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27 साल पहले इस नेता ने संसद में पेश किया था महिला आरक्षण बिल, जानें कहां फंसा था पेंच

Women Reservation Bill: कांग्रेस की मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार 2010 में महिला आरक्षण बिल को राज्यसभा में जरूर पारित करा लिया गया था. लेकिन लोकसभा फेल हो गया था.

27 साल पहले इस नेता ने संसद में पेश किया था महिला आरक्षण बिल, जानें कहां फंसा था पेंच

Women Reservation Bill

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डीएनए हिंदी: देश की सियासत में 19 सितंबर का दिन ऐतिहासिक रहा. नए संंसद भवन में मोदी सरकार ने महिला आरक्षण संशोधन बिल को पेश कर दिया है. अब इस पर बहस हो होगी. इससे पहले सोमवार को मोदी कैबिनेट ने इस विधेयक को मंजूरी दी थी. यह बिल पिछले 27 साल से अटका हुआ था. सबसे पहले सितंबर 1996 में एचडी देवगौड़ा की सरकार ने इस बिल को संसद में पेश किया था. इसके बाद कई बार इस विधेयक को पारित कराने की कोशिश की गईं लेकिन अभी तक पास नहीं हो सका है.

12 सितंबर 1996 में एचडी देवगौड़ा की सरकार ने 81वें संशोधन विधेयक के रूप पेश किया था. जिसे संसद में खुलकर समर्थन मिला और कई सांसदों ने उसी दिन खुलकर सहमति भी जताई थी. उस समय यूनाइडेट फ्रंट की सरकार थी, जिसमें 13 पार्टियों का गठबंधन था. लेकिन ओबीसी कैटेगरी के सांसदों ने इसमें कुछ बदलाव करने की मांग उठाई. जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने विधेयक को सीपीआई नेता गीता मुखर्जी के नेतृत्व में बनाई गई संयुक्त समिति को भेज दिया था.

31 सदस्यीय वाली इस संसदीय समिति में एनसीपी चीफ नेता शरद पवार, जेडीयू से नीतीश कुमार, टीएमसी से ममता बनर्जी, बीजेपी से उमा भारती और स्वर्गीय सुषमा स्वराज, गिरिजा व्यास, रामगोपाल यादव, सुशील कुमार शिंदे, विजय भास्कर रेड्डी, सुमित्रा महाजन, मीरा कुमार और हन्नाह मोल्लाह शामिल थे. समिति ने विधेयक में 7 प्रस्ताव रखे जिसमें महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण देने की बात कही गई.

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नीतीश कुमार ने रखे थे अपने सुझाव
समिति ने यह भी सुझाव दिया कि लोकसभा के अलावा राज्यसभा, विधानसभाओं में भी महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित होनी चाहिए. साथ ही पिछड़ा वर्ग (OBC) को भी आरक्षण देने पर विचार होना चाहिए. समिति के सदस्य नीतीश कुमार ने कहा था कि यह विधेयक अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षण की बात करता है. लेकिन मेरा मानना है कि एक तिहाई आरक्षण में OBC महिलाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए.

इसके बाद 1998, 1999, 2003, 2004 और 2008 में विधेयक को पेश किया गया लेकिन समर्थन नहीं मिला, जिसकी वजह बिल पास नहीं हुआ. 2008 में कमेटी की 7 सिफारिशों में से 5 को विधेयक में शामिल कर लिया गया था. इस मुद्दे पर आखिरी बार 2010 में कदम उठाया गया था. लेकिन कुछ सांसदों के विरोध के चलते यह बिल लोकसभा में पारित नहीं हो सका था.

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इन पार्टियों ने किया था विरोध
कांग्रेस की मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार 2010 में महिला आरक्षण बिल को राज्यसभा में जरूर पारित करा लिया गया था. लेकिन लोकसभा में जब बिल को पेश किया तो कुछ पार्टियों ने इसका जबरदस्त विरोध किया. विरोध करने वाली पार्टियों में सपा,जेडीयू और आरजेडी थी. हालांकि इन्होंने विरोध नहीं किया था, बल्कि ओबीसी महिलाओं को भी इस आरक्षण में शामिल करने के लिए कुछ बदलाव की मांग की थी. 

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