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Haryana Assembly Elections 2024: हरियाणा में मतदान से पहले बाहर निकले Arvind Kejriwal, 5 पॉइंट में पढ़ें AAP के लिए कितना बदलेगा चुनाव?

Haryana Assembly Elections 2024: सुप्रीम कोर्ट ने जमानत की शर्तों में Arvind Kejriwal को हरियाणा में चुनाव प्रचार में शामिल होने की इजाजत दे दी है. हरियाणा केजरीवाल का गृह राज्य भी है. ऐसे में क्या उनके बाहर निकलने से मतदान पर क्या प्रभाव होगा, चलिए हम बताते हैं.

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Haryana Assembly Elections 2024: हरियाणा में मतदान से पहले बाहर निकले Arvind Kejriwal, 5 पॉइंट में पढ़ें AAP के लिए कितना बदलेगा चुनाव?
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Haryana Assembly Elections 2024: हरियाणा विधानसभा चुनावों का प्रचार अभियान चरम पर है. राज्य में 5 अक्टूबर को मतदान होना है और 8 अक्टूबर को रिजल्ट सामने आ जाएगा. इस बार कांग्रेस, भाजपा, इनेलो और जजपा की फाइट के बीच आम आदमी पार्टी (AAP) ने भी अकेले दम पर दावा ठोककर चौंकाया हुआ है. कांग्रेस के साथ सीट बंटवारे में सहमति नहीं बनने के बाद आप ने सभी 90 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं. ऐसे में अपने स्टार कैंपेनर और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत ने आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) की बांछे खिला दी हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की तरफ से दर्ज दिल्ली शराब नीति केस में तिहाड़ जेल में बंद केजरीवाल को जमानत दे दी है. प्रवर्तन निदेशालय (ED) की तरफ से चल रही इस मामले से जुड़ी मनी लॉन्ड्रिंग की जांच में भी केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने 12 जुलाई को ही जमानत दे दी थी. इसके चलते शुक्रवार शाम को अरविंद केजरीवाल जेल से रिहा हो गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने जमानत पर रिहा करने के लिए रखी शर्तों में केजरीवाल के हरियाणा में चुनाव प्रचार करने पर कोई रोक नहीं लगाई है. इससे यह साफ हो गया है कि अब केजरीवाल के गृह राज्य हरियाणा में आप का चुनाव प्रचार अभियान उनके ही इर्द-गिर्द घूमेगा. 

केजरीवाल के प्रचार करने से बाकी पार्टियों के समीकरण प्रभावित होंगे या नहीं? इस सवाल का जवाब हम आपको 5 पॉइंट्स में दे रहे हैं.

1. हिसार है केजरीवाल की मातृभूमि, क्या काम आएगा ये भावनात्मक नाता?

अरविंद केजरीवाल भले ही दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं और उनकी राजनीतिक यात्रा देश की राजधानी से ही शुरू हुई है, लेकिन हरियाणा उनका गृह राज्य है. अरविंद केजरीवाल की मातृभूमि हिसार के खेड़ा में है, जहां उनका पैतृक घर है. इसके चलते हरियाणा के लोगों के साथ केजरीवाल का एक भावनात्मक जुड़ा माना जाता रहा है. हालांकि पिछले चुनाव देखें जाए तो अब तक ये नाता खास काम नहीं आया है, लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है. इस बार हरियाणा में अब तक हुए चुनाव प्रचार में अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल (Sunita Kejriwal) ने कमान संभाली है, जो केजरीवाल को भाजपा की तरफ से जानबूझकर सताया जा रहा 'हरियाणा का बेटा' कहकर मतदाताओं को खींचने की कोशिश कर रही हैं. उनकी रैलियों में भारी भीड़ भी जुटी है, जिसे मतदाताओं का कांग्रेस-भाजपा और चौटाला परिवार की इनेलो-जजपा की राजनीति से इतर नया विकल्प तलाशने की कोशिश बताया जा रहा है.

2. पिछले चुनावों में खास नहीं रहा आप का प्रदर्शन

आप का चुनावी प्रदर्शन हरियाणा में अब तक कुछ खास नहीं रहा है. साल 2019 के विधानसभा चुनाव में 46 सीटों पर पार्टी ने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन 0.48% वोट ही ले सकी थी. लोकसभा चुनाव-2019 में भी आप को 3 सीटों पर महज 0.36% वोट मिले थे. हालांकि लोकसभा चुनाव-2024 में आप को कांग्रेस से गठबंधन के चलते महज कुरुक्षेत्र सीट पर उम्मीदवार उतारने का मौका मिला था. इस चुनाव में AAP के सुशील गुप्ता ने 513154 वोट हासिल कर सभी को चौंका दिया था. उन्होंने 4 विधानसभा सीटों पर BJP के नवीन जिंदल (Navin Jindal) को पछाड़ दिया था, जिनके कुरुक्षेत्र सीट को मजबूत गढ़ माना जाता है. सुशील गुप्ता इस जोरदार प्रदर्शन के बावजूद जिंदल से महज 29,021 वोट से हार गए थे. हालांकि आप के इस जोरदार प्रदर्शन के पीछे कांग्रेस का समर्थन भी बड़ा कारण था, लेकिन इस प्रदर्शन ने ही आप को विधानसभा चुनाव में मजबूती से उतरने का हौसला दिया है.

3. केजरीवाल के आने से AAP को और ज्यादा मिलेगा 'बागी' का साथ

हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार आप के लिए इस कारण भी बड़ा मौका माना जा रहा है, क्योंकि कांग्रेस और भाजपा को उनके 'बागियों' ने कमजोर कर रखा है. भाजपा पहले ही लगातार 10 साल सत्ता में रहने की इनकंबेंसी के खतरे से गुजर रही है, जिसका असर लोकसभा चुनाव 2024 में भी उसका वोट प्रतिशत 58% से घटकर 46% रह जाने के तौर पर दिखा था. भाजपा-कांग्रेस के बागी नेता उनकी वोट काटेंगे, लेकिन फिलहाल अधिकतर इलाकों में इनका रुख दुष्यंत चौटाला की JJP और अभय चौटाला की INLD के पक्ष में नहीं है. ऐसे में AAP के लिए यह सुनहरा मौका हो सकता है. AAP की लिस्ट में करीब 10 सीटों पर ऐसे कैंडीडेट्स के नाम हैं, जो पिछले विधानसभा चुनावों में बढ़िया प्रदर्शन कर चुके हैं. इस बार ये कैंडीडेट भाजपा और कांग्रेस की आपसी फूट के बीच कमाल कर सकते हैं. साथ ही कम से कम 10 सीट पर भाजपा और कांग्रेस की वोट काटकर उन्हें नुकसान भी पहुंचा सकते हैं. अरविंद केजरीवाल की रिहाई से भाजपा-कांग्रेस को हराने के लिए 'बागी' नेता उनसे जुड़ सकते हैं. 

भाजपा के बागी नेताओं में से हिसार में सावित्री जिंदल, सोनीपत में पूर्व सीएम मनोहरलाल खट्टर के मीडिया एडवाइजर रहे राजीव जैन, पुंडरी सीट पर पूर्व विधायक दिनेश कौशिक और पानीपत सिटी सीट पर हिमांशु गर्ग ने निर्दलीय पर्चा भरा है. इसी तरह कांग्रेस के बागी नेताओं में कलायत सीट पर 6 नेताओं ने निर्दलीय पर्चा भरा है. कोसली सीट पर मनोज कोसलिया, बाढड़ा सीट पर सोमबीर घसौला, फरीदाबाद सीट पर शारदा राठौर, पानीपत सिटी सीट पर पूर्व विधायक रोहिता रेवड़ी, बरवाला सीट पर संजना सातरोड शामिल हैं. ये सभी वे सीट हैं, जहां केजरीवाल के चलते AAP अपने लिए अच्छी संभावना मान रही है.

4. शहरी इलाकों में केजरीवाल के आने से मिलेगा पार्टी को लाभ

हरियाणा में आप का फोकस पहले से ही शहरी और कस्बाई इलाकों में ज्यादा है, जहां सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाले और मोबाइल पर खबरों में दिलचस्पी लेने वाला युवा वर्ग भरपूर संख्या में है. हरियाणा के शहरी मतदाता भाजपा से जुड़ाव वाले माने जाते रहे हैं, लेकिन आप ने इनमें सेंध लगाई तो भगवा दल को नुकसान हो सकता है. दिल्ली से सटे गुरुग्राम, फरीदाबाद, सोनीपत जैसे इलाके राष्ट्रीय राजधानी की नीतियों से प्रभावित होते हैं. इसके चलते वहां दिल्ली में AAP सरकार की फ्री बिजली, महिलाओं के लिए फ्री बस सेवा, फ्री पेयजल, मोहल्ला क्लीनिक और एजुकेशन जैसी सुविधाओं से इन इलाकों के मतदाता प्रभावित होते हैं. इस कारण इन इलाकों की विधानसभा सीटों पर अरविंद केजरीवाल का प्रचार करना आप के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. पानीपत, हिसार, कुरुक्षेत्र, करनाल जैसे शहरों में भी केजरीवाल की मौजूदगी आप को जनता से जोड़ सकती है.

5. केजरीवाल के प्रचार करने पर जुड़ सकते हैं किसान नेता

जातीय समीकरणों के बीच किसान हरियाणा में सबसे बड़ा वोटबैंक है, जिसे भाजपा के खिलाफ बताया जा रहा है और कांग्रेस व जजपा से उसका मोहभंग हो चुका है. इनेलो पहले जैसी मजबूत पार्टी नहीं रही है. ऐसे में कई किसान संगठनों से जुड़े किसानों का रुख अरविंद केजरीवाल के चुनाव प्रचार में उतरने के बाद उनकी पार्टी की तरफ मुड़ सकता है. दरअसल, दिल्ली में किसान संगठनों के करीब एक साल तक डेरा डाले रखने के दौरान अरविंद केजरीवाल की सरकार ने उनके लिए बिजली-पेयजल से लेकर शौचालय तक की सुविधाएं उपलब्ध कराई थी. केजरीवाल ने किसानों के आंदोलन का समर्थन भी किया था. इसके बाद पंजाब में भी किसानों के आंदोलन के दौरान राज्य में भगवंत मान (Bhagwant Maan) के नेतृत्व वाली आप सरकार का रुख नर्म ही रहा है. इन सब कारणों से किसान AAP की तरफ झुक सकते हैं.

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