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Chandigarh MMS Row: सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक कंटेंट कैसे फैलने से रोकती हैं इन्वेस्टिगेटिव एजेंसियां?

MMS Row: जांच एजेंसिया हमेशा उस मीडियम की तलाश करती हैं, जहां से आपत्तिजनक सामग्रियों को इंटरनेट पर अपलोड किया जाता है.

Chandigarh MMS Row: सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक कंटेंट कैसे फैलने से रोकती हैं इन्वेस्टिगेटिव एजेंसियां?

चंडीगढ़ में विश्वविद्यालय के MMS कांड पर लोगों का फूट रहा है गूस्सा.

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डीएनए हिंदी: चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी (Chandigarh Universtity) में छात्राओं का वीडियो वायरल होने के बाद पंजाब पुलिस (Punjab Police) के सामने स्थिति से निपटने की चुनौती है. सोशल मीडिया (Social Media) पर ऐसे कंटेंट वायरल होने से कैसे रोके जाएं, किस तरह से ऑपरेटिंग चैनल को ब्लॉक किया जाए, इसे लेकर अभी तक कोई स्पष्ट सिस्टम विकसित नहीं हो सका है.
 
जब जांच एजेंसियों के सामने किसी भी तरह के एमएमएस या दूसरी आपत्तिजनक सामग्री से संबंधित केस सामने आता है तो वे प्राथमकिता से पहले सोर्स तलाशती हैं. जांच एजेंसियां उस मीडियम की तलाश करती हैं जिनके जरिए तस्वीर, वीडियो या ऑडियो फैलाया जाता है.

आमतौर पर जांच एजेंसियां पहले गिरफ्तार किए गए आरोपी के खुलासे पर भरोसा करती हैं. जांच एजेंसियों के लिए पहला सोर्स, वही होता है जिसकी गिरफ्तारी पहली होती है. उसी से पूछा जाता है कि कैसे आपत्तिजनक सामग्री को सर्कुलेट किया गया था, शेयर करने के लिए किस मीडियम का इस्तेमाल किया गया था. एजेंसियां ऐसे संवेदनशील मामलों को फेसबुक, WhatsApp और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के सामने उठाती हैं.

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पहला आरोपी ही केस सुलझाने में करता है मदद

जैसे ही जांच एजेंसियों को यह पता चल जाता है कि मीडियम का सोर्स क्या है, एजेंसिया उन प्लेटफॉर्म्स पर कंटेंट को तलाशने लगती हैं, जहां ऐसी सामग्री अपलोड हुई है. मीडियम की पहचान सामने आने के बाद से ही जांच एजेंसियां उस सोर्स के अधिकारी और मुख्यालयों से संपर्क करती हैं. 

सोशल मीडिया.

सामान्यतौर पर कंपनियों से संपर्क साधने के बाद जांच एजेंसी उस चैनल से डिवाइस का फोन नंबर और आईपी एड्रेस मांगती है. इससे उस डिवाइस को ट्रैक करने की कोशिश की जाती है, जिसके जरिए आपत्तिजनक या संवेदनशील सामग्री को वायरल किया गया है. सामान्य स्थितियों में ऐसे केस सुलझाने के लिए जांच एजेंसियां इसी तरीके को अपनाती हैं.

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...इन मामलों पर होता है तत्काल ऐक्शन

दूसरा आपातकालीन प्रतिक्रिया है. जब मामला राष्ट्रीय सुरक्षा, बाल शोषण और लाइफ थ्रेट से संबंधित होता है तब इमरजेंसी मोड में जांच एजेंसियां पता लगाती हैं. सोशल मीडिया की रेग्युलेटरी बॉड अधिकारियों के आवेदन पर तत्काल ऐक्शन लेती हैं. 

सोशल मीडिया.

ऐसे अनुरोध तभी माने जाते हैं जब जांच एजेंसिया अपना मैसेज सोशल मीडिया के हेडक्वार्टर तक सही तरीके से पहुंचा पाती हैं. एक बार जब नियामक प्राधिकरण संतुष्ट हो जाते हैं तो वे अपने प्लेटफॉर्म से सामग्री को तुरंत हटा देते हैं.

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क्या सीधे सोशल मीडिया साइट्स से किया जा सकता है संपर्क?

इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी रूल्स, 2021 के मुताबिक पीड़ित या पीड़िता किसी भी सोशल मीडिया साइट के शिकायत निवारण अधिकारी से स्वतंत्र रूप से या किसी जांच एजेंसी के माध्यम से सीधे संपर्क कर सकता है. फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर सहित सभी प्रमुख सोशल साइट्स अधिसूचित नियमों के अनुसार भारत में अपने अधिकारियों को नियुक्त करने क  लिए बाध्य हैं.

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शिकायत अधिकारी चौबीस घंटे के भीतर शिकायत को स्वीकार करने और इसकी तारीख से पंद्रह दिनों की अवधि के भीतर ऐसी शिकायत का निपटान करने के लिए बाध्य है. संबंधित चैनल भी बाध्य है कि ऐसी स्थिति में उस चैनल से आपत्तिजनक कंटेंट हटा दे.

एमएमएस

संशोधित आईटी नियम, 2021 के भाग 2 के मुताबिक वह सामग्री जो किसी व्यक्ति के प्राइवेट पार्ट को दिखाती है, या पूर्ण या आंशिक नग्नता दिखाती है, किसी सेक्सुअल एक्ट को दिखाती है तो ऐसे कंटेंट को हटा दिया जाए. कई बार ऐसे कंटेंट को रेग्युलेट करने के लिए भी कहा जाता है. 

क्या संदिग्ध की पहचान करना, कंटेंट डिलीट करना, हटाना है आसान?

ऐसे कंटेंट को रेग्युलेट करना हर प्लेटफॉर्म पर बेहद मुश्किल है. WhatsApp जैसे प्लेटफॉर्म पर कंटेंट रेग्युलेट करना और ज्यादा मुश्किल होती है. यह मैसेजिंग ऐप एंड टू एंड एन्क्रिप्शन को परमिशन देता है. फेसबुक या ट्विटर पर यूजर्स को आइडेंटिफाई करना बेहद मुश्किल है.

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 फेसबुक या ट्विटर के मामले में जांच एजेंसी संदिग्ध की पहचान उनके अकाउंट के जरिए कर सकती  है, चाहे वह फर्जी हो या फर्जी पहचान के आधार पर बनाई गई है. WhatsApp बेहद तेज मैसेजिंग ऐप है. यहां फोटो, ऑडियो और वीडियो तेजी से वायरल होते हैं. यहां अपलोडिंग चैनल भी सिर्फ यही ऐप होता है.

क्राइम.

ऐसे प्लेटफॉर्म के जरिए कंटेंट को एकसाथ कई लोगों को भेजा जा सकता है. आपत्तिजनक कंटेंट को रेग्युलेट करने के लिए WhatsApp की एक्शन ले सकता है. किसी भी एक्शन के लिए सबसे पहले ओरिजनल सोर्स को ट्रेस करना बेहद मुश्किल होता है. जांच एजेंसियां इसी वजह से पहले उस प्लेटफॉर्म के बारे में जानना चाहती हैं जहां पहली बार कंटेंट अपलोड होता है.

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