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ITR: रेंट पर भी देना पड़ता है टैक्स, आखिर कैसे होता है कैलकुलेट

Income Tax: अगर आपके फ्लैट या घर है और आप उसपर रेंट लेते हैं या नहीं लेते हैं तो भी इनकम टैक्स विभाग आपसे उसपर टैक्स वसूलेगा.

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ITR: रेंट पर भी देना पड़ता है टैक्स, आखिर कैसे होता है कैलकुलेट

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डीएनए हिंदी: आयकर रिटर्न (Income Tax Return) भरने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. आयकर रिटर्न (ITR) में आयकरदाताओं को अपनी इनकम के सभी स्रोतों की जानकारी आयकर विभाग को देनी होती है. इसके अलावा अगर आप किरायेदार नही भी रखते हैं तो एक खास स्थिति में बिना रेंट लिए भी आपको टैक्स देने की जरूरत हो सकती है.

हाऊस प्रॉपर्टी इनकम, किराये से मिलने वाली रकम को कहा जाता है. हाऊस प्रॉपर्टी के अंतर्गत मकान, अपार्टमेंट के साथ-साथ दुकान, कारखाना और ऑफिस स्पेस भी शामिल होता है. आपके अपने पर्सनल यूज के लिए 2 मकानों पर सरकार टैक्स में छूट देती है. पर्सनल यूज वाले मकान या घर को सेल्फ ऑक्यूपाइड प्रॉपर्टी कहा जाता है. इसपर सरकार आपसे टैक्स नहीं लेती है.

नोशनल रेंट (Notional Rent) के मुताबिक, अगर आपके पास 2 से ज्यादा घर है तो तीसरा घर सेल्फ ऑक्यूपाइड प्रॉपर्टी नहीं माना जाता है और इस घर पर आपको रेंट मिले या न मिले सरकार को टैक्स देना जरूरी होता है. 

यह भी पढ़ें:  ITR Filing: म्यूचुअल फंड बिक्री से हुए कैपिटल गेन के बारे में ITR को दें पूरी डिटेल, वरना हो सकती है परेशानी

ध्यान रहे कि आपको अपनी सभी हाऊस प्रॉपर्टीज के रेंट की जानकारी अलग-अलग देनी होती है. इसके लिए आपको आईटीआर फॉर्म 2/3/4 में से जो भी आप पर लागू होता है. उसका इस्तेमाल कर आप अपना आईटीआर रिटर्न भर सकते है. 

नोशनल रेंट को कैलकुलेट करने के लिए तीन तरह के रेंट होते हैं जो सालाना किराया को ध्यान में रखकर तैयार किए जाते हैं. इसमें तीन फैक्टर जैसे स्टैंडर्ड रेंट, म्युनिसिपल रेंट और फेयर रेंट शामिल होते है. 

फेयर रेंट उसे कहते है जो ये दिखाता है कि उस इलाके में कोई और प्रॉपर्टी आपके जितना रेंट जेनरेट कर रहा है या नहीं. बता दें कि  म्युनिसिपाल्टी, म्युनिसिपल रेंट तय करता है. रेंट कंट्रोल एक्ट के द्वारा स्टैंडर्ड रेंट तय किया जाता है. इससे किरायेदारों को ये फायदा होता है कि मकान मालिक उससे ज्यादा किराया नहीं ले सकता है.  

बता दें कि स्टैंडर्ड रेट फिक्स्ड होता है और इसकी तुलना म्यूनिसिपल रेंट और फेयर रेंट की ऊपरी सीमा से की जाती है. इन दोनों रेटों में से जो भी कम आता है. उसे नोशनल रेंट कहा जाता है. इसी के आधार पर आपको टैक्स देना होता है.

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