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Punjab Election 2022: पंजाब की राजनीति में इतने अहम क्यों हैं प्रवासी वोटर?

पंजाब की राजनीति में प्रवासी वोटर अहम भूमिका निभाते हैं. प्रवासी वोटर चाहते हैं कि राजनीतिक दल उन्हें राज्य में प्रतिनिधित्व दें.

Punjab Election 2022: पंजाब की राजनीति में इतने अहम क्यों हैं प्रवासी वोटर?

Punjab elections 2022.

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डीएनए हिंदी: पंजाब (Punjab) के विधानसभा चुनावों में प्रवासी राजनीति पर नई बहस छिड़ गई है. मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) 'यूपी, बिहार और दिल्ली के भैया' बयान पर घिर गए हैं. न केवल विरोधी पार्टियां बल्कि कांग्रेस पार्टी के भी नेता उनके इस बयान को गलत ठहरा रहे हैं. सीएम चन्नी का बयान प्रवासियों के लिए अपमानजनक बताया जा रहा है. पंजाब की सियासत में प्रवासी वोटर, अहम भूमिका निभाते हैं. हंगामा इसलिए भी बढ़ रहा है.

जब भारत हरित क्रांति की शुरुआती दौर से गुजर रहा था तब पंजाब की ओर बड़ी संख्या में प्रवासियों ने रुख किया. साल 1970 के दशक में पंजाब की गिनती समृद्ध राज्यों में होने लगी. शुरुआत में प्रवासी मजदूर धान की बुवाई के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में आए और काम करने लगे. उन्हें धीरे-धीरे पंजाब के कारखानों में भी काम मिलने लगा.

साल 2016 में शिरोमणि अकाली दल (SAD) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाली सरकार की प्रवासी विंग ने एक सर्वे कराया था. उस समय प्रवासियों की अनुमानित आबादी 39 लाख थी. शिरोमणि अकाली दल के प्रवासी विंग के अध्यक्ष राम चंदर यादव ने खुलासा किया था कि कुछ वर्षों में यह आबादी बढ़कर 43 लाख हो गई. 2016 में जब सर्वेक्षण किया गया था तब राम चंदर यादव प्रवासी विंग के चीफ थे.

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कहां-कहां है प्रवासी आबादी?

पंजाब में, सबसे अधिक प्रवासी आबादी लुधियाना में रहते हैं. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक जालंधर, अमृतसर, मोहाली, बठिंडा, फगवाड़ा और होशियारपुर में भी बड़ी संख्या में प्रवासी रहते हैं. कोविड-19 की पहली लहर में जब संपूर्ण लॉकडाउन लगा था तब प्रवासी अपने-अपने घरों की ओर लौटने लगे थे. पंजाब में एक के बाद कई श्रमिक ट्रेनें चलाई गईं. 18 लाख लोगों ने अपने मूल राज्यों में वापसी के लिए पंजाब की सरकारी पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराया था. इनमें से करीब 10 लाख लोग उत्तर प्रदेश और 6 लाख बिहार वापस जाना चाहते थे. कुछ मजदूर पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश भी लौट रहे थे. केवल 5.64 लोग असल में अपने घर लौटे थे.

Migrants Workers
  
कहां-कहां प्रवासी वोटरों का है दबदबा?


लुधियाना की पांच विधानसभा सीटों पर प्रवासी वोटरों का दबदबा है. लुधियाना पूर्व, लुधियाना दक्षिण, लुधियाना उत्तर, साहनेवाल और लुधियाना पश्चिम  में प्रवासी मतदाताओं की संख्या ज्यादा है. पंजाब में सबसे ज्यादा ऐसे वोटर साहनेवाल विधानसभा के हैं. यहां प्रवासियों की आबादी करीब 50,000 से ज्यादा है. फतेहगढ़ साहिब, जालंधर, अमृतसर, बठिंडा, फगवाड़ा, होशियारपुर इलाकों में भी प्रवासी वोटरों की अहम भूमिका होती है. प्रवासियों का सबसे ज्यादा लुधियाना में ही है. 

लुधियाना की पांच प्रवासी मतदाता-प्रभावित सीटों में से, 3 सीटें 2017 में कांग्रेस ने जीती थीं. लुधियाना दक्षिण विधानसभा सीट पर लोक इंसाफ पार्टी को जीत मिली थी. साहनेवाल विधानसभा सीट से शिरोमणि अकाली दल को जीत मिली थी.

कैसे प्रवासियों को लुभाते हैं राजनीतिक दल?

प्रवासी वोटरों को लुभाने के लिए सियासी पार्टियां तरह-तरह के हथकंडे अपनाती हैं. कभी किसी भोजपुरी सुपरस्टार को पार्टियां बुलाती हैं तो कभी किसी दूसरे राज्य के स्थानीय दिग्गज नेता को. भोजपुरी के दिग्गज अभिनेता और भारतीय जनता पार्टी के नेता मनोज तिवारी मोहाली और होशियारपुर में चुनाव प्रचार कर चुके हैं. बिहारी वोटरों को साधने के लिए शत्रुघ्न सिन्हा भी आ चुके हैं. कई साल से पंजाब सरकार ने छठ पूजा की भी व्यवस्था कराती है. 

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क्या पूर्वांचल का कोई नेता पंजाब में है विधायक?
  
पंजाब की राजनीति में भले ही प्रवासी वोटरों का दबदबा हो लेकिन प्रवासियों का कोई नेता नहीं है. विधानसभा चुनाव में किसी को जगह नहीं मिली है. कई बार यहां पार्षद चुनाव जीत चुके हैं. 2018 में, नगर निगम चुनावों के दौरान, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (AAP) और लोक इंसाफ पार्टी ने एक-एक प्रवासी उम्मीदवारों को एक-एक टिकट दिया था. शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी ने टिकट नहीं दिया था. बीजेपी के बागी नेताओं ने चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं मिली. लुधियाना नगर निगम के चुनाव में अब तक राधेकृष्ण समेत प्रवासी समुदाय के करीब 3 पार्षद जीत चुके हैं.

नेताओं से क्या चाहते हैं प्रवासी वोटर?

लुधियाना के 5 वार्डों में बहुसंख्यक प्रवासी आबादी है. प्रवासी वोटर चाहते हैं कि राजनीतिक दल उन्हें स्थानीय निकाय चुनावों में ज्यादा टिकटें दें. प्रवासी चाहते हैं कि राज्य विधानसभा में उन्हे प्रतिनिधित्व भी दिया जाए. प्रवासियों की उम्मीदों पर राजनीतिक पार्टियां चुप्पी साध चुकी हैं. उन्हें सही प्रतिनिधित्व अब तक नहीं मिला है. 

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