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आम आदमी की उम्मीदों को लग सकता है झटका, जैसा सोचा था वैसा नहीं होगा Budget 2023, जानें क्यों?

निर्माला सीतारमण अपने बजट में रक्षा और ग्रामीण विकास पर जोर दे सकती हैं. रक्षा क्षेत्र में बड़े सुधारों की जरूरत है.

आम आदमी की उम्मीदों को लग सकता है झटका, जैसा सोचा था वैसा नहीं होगा Budget 2023, जानें क्यों?

केंद्रीय वित्त मंत्रालय निर्मला सीतारमण. (तस्वीर-PTI)

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डीएनए हिंदी: देश में 2024 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. चुनाव से पहले का यह आखिरी पूर्ण बजट है, जिसे लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि यह बजट लोकलुभावना नहीं होगा क्योंकि वित्त मंत्रालय उन बिंदुओं पर जोर देगा, जहां बीते वर्षों में कम फंडिंग आवंटित की गई है. अब तक ऐसा चलन नहीं देखने को मिला है कि चुनाव से ठीक पहले लोकलुभावना बजट पेश किया गया हो.

पिछले 20 वर्षों में, आम चुनावों से पहले पेश किए गए पूर्ण कालिक बजट के चार बजटों में से केवल दो बजटों में रक्षा और बुनियादी ढांचे की तुलना में ग्रामीण खर्च पर ज्यादा पैसे खर्च किए गए हैं. सामाजिक क्षेत्र में केवल एक चुनाव पूर्व बजट पर पर्याप्त पैसे खर्च किए गए हैं. 2008 में, पहली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार ने एक बजट जारी किया, जो पब्लिक वेलफेयर पर आधारित था.

NDA सरकार के कार्यकाल के दौरान, रक्षा पर खर्च 2000-03 के औसत 18 प्रतिशत से घटकर 2003-04 में बजट हिस्से का 15.2 प्रतिशत हो गया. ग्रामीण और कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च में भी यही स्थिति नजर आई. इन्फ्रास्ट्रक्चर पर होने वाले खर्च को बढ़ाया गया है. 

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यूपीए-I सरकार ने रक्षा और बुनियादी ढांचे पर कम खर्च किया था, वहीं कल्याणकारी योजनाओं पर होने वाला खर्च बढ़ाया गया था. साल 2008-09 में ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाला खर्च 2005-08 के औसत 9.2 प्रतिशत से बढ़कर 16.2 प्रतिशत तक पहुंच गया था. 

क्यों लोकलुभावना नहीं होगा बजट?

यह बजट लोकलुभावना इसलिए भी नहीं होगा क्योंकि सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में ज्यादा पैसे खर्च करने की तैयारी कर रही है. सरकार विकास पर जोर दे रही है, इस वजह से टैक्स और दूसरे सेक्टर में जनता को राहत नहीं मिल सकती है.

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इक्विरस की एक अर्थशास्त्री अनीता रंगन ने हिंदुस्तान टाइम्स के साथ हुई बातचीत में कहा है कि बीते एक दशक में सरकारों ने लोकलुभावना बजट पेश करने की जगह, संरचनात्मक सुधारों ज्यादा ध्यान दिया है. चुनाव से ठीक पहले भी सरकारें आमतौर पर ऐसा नहीं करती हैं.

क्यों लोकलुभावन बजट से बच रही है सरकार?

पूरे साल का बजट लोकलुभावना इसलिए भी नहीं होता है कि क्योंकि योजनाओं के लिए आवंटिन की जाने वाली राशि दीर्घकालिक होती है.  जैसे साल 2021-22 से 2025-26 तक प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए योजना तैयार की गई है. कोई जरूरी नहीं कि यही सरकार आने वाले वर्षों में भी रहे. जो भी सरकार होगी, इन योजनाओं पर खर्च हो रही राशि कम नहीं करेगी.

सरकार पर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ज्यादा धनराशि आवंटित करने का हमेशा दबाव रहा है. अब गांव से लेकर शहरों तक में बुनियादी ढांचे को दुरुस्त करने की मांग हो रही है. एनडीए सरकार फिलहाल बुनियादी ढांचे को दुरुस्त करने पर काम कर रहा है, वहीं इससे पहले यूपीए की सरकार ने सामाजिक व्यय का ज्यादा ध्यान रखा था. एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज की प्रमुख अर्थशास्त्री माधवी अरोड़ा के मुताबिक फिस्कल कंसोलिडेशन, कर्ज की ज्यादा दर, टैक्स रेवेन्यू में बदलाव, बढ़ते खर्च को देखते हुए बजट के लोकलुभावना होने की उम्मीद कम है. 

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ग्रामीण क्षेत्र अभी भी कोविड-19 महामारी के दुष्प्रभावों से जूझ रहा है. ऐसे में सरकार ग्रामीण सेक्टर के इन्फ्रास्ट्रक्चर को दुरुस्त करने पर ज्यादा जोर दे सकती है. गांव-कस्बों में विकास की रफ्तार थमी है. बजट 2023 से आम आदमी को बजट के लोकलुभावने होने की उम्मीद कम रखनी चाहिए.

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