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Recession in Europe: यूरोप के 19 देशों पर आर्थिक मंदी का संकट, सेंट्रल बैंक से नहीं संभल रहे हालात, ये वजहें हैं जिम्मेदार

यूरोप की मंहगी लाइफस्टाइल लोगों की मुश्किलें बढ़ा रहा है. यूरोपीय सेंट्रल बैंक की स्थिति मुद्रास्फीति की वजह से लगातार बिगड़ रही है.

Recession in Europe: यूरोप के 19 देशों पर आर्थिक मंदी का संकट, सेंट्रल बैंक से नहीं संभल रहे हा�लात, ये वजहें हैं जिम्मेदार

यूरोपियन सेंट्रल बैंक.

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डीएनए हिंदी: यूरोप (Euro Zone) में आई आर्थिक मंदी का असर अब लोगों की जिंदगी पर पड़ने लगा है. महंगी लाइफस्टाइल (Cost of Living Crisis) की वजह से वहां आर्थिक हालात डगमगाने लगे हैं. लगातार बढ़ रहे आर्थिक संकट की वजह से लोगों के खर्चे अब प्रभावित हो रहे हैं. सोमवार को हुए एक सर्वे में यह खुलासा हुआ है. यूरोप में गैस की कीमतें आसमान छू रही हैं. यह पूरा क्षेत्र भीषण सूखे का सामना कर रहा है. सामानों के दामों में लगातार इजाफा हो रहा है.

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक यूरोपीय देशों में आने वाले दिनों में महंगाई अपने उच्चतम स्तर को छू सकती है. ऐसी आशंका जताई जा रही है कि घरों और दूसरे उद्योगों को सामान्य रूप से चलाने का खर्च इतना बढ़ सकता है कि लोग अपने हाथ खड़े कर सकते हैं.

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यूरोपी देशों के कितने लोगों पर पड़ा मंदी का असर?

यूरोपीय इंडस्ट्रीज में ग्रोथ बेहद कम है लेकिन सामानों के दाम उच्चतम स्तर पर हैं. यह मंदी मुद्रास्फीति की वजह से आ रही है. यूरोपियन सेंट्रल बैंक की ओर से उठाए जा रहे कदम इतने नाकाफी हैं कि लोगों को राहत नहीं मिल पा रही है. इस बैंक की वजह से यूरो जोन के कुल 34 करोड़ लोग प्रभावित हो रहे हैं.

आर्थिक मंदी.

यूरोपीय सेंट्रल बैंक से नहीं संभल रहे हालात

ऐसी स्थितियां बन रही हैं कि यूरोपीय सेंट्रल बैंक की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो रहे हैं. मुद्रास्फीति से लड़ रहे देशों की मुश्किलें इस वजह से और बढ़ सकती हैं. इसका बेहद प्रतिकूल असर लोगों की जिंदगी पर पड़ सकता है. यूरोपीय देशों की नीतियां बेहद सख्त हैं, जिनकी वजह से यहां हालात संभलने वाले भी नहीं हैं. ग्रोथ में लागतार गिरावट आने की वजह से मंदी का संकट और गहराएगा.   

महंगाई पर नियंत्रण करना यूरोपीय देशों की सबसे बड़ी चुनौती

यूरोप के दिग्गज नेताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कैसे मुद्रास्फीति की दर को कम किया जाए. यूरोपीय देशों की पहली प्राथमिकता भी यही है कि आने वाले दिनों में कई स्तर की बैठक की जाए जिससे घरों और फर्मों के लिए लोन चार्ज, हाउस टैक्स और गहराते वित्तीय संकट से उबरा जा सके. 

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बुधवार के मुद्रास्फीति के आंकड़े इस ओर साफ इशारा कर रहे हैं कि अगले सप्ताह आंकड़ों में अप्रत्याशित रूप से बदलाव देखने मिल सकते हैं. यह दर और बढ़ सकती है. यूरोप में लोन कॉस्ट में इजाफा हो गया है. यह कर्जदारों की मुश्किलें बढ़ा रहा है. रॉयटर्स पोल के एक सर्वे में शामिल ज्यादातर अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि इस सप्ताह यूरोपियन सेंट्रल बैंक में 75 बेसिस पॉइंट रेट हाइक देखने को मिल सकता है. कई पूर्वानुमानों में यह कहा गया है कि 50 बेसिस पॉइंट रेट तक इजाफा देखने को मिल सकता है.

मंदी की जद में आ रहे हैं यूरोप के 19 देश

यूरो करेंसी को यूरोप के कुल 19 देश मान्यता देते हैं. अगस्त में यूरो करेंसी में मुद्रास्फीति बढ़कर 9.1 फीसदी पहुंच गई थी. पहले यह दर 8.9 फीसदी थी. मुद्रास्फीति के घटते-बढ़ते आंकड़ों की वजह से कई देशों पर दबाव बढ़ रहा है.

आर्थिक मंदी.

कॉमर्जबैंक (Commerzbank) के इकॉनमिस्ट (Economist) क्रिस्टोफ वेइल (Christoph Weil) ने आशंका जताई है कि महंगाई की दर सितंबर में और ज्यादा बढ़ सकती है. महंगाई बढ़ने की वजह से यूरोपीय सेंट्रल बैंक के ब्याज दरों में इजाफा और ज्यादा हो सकता है. इसका असर यूरोपीय लोगों की जिंदगी पर बुरी तरह पड़ने वाला है.

किन सेक्टर्स पर पड़ेगा मंदी का असर?

यूरोप में फूड और एनर्जी सेक्टर की कीमतों में इजाफा जारी रहेगा. सर्विस कास्ट अनियंत्रित तरीके से बढ़ रहा है. ऐसी आशंका है कि मुद्रास्फीति की दर 5 फीसदी और बढ़ सकता है. गैर एनर्जी इंडस्ट्रियल गुड्स पर की कीमतों पर भी यूरोपीय सेंट्र बैंक के पॉलिसी मेकर्स बेहद चिंतित है. प्रोडक्ट्स के साथ कीमतों में लगातार इजाफा यूरोप की सबसे बड़ी चिंता है. महंगाई का असर यूरोप की अर्थव्यवस्था को डगमगाने के लिए काफी है. 

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फूड और पेट्रोलियम को छोड़कर मुद्रास्फीति 5.1 फीसदी से बढ़कर 5.5 फीसदी हो गई. अगले सप्ताह यूरोपीय सेंट्रल बैंक में 75 आधार अंकों की बढ़ोतरी होगी. आर्थिक विकास की दर अभी संभलती नजर नहीं आ रही है.

यूरोप की मंदी क्यों बढ़ा रही है चिंता?

आने वाले कुछ महीने यूरोप के लिए बेहद चिंताजनक रहने वाले हैं. आर्थव्यवस्था के लगातार लुढकने की आशंका जताई जा रही है. एनर्जी कॉस्ट की दर ज्यादा रहेगी. लोगों पर असर ऐसा हो सकता है कि लोग जरूरी चीजें भी खरीदने से करता सकते हैं. सर्विस सेक्टर पर भी मंदी का असर पड़ सकता है.

मंदी.

उद्योगों पर भी मंदी का असर पड़ने वाला है. एनर्जी इंटेंसिव सेक्टर अपना प्रोडक्शन घटा सकते हैं. इसकी वजह से जरूरी सामानों की सप्लाई कम की जा सकती है. यहां भी बढ़ती महंगाई इसके लिए जिम्मेदार है.

कम हो जाएगी इंडस्ट्रियल प्रोडक्ट्स की डिमांड

बढ़ती मुद्रास्फीति की वजह से प्रोडक्ट्स की डिमांड  कम हो सकती है. विकास की दर लगातार गिरती नजर आ रही है. यूरो जोन के लिए लगातार आर्थिक संकट जारी रह सकता है. यूरोपियन यूनियन उम्मीद कर रहा है कि एनर्जी प्राइस कैप के जरिए मंदी को रोका जा सकता है लेकिन इसकी स्थिति संभाली नहीं जा सकती है. मंदी के तूफान से निपटने के लिए पॉलिसी मेकर्स को और आगे बढ़ने की जरूरत है.

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यूरोप में भी वर्क फोर्स की कमी एक बड़ी समस्या है. कुछ एक्सपर्ट्स का दावा है कि ऐसा सिर्फ कुछ वक्त के लिए है. यूरोप को इस स्थिति से उबरने में ज्यादा दिन नहीं लगेंगे. जब मजदूरी में इजाफा होता है तो मजदूरी के लिए बेहतर पेमेंट की डिमांड भी बढ़ती है. फिलहाल ऐसी स्थिति नहीं है कि औद्योगिक इकाइयां मजदूरों को ज्यादा पेमेंट कर सकें. वर्क फोर्स में गिरावट की एक वजह यह भी मानी जा रही है. यूरोपीय सेंट्रल बैंक इस उम्मीद में है कि जल्द ही मुद्रास्फीति और मंदी पर नियंत्रण होगा. लेबर मार्केट में सुधार होगा जिससे आर्थिक हालात में सुधार देखने को मिलेगा.

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