो साल बाद सिंगापुर में हुई थी. वहीं साल 1995 में ताइवान के राष्ट्रपति की अमेरिकी यात्रा हुई जिसके विरोध में चीन ने वार्ता रद्द कर दी थीं. इसके बाद साल 1996 में ताइवान में हो रहे राष्ट्रपति चुनाव को रोकने के लिए चीन ने मिसाइलों का परीक्षण किया. इसके बाद साल 2000 में पहली बार कुओमिंतांग ने ताइवान में सत्ता खो दी. इसके बात दोनों देशों के बीच व्यपार संबंधों में सुधार हुआ था. 

वन चाइना पॉलिसी बनी टकराव की वजह

इसके बाद साल 2005-2015 के बीच चीन और ताइवान के बीच धमकियों और बातचीत का दौर चलता रहा. मार्च 2005 ताइवान स्वतंत्रा की घोषणा की थी. वहीं अप्रैल में ताइवान के नेता का चीन दौरा हुआ. दोनों देशों के बीच टकराव कम करने को लेकर  साल 2008 में फिर वार्ता फिर से शुरु हुई थी. 2010 में उन्होंने एक व्यापक आर्थिक सहयोग पर हस्ताक्षर किए. 2016 में वन चाइना नीति को स्वीकार न करने के कारण चीन ने ताइवान के साथ पूर्व में चल रहे सारे संचार को निलंबित कर दिए थे जो कि टकराव  का अहम मुद्दा बना था.

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चीन ताइवान की सीमा में लगातर घुसपैठ कर रहा था जिसके बाद जपान दौरे के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो अमेरिका चुप नही बैठेगा. बाइडेन ने आगे कहा कि हम ताइवन की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं. हाल ही में अमेरिकी हाउस आफ रीप्रजेंटेटिव की स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद चीन ने ताइवान की सीमा के पास पानी में कई बैलेस्टीक मिसाइल छोड़ी.

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चीन के रवैए पर क्या है दुनिया का रुख

पेलोसी की यात्रा के बाद आक्रामक रहे चीन को लेकर ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि चीन की तरफ से की जा रही कार्रवाई तर्कहीन है. यह शांतिभंग करने वाली है. वर्तमान समय में चीन ने ताइवान को चारों तरफ से घेर लिया है और ताइवानी सीमा पर लगातार युद्धाभ्यास कर रहा है. इस बीच G-7 देशों के तरफ से कहा गया है कि ताइवान की खाड़ी में चीन की आक्रामक सैन्य गतिविधियां सहीं नहीं हैं.

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इसके साथ ही G-7 देशों द्वारा कहा गया कि हमारे सांसदों का किसी भी देश में दौरा करना समान्य बात है लेकिन चीन के रवैये ने तनाव पैदा कर दिया है और अस्थिरता पैदा करने की कोशिश की गई है. वहीं इस मुद्दे पर रुस ने बयान जारी करके अमेरिका पर आरोप लगाया है कि अमेरिका ने ही नैंसी पेलोसी को ताइवान भेजकर विवाद को जन्म दिया और उकसाने वाला काम किया है.

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