डीएनए एक्सप्लेनर
मणिपुर के अलग-अलग समुदायों के बीच भीषण असंतोष है, जिन्हें भांपने में सरकारें बुरी तरह असफल रही हैं. जातीय संघर्ष के खतरे पूर्वोत्तर के राज्यों में, दूसरे राज्यों की तुलना में कहीं अधिक हैं.
डीएनए हिंदी: मणिपुर जल रहा है. किसी भी राज्य में इतना भीषण और वीभत्स जातीय संघर्ष हाल के दिनों में नजर नहीं आया है. मणिपुर में इतनी हिंसक झड़पें बीते एक दशक में नहीं हुई हैं. ऐसा लग रहा है कि एक बार फिर पूर्वोत्तर का यह राज्य हिंसा में बुरी तरह झुलस गया है. यह साल, मणिपुर के लिए संघर्ष का साल रहा है.
हालिया झड़प की शुरुआत 3 मई को हुई जब ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) ने 'आदिवासी एकजुटता मार्च' के दौरान अलग-अलग जगहों पर हिंसा फैलाई. सेना और असम राइफल्स ने हिंसा पर काबू पाने के लिए फ्लैग मार्च को निकाला लेकिन हिंसा थमी नहीं. इस दौरान कर्फ्यू लागू हुआ, इंटरनेट सस्पेंड किया गया लेकिन न तो विरोध कम हुआ, न हिंसा थमी.
मैतेई ट्राइब यूनियन की एक याचिका पर मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए कहा था. आदिवासी एकजुटता मार्च इस आदेश के खिलाफ बुलाया गया था.
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हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर अनुसूचित जनजातियों (ST) की राज्य सूची में मैतेई समुदाय को शामिल करने के लिए केंद्र की सिफारिश को लागू करने का आदेश दिया था. हाई कोर्ट ने मई 2013 में जनजाति मंत्रालय के एक पत्र का जिक्र करते हुए यह आदेश जारी किया था.
क्या है मैतेई और जनजातियों के बीच टकराव की वजह?
14 अप्रैल को जब कोर्ट ने आदेश दिया तो घाटी में रहने वाला मैतेई समुदाय और राज्य की पहाड़ी जनजातियों के बीच संघर्ष तेजी से बढ़ गया. मैतेई, नागा और कुकी के बीच जातीय संघर्ष बेहद पुराना है. इन सब वजहों से इतर एक वजह ऐसा भी है, जो इस हिंसा के लिए जिम्मेदार है, वह है अफीम की खेती और ड्रग्स के खिलाफ चल रहा अभियान.
मणिपुर इंफाल घाटी और पहाड़ी इलाकों में बंटा है. मणिपुर के 60 विधानसभा क्षेत्रों में से 40 घाटी क्षेत्रों में हैं, जिनमें छह जिले शामिल हैं- इंफाल पूर्व, इंफाल पश्चिम, थौबल, बिष्णुपुर, काकचिंग और कांगपोकपी. शेष 20 सीटें अन्य 10 जिलों में फैली हुई हैं. मैतेई समुदाय के वर्चस्व वाले घाटी जिले, मुख्य रूप से हिंदू बाहुल क्षेत्र हैं. नागा और कुकी जनजातियों के वर्चस्व वाले पहाड़ी जिलों में ज्यादातर ईसाई हैं. तीनों समुदायों के बीच जातीय प्रतिद्वंद्विता का एक लंबा इतिहास रहा है.
पहाड़ी जनजातियों का कहना है कि जो लोग इंफाल घाटी में रहते हैं, उन्हें मणिपुर में हर योजनाओं का लाभ मिलता है. वह पहाड़ी जनजातियों का हक मार लेते हैं. जनजातियां अपनी ही जमीन में सिमटती जा रही हैं. उन पर ध्यान नहीं दिया जाता है. नौकरियों और संवैधानिक संस्थाओं पर उनका कब्जा है.
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पहाड़ी जनजाति समूहों को लगता है कि अगर मैतेई को भी जनजाति का दर्जा मिला तो हालात बद से बदतर हो जाएंगे. उन्हें नौकरियां नहीं मिलेंगी और पहाड़ों पर जमीन खरीदने का अधिकार भी उन्हें मिल जाएगा. मैतेई से संघर्ष की सबसे बड़ी वजह यही है.
2011 की जनगणना के अनुसार मणिपुर की जनसंख्या 28,55,794 है. इसमें से 57.2 फीसदी घाटी के जिलों में और बाकी 42.8 फीसदी पहाड़ी जिलों में रहते हैं. मैदानी इलाकों में मुख्य रूप से मैतेई समुदाय के लोग रहते हैं. पहाड़ों पर नागा, कुकी जैसी जनजातियां रहती हैं. जनजातियां पहाड़ी क्षेत्रों पर अपना एकाधिकार समझती हैं, वहीं मैतेई समुदाय पहाड़ों पर अपना अधिकार चाहता है. मैतेई समुदाय का कहना है कि वे अपनी ही जमीन पर सिमटते जा रहे हैं.
क्यों जनजाति दर्जा मांग रहे हैं मैतेई?
कई संगठन मैतेई समुदाय को आदिवासी दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. मैतेई समुदाय का कहना है कि 1949 में भारत संघ के साथ मणिपुर की रियासत के विलय से पहले मैतेई समुदाय को जनजाति की मान्यता मिली थी. विलय के बाद एक उनकी जनजातीय पहचान खत्म हो गई. मैतेई मांग कर रहे हैं कि उनके समुदाय को सुरक्षा मिले, मैतेई लोगों की पूर्वज भूमि, परंपरा, संस्कृति और भाषा को बचाया जाए, वह अपनी जातीय पहचान वापस चाहते हैं.
कितना मजबूत है मैतेई समाज?
मैतेई समाज बेहद मजबूत है. 60 सदस्यीय विधानसभा में 40 विधायक मैतेई समाज के हैं. एन बीरेन सिंह खुद इसी समाज से आते हैं. आदिवासी समूह यह भी बताते हैं कि मैतेई समुदाय पहले से ही अनुसूचित जाति (SC) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के तहत वर्गीकृत है. कुछ ऊंची जातियां भी इसी समुदाय से आती हैं. मैतेई समुदाय की भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है. यह समाज बेहद मजबूत है. यही वजह है कि पहाड़ी जनजातियां इस समुदाय के खिलाफ हिंसक विरोध पर उतर आई हैं.
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ये है मणिपुर हिंसा की इनसाइड स्टोरी
मैतेई बनाम पहाड़ी जनजातियों के बीच हिंसा की एक वजह मौजूदा सरकार का रुख भी है. एन बीरेन सिंह का एंटी ड्रग अभियान भी है. मणिपुर के कई पहाड़ी क्षेत्रों में, गरीब ग्रामीण अतिरिक्त आय के लिए अफीम की अवैध खेती करते हैं.
बीते एक साल में बीरेन सिंह सरकार ने अफीम की खेती और ड्रग के खिलाफ व्यापक स्तर पर अभियान चलाए हैं. इस अभियान से सबसे ज्यादा कुकी समुदाय प्रभावित है. यही वजह है कि मैतेई समाज के खिलाफ इस समुदाय की नफरत और बढ़ गई है.
सरकार के इस अभियान का असर म्यांमार से आए अवैध प्रवासियों पर भी पड़ रहा है. मणिपुर के कुकी-जोमी जनजाति का करीबी यह समुदाय भी हिंसा में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहा है.
अब कैसे हैं मणिपुर में हालात?
मणिपुर की राजधानी इंफाल समेत कई इलाके ऐसे हैं जहां हिंसा भड़की है. हालात बेहद तनावपूर्ण हैं. 9,000 से ज्यादा लोगों को हिंसा प्रभावित जगहों से विस्थापित किया गया है. आग की लपट में सैकड़ों लोग हैं. राज्य में हिंसा भड़काने वाले लोगों के खिलाफ शूट एट साइट का ऑर्डर जारी हुआ है. चप्पे-चप्पे पर भारतीय सेना और CRPF के जवान तैनात हैं. अभी राज्य में हिंसा काबू में नहीं आई है.
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