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Frederick William Herschel: खगोल विज्ञान का ध्रुव-तारा जिसे आज भूल गई है दुनिया

पश्चिमी इंग्लैंड में बाथ के 15 साल के प्रवास में फ्रेडरिक हर्शेल खगोलविद बनकर उभरे. इस सुंदर-रमणीय नगर में उन्होंने कई छात्रों को तालीम दी और सांगीतिक रचनाएं तैयार की.

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Frederick William Herschel: खगोल विज्ञान का ध्रुव-तारा जिसे आज भूल गई है दुनिया

Sir John Frederick William Herschel

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डीएनए हिंदी: वह शानदार ऑर्गन बजा लेता था, बेहतरीन धुनें बना लेता था, आला दर्जे के लेंस बनाने में उसे महारत हासिल थी, लेकिन खगोल उसका पहला इश्क था. आकाश के समंदर में गोते लगाना उसका पसंदीदा शगल था. इससे वह न कभी ऊबता था और न थकता था. आकाशगंगा उसे लुभाती थी. सारी-सारी रात वह जागता, तारों को मुट्ठियों में पकड़ता, हथेली पर उलटाता-पुलटाता और फिर ब्रह्मांड की असीम परात में छोड़ देता. उसकी बहन प्राय: उसके साथ होती. ऑर्गन बजाने से हुई आय से उसने अपने शौक को बरकरार रखा. उसने अपने वक्त की दुनिया की सबसे बड़ी और उम्दा दूरबीन बनायी. अनेक राष्ट्रों के सम्राट उसके ग्राहक थे. उसने तारों को बूझा, उपग्रहों की खोज की, उनके मिजाज को परखा और जैसा कि उसकी समाधि के लेख में अंकित है:‘उसने आकाश मंडलों की सीमाएं तोड़ डालीं.’ 

आजीविका के लिए लिया संगीतज्ञ बनने का फैसला
यह शख्स था, फ्रेडरिक विलियम हर्शेल. जर्मनी के हनोवर नगर में 15 नवंबर, सन् 1738 में जन्मे फ्रेडरिक के पिता आइजक हर्शेल सुसंस्कृत व्यक्ति थे. वे सैन्य दल के शहनाई वादक थे और पुत्र को वही संस्कार देना चाहते थे. फ्रेडरिक की मां अन्ना इल्से मोरीत्जन निरक्षर गृहिणी थीं. उनकी दस संतानों में से चार असमय काल-कवलित हो गयीं. शेष छह को बचपन में ही संगीत की शिक्षा दी गयी. पिता के नक्शे-पर चलकर फ्रेडरिक 17 की वय में पिता के पूर्व मिलिट्री आर्केस्ट्रा हनोवरियन गार्ड्स में शहनाई वादक हो गया. लेकिन उसका भविष्य जर्मनी में नहीं, अपितु इंग्लैंड में था. रेजीमेंट सन् 1976 में इंग्लैंड भेजी गयी. फ्रेडरिक ने रेजीमेंट में दो साल काम किया, अंग्रेजी सीखी और आजीविका के लिए संगीतज्ञ बनने का फैसला किया. फलत: सन् 1757 में फ्रेडरिक भाई एंटोन जैकब के साथ हैम्बर्ग से इंग्लैंड रवाना हुआ. वहां वह रिचमंड में अर्ल ऑफ डार्लिंगटन के वाद्य दल में शामिल हुए. चार साल बिताने के उपरांत उन्होंने कुछ माह हेली फैन्स में बिताये. 9 दिसंबर, 1766 को दक्षिण पश्चिमी इंग्लैंड में एवन नदी के किनारे बसा रोमन साम्राज्य के उत्कृष्ट अवशेषों और नैसर्गिक ऊष्म झरनों के लिए ख्यात बाथ हर्शेल-परिवार की प्रिय गंतव्य सिद्ध हुआ.

भाई से सीखकर बहन भी बन गई खगोलज्ञ
अपने 15 साल के प्रवास में फ्रेडरिक हर्शेल  खगोलविद बनकर उभरे. इस सुंदर-रमणीय नगर में उन्होंने कई छात्रों को तालीम दी और सांगीतिक रचनाएं तैयार की. सन् 1765 में पिता के देहांत के बाद एलेक्जेंडर तो बाथ आया ही, बहन कैरोलीन ल्यूकेटिया हर्शेल (1750-1848) भी 1772 में बाथ आ गयी. दसेक साल बाद कैरोलीन की रुचि खगोल में जागी. वह भाई की छाया बन गई. उसने आठ धूमकेतुओं और एंड्रोमिडा नीहारिका की सहचर नीहारिका की खोज की. वह पहली स्त्री थी, जिसने खगोल विज्ञान में दखल दिया. सन् 1787 में इंग्लैंड के सम्राट ने कैरोलिन के लिए खगोलज्ञ भाई की सहयोगिनी के तौर पर कार्य हेतु 50 पाउंड सालाना वेतन मुकर्रर किया. किसी स्त्री को वैज्ञानिक का मान देने का यह पहला प्रसंग था. भाई के देहांत के बाद कैरोलीन हनोवर लौट गयीं, लेकिन खगोलवेत्ता के तौर पर काम जारी रखते हुए हर्शेल की नीहारिकाओं के परिकलन के मिशन को दुरुस्त करने का काम जारी रखा. 

ऐसे हुई यूरेनस की खोज
बाथ में रहते हुए खगोल हर्शेल भाई-बहन का जुनूं बन गया. बचपने में आइजक के अलाव के पास बैठाकर बच्चों को किस्से सुनाने और आकाश की ओर इंगित कर बातें बताने ने बच्चों में खगोल के प्रति रुचि जगा दी थी. यह जागृति रतजगे का बायस बनी. हर्शेल ने बाथ में खगोल, गणित, कला और प्रकाश विज्ञान के ग्रंथ छान मारे. उसने ग्रीक और इतालवी का गहन अध्ययन भी किया, ताकि प्राचीन ग्रंथ बांच सके. सम्मोहन दिन-ब-दिन बढ़ता गया. हाथों में जल्द ही छोटी-सी दूरबीन भी आ गयी. अब आकाश समीप था. भाई-बहन रात में तभी सोते, जब आकाश चांदनी से भरा होता अथवा आकाश निरभ्र होता.जल्द ही उन्हें अहसास हो गया कि उम्दा दूरबीन के बिना वे आकाश को चप्पा-चप्पा देख नहीं सकेंगे.

उन्होंने एक से एक आला दूरबीनें बनाईं. सन् 1774 में साढ़े पांच फुट की दूरबीन से हौसला और बढ़ा. जल्द ही विलियम और कैरोलिन विश्व के सर्वोत्तम दूरबीन निर्माता बनकर उभरे. शीघ्र ही वह ऐतिहासिक क्षण आया, जब उन्होंने इंग्लैंड के राजा के लिए 48 इंच लेंस की 40 फुट फोकल-लेंथ की विश्व की तदयुगीन विशालतम दूरबीन बनायी. इसी दूरबीन के सहारे हर्शेल ने यूरेनस के दो उपग्रहों-ओविरन व टाइटेनिया तथा शनि के दो उपग्रहों-मीमस व इनसेलेडस की खोज की.सन् 1781 में यूरेनस की खोज हर्शेल की विस्मयकारी महान खोज थी. इससे पुराकाल के पांच ग्रहों में छठवां ग्रह जुड़ा। गैलीलियो व अन्य ने उपग्रह तो खोजे थे, बुनियादी ग्रह नहीं. हर्शेल के उपक्रमों से खगोल की नयी शाखा - तारकीय खगोल- स्टैलर एस्ट्रोनॉमी-स्थापित हुई.  

आकाश मंडल के बारे में की दिलचस्प खोज
सुबोध महंती का कहना सही है कि हर्शेल ने आकाश मंडल के बारे में मनुष्य के बोध को हमेशा के लिए बदल दिया. उन्होंने संपूर्ण दृश्य आकाश का पुनरावलोकन, वर्णन और मापन किया. ऐसा उन्होंने एक नहीं, चार-चार बार किया. अपनी प्रणाली को हर्शेल ने ‘स्वीपिंग’ (बुहारी) या झाडू देना कहा. वे प्रति रात्री आकाश का एक हिस्सा लगभग दो अंश लेकर देखते. उसकी छानबीन करते और अगली रात वहीं से आगे बढ़ते. यह सर्वेक्षण सालोंसाल चलता.उन्होंने नीहारिकाओं, युग्मों, तारों, चरकांति तारों, धूमकेतों और उपग्रहों की खोज में जीवन होम कर दिया. उन्होंने करीब 2500 नीहारिकाओं और 800 युग्म तारों की खोज की और उन्हें सूचीबद्ध का कारनामा कर दिखाया. युग्म तारों की खोज ने प्रथमत: इस बात की पुष्टि की कि न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत सौरमंडल के बाहर भी लागू होता है. हर्शेल को ब्रह्मांड की संरचना में सैद्धआंतिक योगदान का भी श्रेय है. उन्होंने पहलेपहल कहा कि सूर्य अपने ग्रहों, उपग्रहों तथा सौरमंडल में उपस्थित सभी वस्तुओं के साथ गतिमान है। हर्शेल ने पाया कि सूर्य अंतरिक्ष में हर्क्यूलस तारामंडल में स्थित एक बिंदु की ओर गतिशील है, जो उज्ज्वल वेग तारे से अति दूर नहीं है. सन् 1784 में प्रकाशित अपने शोधपत्र ‘ऑन द कंस्ट्रक्शन ऑफ द हैवन्स’ में उन्होंने आकाशगंगा का मॉडल प्रस्तुत किया, जिसमें आकाशगंगा को तारों का असमान पुंज दर्शाया था. नब्बे हजार तारों की गिनती के बाद वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि आकाशगंगा का आकार चक्की के पाट जैसा है और सूर्य आकाशगंगा के केंद्र के निकट स्थित है. परवर्ती अध्ययनों ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि सूर्य हर्शेल की गणना से कुछ अधिक दूर है और आकाश गंगा हर्शेल की कल्पना से अधिक वृहत है.

कई अहम खोज और अध्ययनों में रहा योगदान
हर्शेल ने सन् 1800 में तापमापी और प्रिज्म की मदद से विकिरण की खोज की और ग्यूस्पी पियाजी और हिनरिच विल्हेतम मेथेंस ओलिवर के खोजे नये खगोलीय पिण्ड के लिए सन् 1802 में एस्टरॉयड (ग्राहिका) शब्द ईजाद किया. पृथ्वी के वायु मंडल पर सौर प्रभाव के अध्ययन का सूत्रपात उन्होंने किया. सन् 1821 में रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी ने उन्हें अपना अध्यक्ष चुना. 13 मार्च, 1781 को उन्होंने यूरेनस की खोज की. हर्शेल ने इंग्लैंड के सम्राट के नाम पर इसका नामकरण किया जॉर्ज का तारायानी जार्जियन साइड्स, मगर यह यूरेनस के नाम से चमका. यह एक बड़ी खोज थी. रॉयल सोसायटी ने उसे उसी वर्ष फेलो बनाया, ऑक्ससफोर्ड विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया और यूके तथा आयरलैंड के सम्राट जॉर्ज तृतीय (1738-1820) ने शाही खगोलविद नियुक्त कर वार्षिक वृत्ति तय की. हर्शेल विंडसर के समीप प्रदत्त आवास में पहुंच गया. प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा अब उसकी चेरी थी. लंदन आना जाना खर्चीला था, अत: विलियम और कैरोलीन ने दूरबीन का व्यवसाय शुरू किया. उनके ग्राहकों में स्पेन नरेश, रूस का जार, ऑस्ट्रिया के सम्राट शामिल थे. उन्होंने योहन अलर्ट बोडे (1742-1826), योहानेस हेरोमस श्रोटर (1745-1816), जॉन पौंड (1767-1836) और ग्युस्पी पियाजी (1746-1826) जैसे खगोलविदों को भी दूरबीने बेचीं. हर्शेल ने स्वनिर्मित जिस विशालतम दूरबीन से यूरेनस और शनि के उपग्रहों की खोज की थी, उसे सन् 1839 में उतारा गया. इस अवसर पर उसके पुत्र सर जॉन फ्रेडरिक विलियम हर्शेल (1791-1871) ने विशेष शोकगीत की स्वररचना की. हर्शेल ने आजीविका के लिए श्रमपूरित कठोर जीवन जिया, लेकिन खगोल से प्रेम की लौ को मंद नहीं पड़ने दिया. 50 साल की उम्र में 8 मई, 1788 को धनाढ्य विधवा मेरी पिट से शादी से उसकी आर्थिक दुश्वारियों का अंत हुआ. हर्शेल परिवार श्लोघ में आलीशान भवन में रहने चला गया. अलग रह रही कैरोलीन देर रात भाई के प्रयोगों में मदद के लिए आती और भोर में चली जाती.

हर्शेल की प्रेरणा स्रोत थे तालेमी. उन्होंने टाइको ब्राहे (1540-1601), योहानेस कैपलर (1571-1630) गैलीलियो गैलिली (1564-1642) के काम को आगे बढ़ाया और लाप्लास और न्यूटन के ग्रहों की गति के नियमों को परिष्कृत किया. सन् 1718 में एडमंड हैली (1656-1742) ने तारों की निजी गति की ओर संकेत किया, किन्तु हर्शेल ने स्पष्ट कहा-‘सभी तारे एक प्रकार के नहीं हैं एवं प्रत्येक तारा पृथ्वी से समान दूरी पर नहीं है. तारे स्थिर नहीं हैं, वरन गतिमान हैं. उनमें हलचल मची हुई है.’  विलियम हर्शेल को खगोल विज्ञान में गति और उमंग जगाने का श्रेय जाता है. उन्होंने उसे चुनौती व उत्तेजनापूर्ण बना दिया. सार्थक और खोजपूर्ण जीवन जीकर खगोल विज्ञान का यह चमकीला तारा 25 अगस्त, 1822 को हमारे बीच से लुप्त हो गया.

 

(डॉ. सुधीर सक्सेना लेखक, पत्रकार और कवि हैं.  'माया' और 'दुनिया इन दिनों' के संपादक रह चुके हैं.)

(यहां दिए गए विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)

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