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UP Election: क्या अकेले रह जाएंगे राहुल-प्रियंका? कई झंडाबरदार परिवारों की नई पीढ़ी ने छोड़ा कांग्रेस का 'हाथ'

प्रियंका गांधी यूपी में कांग्रेस की जड़ें फिर से जमाने में जुटी हैं लेकिन पुराने नेताओं के साथ छोड़ने से उनके लिए चुनौती और भी मुश्किल हो गई है.

UP Election: क्या अकेले रह जाएंगे राहुल-प्रियंका? कई झंडाबरदार परिवारों की नई पीढ़ी ने छोड़ा कांग्रेस का 'हाथ'

Image Credit- Twitter/RahulGandhi

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डीएनए हिंदी: उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी लगातार कमजोर होती जा रही है. राज्य में कांग्रेस की कमान प्रियंका गांधी के हाथों में आने के बावजूद पार्टी के कई बड़े चेहरे अन्य दलों में जा चुके हैं. उत्तर प्रदेश में दशकों तक कांग्रेस के झंडाबरदार रहे अनेक परिवारों की नई पीढ़ी के नेताओं ने भी अब कांग्रेस का 'हाथ' छोड़ दिया है. इनके अन्य दलों में जाने से राज्य में अपना खोया जनाधार पाने की जद्दोजहद कर रही कांग्रेस के लिए यह संघर्ष और भी कड़ा हो गया है.

चाहे कमलापति त्रिपाठी (वाराणसी) हों, बेगम नूर बानो (रामपुर), जितेंद्र प्रसाद (शाहजहांपुर) या कुंवर सीपीएन सिंह (कुशीनगर) हों, इन सभी ने सारी जिंदगी कांग्रेस के प्रति वफादारी निभाई लेकिन उनकी नई पीढ़ियों ने अपने लिए अन्य दलों में संभावनाएं तलाश ली हैं.

इनमें ललितेश पति त्रिपाठी, हैदर अली खान, जितिन प्रसाद और आरपीएन सिंह (RPN Singh) कांग्रेस का 'हाथ' छोड़कर दूसरे दलों में चले गए हैं. पहले ही उत्तर प्रदेश में अपना खोया जनाधार हासिल करने के लिए जद्दोजहद कर रही कांग्रेस के लिए अब यह संघर्ष और भी मुश्किल हो गया है.

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जितिन प्रसाद और आरपीएन सिंह ने भाजपा का दामन थाम लिया है जबकि हैदर अली खान अपना दल-सोनेलाल में शामिल हुए हैं. वह रामपुर की स्वार सीट से टिकट भी हासिल कर चुके हैं. ललितेश पति त्रिपाठी ने ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस का झंडा थाम लिया है.

कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता पीएल पुनिया ने कहा, "पहली बात तो यह है कि इन नेताओं का महत्व कांग्रेस की वजह से था ना कि इनकी वजह से कांग्रेस का. हो सकता है कि आपके प्रभावशाली पारिवारिक पृष्ठभूमि से कुछ असर पड़ता हो लेकिन इन नेताओं के पार्टी छोड़ने को हम अपने लिए झटका नहीं मानते."

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पिछली 25 जनवरी को कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए आरपीएन सिंह के बारे में पुनिया ने कहा, "कांग्रेस जब सत्ता में थी तब RPN सिंह को जो भी दिया जा सकता था, वह दिया गया. बाद में उन्हें झारखंड में पार्टी का प्रभारी बनाया गया. उन्हें कांग्रेस कार्यसमिति में निर्णय लेने की स्थिति में रखा गया और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्हें पार्टी के स्टार प्रचारक के तौर पर भी चुना गया था. अब किसी को इससे ज्यादा और क्या महत्व दिया जा सकता है?"

 ललितेश पति त्रिपाठी के दादा कमलापति त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं.

नूर बानो परिवार के वारिस हैदर अली खान को कांग्रेस ने चुनाव का टिकट दे दिया था लेकिन उसके बाद वह भाजपा के सहयोगी अपना दल सोनेलाल में चले गए. वह रामपुर की स्वार सीट से चुनाव लड़ेंगे जिसे सपा सांसद आजम खान का गढ़ माना जाता है. ब्रिटिश यूनिवर्सिटी से स्नातक 32 वर्षीय हैदर नवाब काजिम अली उर्फ नवेद मियां के बेटे हैं. काजिम कई दलों में रह चुके हैं लेकिन वर्ष 2019 में वह फिर कांग्रेस में लौट आए थे.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस के उपाध्यक्ष थे. जितिन के दादा ज्योति प्रसाद भी कांग्रेस से ही जुड़े थे. जितेंद्र प्रसाद वर्ष 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और उसके बाद 1994 में पीवी नरसिम्हा राव के राजनीतिक सलाहकार थे. वर्ष 2000 में उन्होंने सोनिया गांधी के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव लड़ा था.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी की जड़ें फिर से जमाने में जुटी हैं लेकिन पार्टी के पुराने नेताओं के साथ छोड़ने से उनके लिए चुनौती और भी मुश्किल हो गई है. कांग्रेस ने वर्ष 2017 का विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर लड़ा था और उसे महज सात सीटें ही मिल सकी थीं.

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली के दायरे में आने वाली दो सीटों पर निर्वाचित हुए विधायक अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं. पुनिया कहते हैं, "ऐसा लगता है कि इन नेताओं ने स्वार्थ की वजह से कांग्रेस छोड़ी है. इन नेताओं ने यह सोचा कि उन्हें राज्य या केंद्र में कोई बड़ा पद मिल जाएगा क्योंकि भाजपा इस वक्त सत्ता में है."

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