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कैसे दिया जाता है फिल्मों को सर्टिफिकेट, क्यों मूवीज पर चलाई जाती है कैंची, जानें CBFC के नियम

किसी भी फिल्म को बनने के बाद फिल्ममेकर्स को सेंसर सर्टिफिकेट लेना पड़ता है. आइए समझते हैं कि ये सेंसर बोर्ड कैसे काम करता है और फिल्‍मों को सर्टिफिकेट कैसे मिलता है. साथ ही जानते हैं कि कितने तरह के सर्टिफिकेट दिए जाते हैं.

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central board of film certification

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डीएनए हिंदी: फिल्में देखना तो लगभग हर किसी को पसंद होता है. दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्में बनाने का रिकॉर्ड भारत के नाम है. सेंसर बोर्ड (Censor Board) के मुताबिक भारत में हर साल करीब 20 से भी ज्यादा भाषाओं में 1500 से 2000 फिल्में बनाई जाती हैं और ये आंकड़ा साल दर साल बढ़ रहा है. वहीं फिल्म शुरू होने से पहले आपने एक सर्टिफिकेट तो जरूर देखा होगा. ये केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) की पहचान है, जिसे सेंसर बोर्ड भी कहा जाता है. हम आपको इसी बारे में बताएंगे कि आखिर ये सेंसर बोर्ड किस तरह से काम करता है.

सीबीएफसी या सेसंर बोर्ड भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय का हिस्सा है और इसे भारत में रिलीज होने वाली फिल्मों को विनियमित या रेगुलेट करने का काम सौंपा गया है. यानी सीबीएफसी वास्तव में फिल्म सेंसरिंग का काम करती है और इसके पास किसी भी फिल्म में जरूरी समझे जाने वाली कटौती की मांग करने की पावर होती है. हालांकि सीबीएफसी को कई बार अपने काम करने के तौर तरीकों को लेकर आलोचना का सामना करना पड़ता है. यही नहीं इसके अधिकारों पर भी कई बार  सवाल उठाए गए हैं.

कब शुरू हुआ सीबीएफसी

सीबीएफसी को सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 के प्रावधानों के तहत फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्शन को रेगुलेट करने का काम सौंपा गया है. भारत की पहली फीचर फिल्म राजा हरिश्चंद्र के निर्माण के बाद सेंसरशिप बोर्ड का गठन किया गया था. 

1947 में भारत की आजादी के बाद, क्षेत्रीय सेंसर निकायों को एक में विलय कर दिया गया: बॉम्बे बोर्ड ऑफ फिल्म सेंसर, जो बाद में 1952 के सिनेमैटोग्राफ अधिनियम के बाद केंद्रीय फिल्म सेंसर बोर्ड बन गया. साल 1983 में, सिनेमैटोग्राफी नियमों के संशोधन के बाद, यह को बदलकर केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड कर दिया गया. इसके प्रमुख इस समय प्रसून जोशी हैं.

फिल्मों को दिए जाते हैं ये सर्टिफिकेट

भारतीय फिल्म सेन्सर बोर्ड, चार तरह के सर्टिफिकेट जारी करता है. 

- U certificate ये उन फिल्मों को जारी करते हैं जो परिवार के साथ मिलकर किसी भी उम्र का शख्स देख सकता है. इसमें बच्चे, बूढ़े, जवान सब शामिल हैं.

- U/A certificate इसका मतलब यह है कि ये फिल्म 12 साल से कम उम्र के बच्चे नहीं देख सकते हैं. इसमे बच्चों के साथ किसी बड़े को होना चाहिए.

- A certificate ये ऐसी फिल्मों को दिया जाता है जो सिर्फ युवा वर्ग के लिए होती है। इनको परिवार के साथ नहीं देख सकते हैं.

- S certificate ये फिल्में किसी विशेष वर्ग के लोगों जैसे डॉक्टर, वकील के लिए होती है.

इस तरह मिलता है सर्टिफिकेट

ऐसे में फिल्म बनने के बाद फिल्म निर्माता को सेंसर सर्टिफिकेट लेने के लिए सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) के नजदीकी ऑफिस में संपर्क करना होता है. इस सर्टिफिकेट के बिना फिल्म को दिखाया नहीं जा सकता. सर्टिफिकेट लेने से पहले निर्माता को बताना होता है कि वह यह फिल्म किन लोगों के लिए बना रहा है. इसके बाद फिल्म को  सर्टिफिकेट दिया जाता है.

क्या फिल्मों की सेंसरशिप है जरूरी

ऐसे में सवाल उठता है कि सेंसरशिप क्यों जरूरी है. आपको बता दें कि अगर सेंसरशिप नहीं होगी तो फिल्म में कुछ ऐसा भी हो सकता है जो सार्वजनिक ना दिखाए जाना चाहिए. किसी भी फिल्म से अगर लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी तो इससे हिंसा हो सकती है.

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