Twitter
Advertisement
  • LATEST
  • WEBSTORY
  • TRENDING
  • PHOTOS
  • ENTERTAINMENT

फोसवाल साहित्य महोत्सव 2023 का आयोजन 3 से 6 दिसंबर तक नई दिल्ली में

Arts and Literature: फोसवाल महोत्सव में भारत सहित नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और श्रीलंका के लेखक, साहित्यकार व कलाप्रेमी भाग लेने पहुंचेंगे. महोत्सव के पहले सत्र में भक्ति, बौद्ध धर्म और सूफीवाद पर विमर्श होगा. बाद के कई सत्रों में दो संवेदनहीन युद्धों की पीड़ा पर विभिन्न वक्ता अपनी राय रखेंगे.

Latest News
फोसवाल साहित्य महोत्सव 2023 का आयोजन 3 से 6 दिसंबर तक नई दिल्ली में

लब्धप्रतिष्ठ लेखिका व फोसवाल की अध्यक्ष पद्मश्री अजीत कौर.

FacebookTwitterWhatsappLinkedin

TRENDING NOW

डीएनए हिंदी : फोसवाल साहित्य महोत्सव इस बार 3 से 6 दिसंबर तक नई दिल्ली में आयोजित किया जा रहा है. फोसवाल (पहले इसे सार्क महोत्सव कहते थे) का यह 64वां महोत्सव है. इसका आयोजन 'फाउंडेशन ऑफ सार्क राइटर्स एंड लिटरेचर' करता है. महोत्सव में भारत सहित नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और श्रीलंका के लेखक, साहित्यकार व कलाप्रेमी भाग लेने पहुंचेंगे. महोत्सव के पहले सत्र में भक्ति, बौद्ध धर्म और सूफीवाद पर विमर्श होगा. बाद के कई सत्रों में दो संवेदनहीन युद्धों की पीड़ा पर विभिन्न वक्ता अपनी राय रखेंगे. ये जानकारियां लब्धप्रतिष्ठ लेखिका व फोसवाल की अध्यक्ष पद्मश्री अजीत कौर ने दीं
इस महोत्सव में कला, संस्कृति से जुड़े विभिन्न विषयों पर व्याख्यान होंगे. कविता पाठ व अन्य साहित्यिक गतिविधियां होंगी. अनुवाद विधा पर भी चर्चा की जाएगी. कार्यक्रम के कई सत्र हिंदी, उर्दू और पंजाबी कविताओं के पाठ को समर्पित हैं, जिनमें अनामिका, डॉ. विनोद खेतान, अरुण आदित्य, तेजेंद्र सिंह लूथरा, सविता सिंह, डॉ. वनिता, डॉ. रक्षंदा जलील, निर्देश निधि आदि होंगे. सभी कार्यक्रम एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट्स एंड लिटरेचर के सभागार में संपन्न होंगे. इस मौके पर पड़ोसी देश के लेखकों को पुरस्कृत भी किया जाएगा.

आयोजन का मकसद

ऐसे आयोजन का मकसद पूछने पर अजीत कौर कहती हैं कि यह एक लंबी लड़ाई की कहानी है. मैंने देखा कि सरहद की दीवार तो है ही, राजनीति की एक दीवार भी एक देश के लोगों को दूसरे देश के लोगों से अलग करती है. पड़ोसी देशों के लेखकों के बीच कोई संवाद का जरिया ही नहीं दिखता था. तब सोचा कि क्यों नहीं पड़ोसी देशों के लेखकों को आपस में मिलाया जाए. राइटर्स कॉन्फ्रेंस का विचार मन में आया तो सबसे पहला नाम पाकिस्तान का ही आया. 1947 के बाद से पाकिस्तान का कोई भी लेखक इंडिया आया ही नहीं था. फिर शुरू हुआ मंत्रालय का चक्कर. वीजा मिलने की प्रक्रिया आसान नहीं रही. फिर 1987 में 10 वीजा मिले. उस वक्त वहां के दिग्गज लेखकों में अहमद फराज, मंशा याद, इंतिजार हुसैन, मुहम्मद अफजल रंधावा, हसन जैगम जैसे लोग आए थे. त्रिवेणी सभागार में आयोजन हुआ था. भीड़ देखकर मैं तो दंग थी. हैदराबाद से लोग आए थे, लखनऊ से, नासिक से... चकित थी मैं तो. लोग पड़ोसी देश के अपने प्रिय कथाकारों को सुनने आए थे. हॉल की क्षमता से कई गुणा ज्यादा लोग. 

इसे भी पढ़ें : DNA Kavita Sahitya: फिल्म लेखक-निर्देशक अविनाश दास की जीवन को छूतीं टटकी कविताएं

आठ मुल्कों की एकमात्र संस्था

उस समय विदेश मंत्रालय में एक बहुत बड़ी अधिकारी थीं मीरा शंकर. एक दिन उन्होंने मुझे बुलाया और कहा कि आप इस तरह अलग-अलग देश के लोगों को बुलाने के बदले पड़ोस के 7 देशों (उस समय सार्क में 7 देश) के लेखकों को एकसाथ क्यों नहीं बुलातीं. मैंने कहा कि आप बुलाइए. मैं साथ दूंगी. उन्होंने कहा कि हम नहीं कर सकते. ताज्जुब की बात यह है कि सार्क देशों के आपसी रिश्तों के लिए जो नियम और कायदे तय हुए थे, उनमें संस्कृति नाम की कोई चीज नहीं थी. उन्होंने आर्थिक मदद का भरोसा दिया. इस तरह सार्क राइटर्स कॉन्फ्रेस का आयोजन अप्रैल 2000 में शुरू हुआ. काफी संख्या में लोग आए. विराट जमघट था संस्कृति से जुड़े लोगों का. तब से आज तक सार्क फेस्टिवल का आयोजन और इससे जुड़े रहना मेरे लिए हमेशा सुकून भरा रहा है. इसे आप एक बड़ी उपलब्धि की तरह भी देख सकते हैं. अब यह आठ मुल्कों में एकमात्र ऐसी संस्था है. 

इसे भी पढ़ें : Literaria 2023: नीलांबर के वार्षिकोत्सव लिटरेरिया 2023 का आयोजन 1 से 3 दिसंबर तक सियालदह में

नाम बदला, उद्देश्य नहीं

संतुष्टि और सुख मिलता है यह देखकर कि इसके जरिये आठ मुल्कों के लेखक और कलाकार आपस में मिल पाते हैं. अपने विचार साझा कर पाते हैं. एक-दूसरे की संस्कृति के बारे में, एक-दूसरे की रचना प्रक्रिया के बारे में जान-समझ पाते हैं. अब इस महोत्सव का नाम बदलकर फोसवाल लिटरेचर फेस्टिवल हो गया है. अजीत कौर कहती हैं-" सच तो यह है कि हम एक कठिन समय में जी रहे हैं. हमारे समय का यह संकट ऐसा है कि आदमी और प्रकृति, आदमी और समाज, आदमी और धर्म, आदमी और ब्रह्मांड सब अपनी-अपनी धुरी छोड़ चुके हैं. लेकिन मेरा मानना है कि संवाद से सारे अवरोध हटाए जा सकते हैं. सार्क फेस्टिवल का आयोजन संवाद का ही एक मंच है. रचनाकारों का रचनाकारों से...संस्कृति का संस्कृति से. हमें लगता है कि इस तरह के और मंच बनें तो यह जो मन का अंधेरा है, वह छंटेगा. 

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर.

Advertisement

Live tv

Advertisement

पसंदीदा वीडियो

Advertisement