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20 साल में गायब हो जाएंगी देश की ये अद्भुत धरोहरें, इनके बारे में जानना बेहद जरूरी

पुरानी इमारतों की ऊंची दीवारें अपने पत्थरों की हर दरार में इतिहास की अनसुनी कहानियां छुपाए हुए हैं. ये दीवारें, जो सदियों से हर चुनौतियों का सामना करती आई हैं, अब धीरे-धीरे कमजोर हो रही हैं. क्या आपने जानते है, क्यों?

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20 साल में गायब हो जाएंगी देश की ये अद्भुत धरोहरें, इनके बारे में जानना बेहद जरूरी

Konark Sun Temple

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जलवायु परिवर्तन (Climate Change) की वजह से तापमान में दिन प्रति दिन वृद्धि हो रही हैं, बढ़ते समुद्र स्तर और बेमौसम की बारिशें हमारे ऐतिहासिक स्मारकों को गंभीर नुकसान पहुचा रही हैं. ताजमहल से लेकर खजुराहो के मंदिरों तक, ये धरोहर अब खतरे में हैं. जलवायु परिवर्तन का असर सिर्फ पर्यावरण और मानव जीवन तक ही नहीं बल्कि इसका असर अब उन सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों पर भी मंडरा रहा है जो हमारी सभ्यता की पहचान हैं. हाल ही में ब्रिटिश कंपनी क्लाइमेट एक्स ने एक रीसर्च में बताया है कि एशिया प्रशांत, उत्तरी अमेरिका और यूरोप के 50 से अधिक विश्व धरोहर स्थलों पर जलवायु परिवर्तन का गंभीर खतरा है. हैरानी की बात यह है कि इनमें से 5 धरोहरें भारत में स्थित हैं, जिनका अस्तित्व अगले 20 सालों में खत्म हो सकता है. आइए जानते हैं कि कौन-सी भारतीय धरोहरें इस संकट से जूझ रही हैं और इनका भविष्य क्या हो सकता है.

कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान, सिक्किम
सिक्किम में स्थित कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान अपनी दिलचस्प कुदरती सुंदरता और जीव विविधता के लिए विश्वप्रसिद्ध है. यह जगह UNESCO  की विश्व धरोहर सूची में शामिल है. मगर बदलते मौसम और तेजी से पिघलते ग्लेशियर इस धरोहर के लिए बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं. तापमान में लगातार वृद्धि के कारण यहां के ग्लेशियर तेजी से सिकुड़ रहे हैं. इसका रीजल्ट न केवल ENVIRONMENTAL IMBALANCE हो रहा है बल्कि इस एरिया में रहने वाले वन्यजीवों (Wildlife) के आवास भी खतरे में हैं.  इसके अलावा, जंगल की आग की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिससे यह राष्ट्रीय उद्यान गंभीर संकट का सामना कर रहा है.

कोणार्क का सूर्य मंदिर, ओडिशा
13वीं शताब्दी में बनाया गया कोणार्क का सूर्य मंदिर भारतीय Architectural कला का अद्वितीय उदाहरण है. यह मंदिर अपनी भव्यता और Architecture के लिए जाना जाता है, लेकिन यह समुद्र के किनारे स्थित होने के कारण जलवायु परिवर्तन के Side effects का शिकार हो रहा है. समुद्री जलस्तर में वृद्धि और Coastal cuts इस मंदिर की संरचना को कमजोर कर रहे हैं. नमी और अधिक बारिश के चलते मंदिर के पत्थरों में जंग लग रही है, जिससे इसकी मजबूती पर असर पड़ रहा है. यदि समय रहते समाधान नहीं निकाला गया, तो यह अनमोल धरोहर भी नष्ट हो सकती है.

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, राजस्थान
भरतपुर में स्थित केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, जिसे भरतपुर पक्षी अभयारण्य भी कहा जाता है, सर्दियों के दौरान प्रवासी पक्षियों ( Migrated birds) का प्रमुख निवास स्थान है. इस उद्यान का नाम विश्व धरोहर स्थलों में शामिल है. जलवायु परिवर्तन के कारण यहां के पर्यावरणीय परिस्थितियों में तेजी से बदलाव हो रहे हैं. जल स्रोतों की कमी और लगातार सूखे की घटनाओं ने यहां के पक्षियों की प्रवास प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव डाला है. इसके अलावा, वन्यजीवों (Wildlife) के लिए भी यह स्थिति जीवन-मरण का प्रश्न बन चुकी है.

सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान, पश्चिम बंगाल
सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान, जो विश्व का सबसे बड़ा मैन्ग्रोव वन क्षेत्र है, बाघों और दुर्लभ वन्यजीवों (Wildlife) का घर है. लेकिन यह अद्वितीय धरोहर समुद्री जलस्तर में वृद्धि, चक्रवातों की बढ़ती तीव्रता और तटीय कटाव (Coastal cuts) का शिकार हो रही है. जलवायु वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो अगले कुछ दशकों में सुंदरबन का बड़ा हिस्सा समुद्र में समा सकता है. इसके साथ ही यहां के वन्यजीवों और बायोडायवर्सिटी को भी भारी नुकसान पहुंच सकता है.


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गोवा के चर्च और कॉन्वेंट
गोवा के चर्च और कॉन्वेंट भारतीय ईसाई इतिहास के अहम अंग हैं और UNESCO द्वारा इन्हें विश्व धरोहर का दर्जा मिला है. लेकिन जलवायु परिवर्तन के चलते इन ऐतिहासिक इमारतों की संरचनाओं में नमी बढ़ने से जंग और Erosion हो रहा है. साथ ही, समुद्री जलस्तर में वृद्धि के कारण तटीय क्षेत्रों पर खतरा बढ़ गया है, जिससे इन धरोहर स्थलों का बुनियादी ढांचा कमजोर हो रहा है. यदि यही स्थिति रही, तो यह धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल आने वाले समय में इतिहास के पन्नों में ही सिमट सकते हैं.

वैश्विक और स्थानीय स्तर पर तत्काल कदम
इन अनमोल धरोहरों को बचाने के लिए वैश्विक और स्थानीय स्तर पर तत्काल कदम उठाने की जरूरत है. जलवायु परिवर्तन की इस गंभीर चुनौती से निपटने के लिए हमें न केवल संरक्षण के प्रयासों को तेज करना होगा बल्कि लगातार विकास और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता भी बढ़ानी होगी. अगर समय रहते इन धरोहरों को सुरक्षित करने के कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाली पीढ़ियां सिर्फ किताबों में ही इन धरोहरों के बारे में पढ़ पाएंगी.

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