डीएनए एक्सप्लेनर
Opposition Alliance Mission 2024: भाजपा नेतृत्व वाले NDA गठबंधन को चुनौती देने के लिए 8 महीने पहले कथित समान विचारधारा वाले 28 विपक्षी दलों ने गठबंधन किया था. इतने कम समय में ही आपस में आ गई दरार का डीएनए पेश कर रही है ये रिपोर्ट.
डीएनए हिंदी: NDA vs INDIA- आठ महीने पहले जून 2023 में NDA के खिलाफ नया गठबंधन बना था, जिसे बाद में INDI अलायंस नाम दिया गया. इस गठबंधन का असल मकसद आगामी लोकसभा चुनाव में BJP को कड़ी टक्कर देना था, लेकिन चुनाव से पहले ही INDI अलायंस खत्म होता दिख रहा है. जिस उद्देश्य के साथ 28 राजनीतिक दलों ने गठबंधन किया था, उसी को लेकर अब उनमें फूट पड़ने लगी है. उद्देश्य ये था कि लोकसभा चुनाव में INDI अलायंस के सहयोगी दल एक सीट, एक उम्मीदवार के साथ मैदान में उतरेंगे. गठबंधन के जिस सहयोगी दल की जिस राज्य और लोकसभा सीट पर पकड़ मजबूत होगी, उसी दल के उम्मीदवार को चुनाव लड़ने का अवसर मिलेगा. ऐसा माना जा रहा था कि इससे गठबंधन का वोट बैंक छिटकेगा नहीं और उम्मीदवार की जीत की संभावना कहीं ज्यादा होगी. लेकिन पिछले 2 से 3 महीने से जिस तरह के घटनाक्रम इस गठबंधन में हुए हैं, उससे अब INDI अलायंस का The End होता दिख रहा है. ऐसा क्यों कहा जा रहा है, इसकी कई वजह हैं.
क्यों माना जा रहा है अलायंस का The End?
INDI अलायंस का The End होना इसलिए भी तय माना जा रहा है, क्योंकि जब 6 दिसंबर 2023 को दिल्ली में बैठक होनी थी, तब ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, हेमंत सोरेन और नीतीश कुमार ने बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया था. तब बैठक की तारीख को आगे बढ़ाया गया और 19 दिसंबर को दिल्ली में बैठक हुई थी. INDI अलायंस की पांचवीं बैठक में 28 में सिर्फ और सिर्फ 9 दलों के नेताओं का शामिल होना. साफ जाहिर करता है कि INDI अलायंस में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है और बुधवार के घटनाक्रम ने इशारा दे दिया, कि इस गठबंधन का The End करीब है.
कांग्रेस बनाम क्षेत्रीय दल हो गया है गठबंधन
INDI अलायंस में वैसे तो कुल 28 दल शामिल हैं. इनमें ज्यादातर क्षेत्रीय दल शामिल हैं, जो समय से सीट बंटवारा चाहते हैं ताकि लोकसभा चुनाव में अच्छी तैयारी के साथ मैदान में उतरा जा सके. लेकिन ऐसा नहीं होने से INDI अलायंस में ही कांग्रेस बनाम क्षेत्रीय दल हो गया है. आज ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में अकेले चुनाव लड़ने की बात कहकर, एक तरह से खुद को INDI अलायंस से अलग कर लिया है. हालांकि, उन्होंने कहा कि वो गठबंधन का हिस्सा बनीं रहेंगी, लेकिन जब ममता बनर्जी की पार्टी TMC चुनाव अलग से अकेले लड़ेगी, तब गठबंधन से जुड़े रहने का क्या औचित्य रह जाता है?
ममता क्यों हो गई हैं कांग्रेस से नाराज?
अकेले चुनाव लड़ने के पीछे ममता बनर्जी की कांग्रेस से नाराजगी है. इस नाराजगी की कई वजह हैं-
INDI अलायंस का हिस्सा होते हुए TMC और कांग्रेस में नाराजगी इतनी बढ़ी कि ममता ने अकेले दम पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. ऐसा करने की एक वजह उन्होंने ये बताई कि उन्हें न्याय यात्रा में नहीं बुलाया गया. साथ ही उनके प्रस्ताव को कांग्रेस ने नहीं माना यानी 28 दलों के गठबंधन का एक मजबूत स्तंभ आज ढह गया. इससे INDI अलायंस कमजोर होगा और इसे कांग्रेस नेता भी अच्छी तरह समझते हैं.
पंजाब में क्यों फंसा हुआ है पेंच
पश्चिम बंगाल के साथ ही आज पंजाब से भी INDI अलायंस को झटका लगा, पंजाब में आम आदमी पार्टी की कांग्रेस से दूरी की वजह भी सीट शेयरिंग बनी है. आज आम आदमी पार्टी ने पंजाब की सभी 13 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया, क्योंकि पंजाब में भी सीटों के बंटवारे को लेकर पेंच फंसा हुआ है.
उत्तर प्रदेश में भी फंस चुका है कांटा
INDI अलायंस से जिस तरह सहयोगी दल दूर हो रहे हैं, और कांग्रेस के साथ गठबंधन को तैयार नहीं है. उसे देखकर ऐसा नहीं लगता कि INDI अलायंस चुनाव तक टिक भी पाएगा, क्योंकि, सीट शेयरिंग को लेकर ही उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच पेंच फंसा हुआ है. उत्तर प्रदेश से कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल INDI अलायंस का हिस्सा है, जबकि उत्तर प्रदेश में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं. इनमें से कांग्रेस 20 से 25 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है, लेकिन इसके लिए अखिलेश यादव तैयार नहीं हैं और समाजवादी पार्टी कांग्रेस को 10 सीटें ही देना चाहती है.
बिहार में भी कांग्रेस की मानने को तैयार नहीं क्षेत्रीय दल
सीटों के बंटवारे को लेकर उत्तर प्रदेश में भी INDI अलायंस के घटक दलों के बीच सबकुछ ठीक नहीं है. बिहार में भी सीटों को लेकर ही कांग्रेस बनाम क्षेत्रीय दल हो चुका है. बिहार में सीट बंटवारे को लेकर बैठक हुई थी. मुख्य तौर पर बिहार में जनता दल यूनाइटेड, राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा है, जबकि बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं. बैठक के बाद सीट बंटवारे का जो प्रस्ताव रखा गया था, उसके मुताबिक-
बिहार में कांग्रेस को सिर्फ 4 सीटें देने के पीछे तर्क ये कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में JDU ने 16 सीटों जीत दर्ज की थी, जबकि कांग्रेस सिर्फ 1 सीट पर ही जीत पाई थी. ऐसे में बिहार के दोनों क्षेत्रीय दल इसबार मजबूत दावेदारी पेश कर रहे हैं और सीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस के साथ साथ INDI अलायंस में भी फूट पड़ रही है.
क्षेत्रीय दल कांग्रेस से जा रहे हैं दूर
सीट बंटवारे के विवाद ने INDI अलायंस को 8 महीने के अंदर ही The End की तरफ बढ़ा दिया है और क्षेत्रीय दल कांग्रेस से दूर होने लगे हैं, जिसका सीधा असर गठबंधन पर पड़ रहा है. महाराष्ट्र में भी सीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस की शरद पवार गुट की NCP और शिवसेना UBT के साथ बैठक हो चुकी है. यहां भी कांग्रेस कम से कम 20 सीटें चाहती है, जिसे लेकर बात नहीं बन रही है. कोई भी गठबंधन तभी मजबूत स्थिति में हो सकता है, जब उसके सहयोगी दल एकमत हों. लेकिन INDI अलायंस ने 9 महीने भी पूरे नहीं किए और चुनाव की दहलीज तक पहुंचने से पहले ही दरार पड़ने लगी है. यही वजह है कि अब राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा आम हो गई है कि INDI अलयांस का खत्म होना तय है.
कांग्रेस का अहंकार बना है क्या उसकी मुसीबत?
आज अगर INDI अलायंस के The End की बातें हो रही है और क्षेत्रीय दल कांग्रेस से दूरी बना रहे हैं, तो इसकी बड़ी वजह कांग्रेस का अहंकार है. कांग्रेस को आज भी लगता है कि उसमें पहले जैसा दमखम है, लेकिन सच ये है कि आज के दौर में कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. कभी 415 सीटें जीतने वाली कांग्रेस आज 55 सीटों पर सिमट गई है, भारत पर शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी आज सिर्फ तीन राज्यों में सरकार चला रही है. लेकिन राहुल गांधी को लगता है कि कांग्रेस ही INDI अलायंस की स्वाभाविक लीडर है. ऐसे में कांग्रेस का मानना है कि 2024 के चुनाव में कांग्रेस को सीटें, उसके 2014 और 2019 के चुनावी प्रदर्शन के आधार पर नहीं बल्कि पिछली सदी के चुनावी नतीजों के आधार पर मिलनी चाहिए. कांग्रेस पार्टी ये मानने को तैयार ही नहीं है कि भारत के लगभग आधे राज्यों से कांग्रेस पार्टी का पूरी तरह सफाया हो चुका है.
जिस राज्य से कांग्रेस एक बार बाहर हुई, अक्सर वहां वापसी करना उसके लिए आसान नहीं रहा. ऐसे में राजनीति को करीब से समझने वालों का मानना है कि कांग्रेस को 2014 में जो झटका लगा, उससे उबर पाना आसान नहीं है. लेकिन राहुल गांधी इस सच को मानने को तैयार नहीं हैं.
क्षेत्रीय दल कांग्रेस से ज्यादा भारी पड़े हैं BJP पर
क्षेत्रीय दल एक और वजह से कांग्रेस पार्टी को अपना नेता मानने से इंकार कर रहे हैं. दरअसल क्षेत्रीय दलों ने कई बार अपना दम दिखाया है, जिससे उन्होंने साबित किया कि वो BJP से लड़ने और हराने में ज्यादा सक्षम है. उनका मानना है कि कांग्रेस और बीजेपी में सीधी लड़ाई का मतलब है, BJP की आसान जीत और ये बात आंकड़ों से भी सही साबित होती है.
ये आंकड़े साफ दिखा रहे हैं कि उत्तर और मध्य भारत में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी लड़ाई का मतलब है, भगवा दल की आसान जीत. इसलिए क्षेत्रीय दल कांग्रेस को ज्यादा सीट देने से कतरा रहे हैं. इससे INDI अलायंस को लगता है कि जिस उद्देश्य के साथ गठबंधन किया गया, वो पूरा नहीं हो पाएगा, लेकिन अहंकार में कांग्रेस इस सच्चाई को कबूलने को तैयार नहीं है. यही कारण है कि INDI अलायंस के वजूद पर ही खतरा मंडराने लगा है.
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