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Punjab Election: कभी नाराज तो कभी खुश, कांग्रेस के लिए इतने अहम क्यों हैं सिद्धू?

नवजोत सिंह सिद्धू भले ही कितनी मुश्किलें पंजाब में बढ़ा रहे हों हाल के दिनों में एक बात साफ हो गई है कि वे कांग्रेस पार्टी के दुलारे नेता हैं.

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Punjab Election: कभी नाराज तो कभी खुश, कांग्रेस के लिए इतने अहम क्यों हैं सिद्धू?
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डीएनए हिंदी: पंजाब कांग्रेस की राजनीति नवजोत सिंह सिद्धू के इर्द-गिर्द घूम रही है. सिद्धू के कभी रूठने की खबरें मीडिया की सुर्खियां बनती हैं तो कभी मनाने की. उन्हें मनाने के लिए पार्टी का शीर्ष नेतृत्व एकजुट हो जाता है. सिद्धू न तो मुख्यमंत्री पद का चेहरा हैं न ही इतने बड़े जननेता कि कांग्रेस लगातार उनके सामने झुकती रहे. वजह क्या है कि कांग्रेस 2022 का पंजाब विधानसभा चुनाव सिद्धू की अध्यक्षता में लड़ना चाहती है. अगर तारीखों पर गौर करें तो सिद्धू पार्टी के संकटमोचक भले ही न रहे हों 'संकट कारक' जरूर बनते रहे हैं.

16 मार्च 2017 को जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब कांग्रेस की कमान संभाली थी तब सबकुछ ठीक था. इस कैबिनेट का हिस्सा नवजोत सिंह सिद्धू भी थे. अहम मंत्रालय भी उन्हें कैबिनेट में दिया गया था. धीरे-धीरे नवजोत सिद्धू पार्टी की बैठकों और विधानसभा में गैर-मौजूद रहने लगे. सत्ता को लेकर उनमें और कैप्टन अमरिंदर के बीच बना सियासी ताना-बाना बिगड़ने लगा.

2017 के विधानसभा चुनाव में पंजाब कांग्रेस के भारी बहुमत का क्रेडिट साफ तौर पर कैप्टन अमरिंदर को गया था. तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी  उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड जैसे राज्यों में चुनाव प्रचार कर रहे थे. पंजाब में बहुत सक्रिय नहीं थे. ऐसा माना जा रहा था कि पंजाब कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे कैप्टन ही हैं जिनके नाम पर अकाली-बीजेपी गठबंधन के खिलाफ वोट पड़ा है. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के करीबी रहे कैप्टन अमरिंदर को 19 सितंबर को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. सोनिया गांधी ने पंजाब कांग्रेस में जारी घमासान को देखते हुए इस्तीफा मांग लिया था. 

क्यों कांग्रेस को रास नहीं आई अमरिंदर सिंह की कप्तानी?

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 2 नवंबर 2021 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया. वजह साफ थी कि अब सिद्धू के पंजाब कांग्रेस में रहते उनके सामने लगातार चुनौतियां आतीं. सिद्धू को हटाने की सलाह भी उनकी पार्टी नहीं मान रही थी. न ही सोनिया गांधी, राहुल गांधी या प्रियंका गांधी की ओर से यह नसीहत मिली कि वे पार्टी विरोधी या कैप्टन विरोधी बयान न दें. कांग्रेस पार्टी को सिद्धू की कैप्टन के खिलाफ 'बोलने की आजादी' भारी पड़ गई. पार्टी ने उन्हें किनारे लगा दिया. सिद्धू के अलावा कैबिनेट मंत्री तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा, सुखजिंदर सिंह रंधावा, सुखबिंदर सिंह सरकारिया और चरणजीत सिंह चन्नी भी कैप्टन का विरोध कर रहे थे. इन नेताओं को सिद्धू का करीबी माना जाता है. 

कैसे सिद्धू के इर्द-गिर्द घूम रही है पंजाब कांग्रेस की राजनीति?

पंजाब कांग्रेस की राजनीति अब सिद्धू के इर्द-गिर्द घूम रही है. 2017 से ही सिद्धू कभी अपनी पार्टी से नाराज होते रहे हैं तो कभी खुश. उन्हें मनाने के लिए पूर्व पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत से लेकर वर्तमान कांग्रेस प्रभारी हरीश चौधरी दिन-रात एक कर देते हैं. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को खुद भी कई बार सिद्धू को बुलाकर समझाना पड़ा है. सिद्धू हर बार अपने बयानों को लेकर नया बखेड़ा खड़ा कर देते हैं.

नवजोत सिंह सिद्धू की जिद में कैप्टन की कुर्सी तो चली गई लेकिन सिद्धू की नाराजगी नहीं. नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी से उनकी शिकायत अबूझ पहेली की तरह है. जिन मुद्दों से लेकर वे कैप्टन से नाराज थे उन्हीं मुद्दों को लेकर चन्नी से भी.


पूर्व डीजीपी सुमेध सिंह, अटार्नी जनरल, डीजीपी की नियुक्ति, भ्रष्टाचार, राजकोष में धन की कमी से लेकर रोजगार तक सिद्धू हर मोर्चे पर सीएम चन्नी के खिलाफ बोल चुके हैं. जब चन्नी को पंजाब की कमान दी गई थी तब सिद्धू उन्हें कुछ दिन लेकर ऐसे टहलते रहे कि जैसे मुख्यमंत्री के गार्जियन वे ही हों. कुछ दिनों के बाद सिद्धू नाराज हुए और अपने पद से इस्तीफा दे दिया. 28 सितंबर को सिद्धू ने अपने पद से ही इस्तीफा दे दिया. अब खबर यह है कि सिद्धू एक बार फिर मान गए हैं. पंजाब कांग्रेस का नेतृत्व वही करेंगे. हालांकि उनकी पार्टी से सहमति कितने दिनों तक रहती है यह देखने वाली बात होगी.

क्यों सिद्धू को नाराज नहीं करना चाहती है कांग्रेस?

जिस तरह से कैप्टन पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के करीबी नेताओं में शुमार रहे, उसी तरह सिद्धू पर प्रियंका गांधी और राहुल गांधी मेहरबान हैं. दोनों दिग्गज नेताओं से उनकी नजदीकी उन्हें हर बार राज्य में बचा ले रही है. कैप्टन इन दोनों नेताओं को साधने में पीछे छूट गए. यही वजह है कि कांग्रेस से उनकी विदाई हो गई. हालांकि अब अलग जाकर वे कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ाने वाले हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि कैप्टन पंजाब के जननेता हैं. 

कैप्टन के नेतृत्व में कैसी थी 2017 चुनावों की उड़ान?

कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई में कांग्रेस पार्टी को विधानसभा की कुल 117 सीटों में से 80 विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी. अकाली दल का ग्राफ ऐसा गिरा कि महज 14 सीटें हासिल हुईं. मोदी लहर में भी बीजेपी के हिस्से 2 सीटें आईं. आम आदमी पार्टी नई पार्टी थी लेकिन 17 सीटें हासिल करने में कामयाब रही. कैप्टन ने साबित किया था कि पंजाब में कांग्रेस की जीत की सबसे बड़ी वजह वही हैं लेकिन अब कांग्रेस पंजाब में किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी यह कहना अभी मुश्किल है.

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