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वर्ल्ड क्लाइमेट एक्शन समिट का क्या है एजेंडा, भारत के लिए खास क्यों है ये बैठक?

भारत का कहना है कि गरीब देश, अमीर देशों के अंधाधुंध उत्पादन की मार झेलते हैं. प्रतिबंध उन पर लगाए जाते हैं, जबकि विकसित राष्ट्रों को प्रदूषण उत्पादन पर ठोस कम उठाने चाहिए.

वर्ल्ड क्लाइमेट एक्शन समिट का क्या है एजेंडा, भारत के लिए खास क्यों है ये बैठक?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (तस्वीर-PTI)

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डीएनए हिंदी: आर्थिक तौर पर पिछड़े गरीब देश और विकासशील देश जलवायु संकट बढ़ाने के लिए कम जिम्मेदार हैं. विकसित देशों का अंधाधुंध उत्पादन, कार्बन उत्सर्जन, इन देशों पर भारी पड़ता है. इसका खामियाजा विकासशील और गरीब देश भुगतते हैं. भारत ने ऐसे देशों को मुआवजा देने वाले हानि और क्षति कोष को लेकर हुए समझौते का स्वागत किया है. भारत ने इस पहलको सकारात्मक भी बताया है.

ग्लोबल साउथ की ओर से इस समझौते को लेकर अब तक मिली-जुली प्रतिक्रिया सामने आई है. संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता COP28 एक सकारात्मक संकेत के साथ शुरू हुई, जिसमें अलग-अलग देशों ने हानि और क्षति कोष के संचालन पर शुरुआती समझौता किया. सीओपी के अध्यक्ष डॉ. सुल्तान अल जाबेर ने कहा कि विज्ञान स्पष्ट है और अब हम सभी के लिये समय आ गया है कि जलवायु कार्रवाई के लिए पर्याप्त रूप से वृहद मार्ग तलाशा जाए.

निर्णय की घोषणा के तुरंत बाद पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, 'संयुक्त अरब अमीरात में पहले दिन ही सीओपी28 के रफ्तार पकड़ने का सकारात्मक संकेत. हानि और क्षति कोष के संचालन पर ऐतिहासिक निर्णय सीओपी28 के उद्घाटन सत्र में अपनाया गया. भारत हानि एवं क्षति कोष को शुरू करने के फैसले का पुरजोर समर्थन करता है.'

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विकसित देशों का अनियंत्रित विकास, गरीब देशों पर पड़ रहा है भारी
ग्लोबल साउथ लंबे समय से बाढ़, सूखे और गर्मी सहित आपदाओं से निपटने के लिये पर्याप्त धन की कमी की ओर इशारा कर रहे हैं और अमीर देशों को इससे उबरने के लिये पर्याप्त धन नहीं देने का दोषी ठहरा रहे हैं. ग्लोबल साउथ से तात्पर्य उन देशों से है जिन्हें अक्सर विकासशील, कम विकसित अथवा अविकसित के रूप में जाना जाता है. विकासशील देशों ने यह भी दावा किया है कि बदलावों से निपटने में मदद करने की जिम्मेदारी अमीर देशों की है, क्योंकि ऐतिहासिक रूप से ये वही देश हैं जिन्होंने पृथ्वी को गर्म करने वाले कार्बन उत्सर्जन में अधिक योगदान दिया है. 

हर साल बढ़ रही है गर्मी, मंडराएंगे ये संभावित खतरे
गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र की मौसम एजेंसी विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने कहा कि 2023 सबसे गर्म वर्ष होना निश्चित है और चिंताजनक प्रवृत्तियां भविष्य में बाढ़, जंगल की आग, हिमनद पिघलने और भीषण गर्मी में वृद्धि का संकेत देती हैं. डब्ल्यूएमओ ने यह भी चेतावनी दी है कि वर्ष 2023 का औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक काल से लगभग 1.4 डिग्री सेल्सियस ऊपर है. पिछले साल मिस्र के शर्म अल-शेख में आयोजित सीओपी27 में अमीर देशों ने हानि और क्षति कोष स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की थी. धन आवंटन, लाभार्थियों और प्रशासन पर फैसले लटकाए रखे गए थे. 

क्या है विकासशील देशों की मांग
विकासशील देश कोष रखने के लिए एक नई और स्वतंत्र इकाई चाहते थे, लेकिन अगले चार वर्षों के लिए अस्थाई रूप से ही सही और अनिच्छा से विश्व बैंक को स्वीकार किया था. इस कोष को चालू करने के निर्णय के तुरंत बाद, संयुक्त अरब अमीरात और जर्मनी ने घोषणा की कि वे इस कोष में 10-10 करोड़ अमेरिकी डॉलर का योगदान देंगे. एनआरडीसी (प्राकृतिक संसाधन रक्षा परिषद) में अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त के वरिष्ठ पैरवोकार जो वेट्स ने इसे एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताया. 

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क्यों है ऐसे फंड की जरूरत?
डब्ल्यूआरआई इंडिया में जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम निदेशक उल्का केलकर ने कहा कि विकसित देशों को हानि एवं क्षति कोष में नई और अतिरिक्त धनराशि देने की आवश्यकता है ताकि उन देशों और समुदायों को सहायता प्रदान की जा सके, जहां इसकी तत्काल आवश्यकता है. क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल में वैश्विक राजनीतिक रणनीति के प्रमुख हरजीत सिंह ने कहा, 'अपनी स्थापना के एक वर्ष के भीतर हानि और क्षति कोष को चालू करने के ऐतिहासिक निर्णय के बीच, अंतर्निहित चिंताओं को संबोधित करना महत्वपूर्ण हो जाता है.' (इनपुट: भाषा)

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