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New Bail Act: जमानत के बावजूद क्यों नहीं हो पाती कैदियों की रिहाई? क्या है कानून और क्यों हो रही बदलाव की मांग

New Bail Act: सुप्रीम कोर्ट ने देशभर की जेलों से ऐसे कैदियों का रिकॉर्ड मांगा है जो जमानत के बाद रिहा नहीं हो पाए हैं.

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New Bail Act: जमानत के बावजूद क्यों नहीं हो पाती कैदियों की रिहाई? क्या है कानून और क्यों हो रही बदलाव की मांग

जमानत के बावजूद कैदियों की रिहाई ना होने पर कोर्ट ने चिंता जाहिर की है. 

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डीएनए हिंदीः राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) ने हाल में इस बात को लेकर चिंता जताई थी कि छोटे अपराध करने वालों को भी काफी समय तक जेल में रखा जाता है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के सभी जेल अधिकारियों से ऐसे कैदियों की जानकारी 15 दिन में राष्ट्रीय विधि सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority) यानी नालसा (NALSA) को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है. आखिर जमानत के बाद भी कैदियों को जेल में ही क्यों रहता पड़ता है और इसे लेकर देश का कानून क्या कहता है, इसे विस्तार से समझते हैं. 

जमानत को लेकर कहता है कानून?
भारत में CrPC यानी दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय दंड संहिता (IPC) को लेकर कानून पूरी तरह वर्गीकृत है. सीआरपीसी में जमानत को लेकर कोई व्याख्या नहीं की गई है लेकिन आईपीसी में जमानत और गैर जमानत धाराओं को लेकर कानून वर्गीकृत है. सीआरपीसी के मामलों में जमानत देने का अधिकार मजिस्ट्रेट को दिया गया है. ऐसे मामलों में मजिस्ट्रेट कोर्ट से जमानत या बेल बॉन्ड पर कैदियों को छोड़ दिया जाता है. वहीं गैर जमानती अपराधों में पुलिस अपनी को बिना वारंट के भी गिरफ्तार कर सकती है. इतना ही नहीं मजिस्ट्रेट को ही यह तय करने का भी अधिकार है कि कौन सा अपराधी रिहा करने योग्य है और कौन सा नहीं. 

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ब्रिटेन के कानून को लेकर दी गई सीख 
भारत में अधिकांश कानून ब्रिटिश शासनकाल के हैं. हालांकि जमानत को लेकर ब्रिटेन का कानून काफी अलग है. खुद सुप्रीम कोर्ट ने भी इससे सीख लेने की सलाह दी है. ब्रिटेन में 1976 में जेल में कैदियों की संख्या कम करने को लेकर एक कानून बनाया गया था. इशमें जमानत को जनरल राइट यानी सामान्य अधिकार माना गया है. इस कानून के मुताबिक अगर किसी अपराधी को जमानत से रोकना है तो पुलिस को यह साबित करना होगा कि अपराधी जेल से छूटने के बाद सरेंडर नहीं करेगा, फिर कोई अपराध करेगा या वह गवाहों को प्रभावित कर सकता है. 

क्यों पड़ी नए कानून की जरूरत?
भारत में जेलों में उनकी क्षमता से अधिक कैदी है. कई जेल ऐसी भी हैं जो कैदियों की संख्या के कारण ओवरलोड हैं. आंकड़ों को देखें तो कुल कैदियों में दो-तिहाई से ज्यादा ऐसे कैदी हैं, जो अपने मुकदमों की सुनवाई का इंतजार करते हुए जेल में बंद हैं. कानूनी प्रक्रिया धीमी होने के कारण कैदियों को कई महीनों और कई मामलों में तो सालों पर जेल में रहना पड़ता है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने भी नए कानून को लेकर सुझाव दिया है.  

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स्वतंत्रता का अधिकार पर छिड़ी बहस
सुप्रीम कोर्ट ने भी पिछले दिनों कहा कि संविधान में स्वतंत्रता को लेकर काफी अहमियत दी गई है. अदालतों पर इसकी जिम्मेदारी है कि वह इसका पूरी तरह से पालन करे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वक्त की जरूरत है कि प्रक्रिया में कुछ बदलाव होने चाहिए. जमानत के बाद भी विचाराधीन कैदियों को लंबा इंतजार करना पड़ता है. 

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