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PFI Ban: सिर्फ बैन पर खत्म नहीं होगी बात, पढ़ लें UAPA में प्रतिबंध लागू करने की पूरी कानूनी प्रक्रिया

किसी संगठन पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून के तहत प्रतिबंध लगाने के बाद भी उसे लागू करने के कई कानूनी चरण होते हैं.

PFI Ban: सिर्फ बैन पर खत्म नहीं होगी बात, पढ़ लें UAPA में प्रतिबंध लागू करने की पूरी कानूनी प्रक्रिया
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डीएनए हिंदी: केंद्र सरकार ने लगातार देश विरोधी गतिविधियों के पीछे साजिशकर्ता के तौर पर सामने आ रहे पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) पर आखिरकार प्रतिबंध लगा दिया है. उसके 8 सहयोगी संगठन भी प्रतिबंधित किए गए हैं. अब ये संगठन 5 साल तक किसी तरह का कामकाज नहीं कर पाएंगे, लेकिन इस प्रतिबंध को लागू होने से पहले भी अभी कई तरह की कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरना है. इन प्रक्रियाओं में यह भी व्यवस्था दी गई है कि इस प्रतिबंध को गलत मानकर खारिज कर दिया जाए. ये प्रक्रिया क्या है और इसके तहत अब आगे प्रतिबंध को लागू करने की कार्रवाई स्टेप-बाई-स्टेप कैसे चलेगी? आइए इसके बारे में बताते हैं.

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NSA की तरह UAPA की भी करानी होती है न्यायिक पुष्टि

UAPA के तहत की गई किसी भी निरोधात्मक कार्रवाई की पुष्टि भी ठीक वैसे ही करानी होती है, जिस तरह किसी व्यक्ति पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका या NSA) लागू करने के बाद की जाती है. UAPA के तहत प्रतिबंध की पुष्टि करने की जिम्मेदारी एक जस्टिस ट्राइब्यूनल की होती है, जिसे अनलॉफुल एक्टिविटिज प्रिवेंशन ट्राइब्यूनल (UAPT) कहते हैं. यह एक सदस्यीय ट्राइब्यूनल होता है, जिसमें हाई कोर्ट के जज या उससे ऊपरी स्तर के व्यक्ति को ही तैनात किया जा सकता है. इस ट्राइब्यूनल के जज की तैनाती केंद्र सरकार ही करती है.

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30 दिन के अंदर ट्राइब्यूनल में जाएगा मामला

UAPA के प्रावधानों के तहत केंद्र सरकार को प्रतिबंध लगाने का नोटिफिकेशन जारी होने के 30 दिन के अंदर इसे ट्राइब्यूनल के सामने पुष्टि के लिए पेश करना होगा. इसके बाद ट्राइब्यूनल उसमें दिए गए सबूतों, रिपोर्ट्स व कारणों की जांच करने के बाद कार्रवाई सही है या नहीं, यह तय करेगा.

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PFI से भी पूछा जाएगा उसका पक्ष

ट्राइब्यूनल अपनी जांच के दौरान PFI और अन्य प्रतिबंधित सहयोगी संगठनों को भी अपना पक्ष रखने का मौका देगा. इसके लिए ट्राइब्यूनल की तरफ से सभी को नोटिस जारी किया जाएगा. इस कारण बताओ नोटिस में पूछा जाएगा कि उन्हें गैरकानूनी क्यों नहीं घोषित करना चाहिए. संगठन की तरफ से दाखिल जवाब के आधार पर ट्राइब्यूनल तय करेगा कि उनकी तरफ से पेश जानकारियां सही हैं या नहीं. इसके बाद केंद्र सरकार से संगठन की तरफ से पेश फैक्ट्स और दलीलों का जवाब मांगा जाएगा.

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छह महीने में पुष्टि की प्रक्रिया पूरी करेगा ट्राइब्यूनल

ट्राइब्यूनल UAPA के तहत की गई कार्रवाई की पुष्टि या उसे खारिज करने का फैसला छह महीने के अंदर ले सकता है. इस दौरान ट्राइब्यूनल के पास यह तय करने के लिए पर्याप्त समय होता है कि प्रतिबंध को बरकरार रखा जाए या इसे गलत तरीके से लगाया गया है.

बिना ट्राइब्यूनल की पुष्टि के प्रतिबंध बेकार

UAPA, 1967 की धारा-3 (3) के मुताबिक, किसी भी संगठन पर प्रतिबंध को नोटिफिकेशन ट्राइब्यूनल के पुष्टि करने के बाद ही प्रभावी हो सकता है. हालांकि सरकार चाहे तो देश या समाज से जुड़े खतरे के आधार पर लिखित में कारण बताकर प्रतिबंध को तत्काल प्रभाव से लागू कर सकती है, लेकिन इसके बाद भी ट्राइब्यूनल के खारिज करने पर यह प्रतिबंध अपनेआप हट जाएगा.

PFI पर लगे ये आरोप सरकार को साबित करने होंगे

  • पीएफआई और सहयोगी संगठन गु्प्त एजेंडे के तहत वर्ग विशेष को कट्टरपंथी बना रहे हैं.
  • ये संगठन मिलकर लोकतंत्र और संवैधानिक ढांचे को खारिज करने की साजिश रच रहे हैं.
  • इन संगठनों की कार्रवाइयों से देश की अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा को खतरा बढ़ा है.
  • इनके कारण देश में सांप्रदायिक सद्भाव का माहौल बिगड़ने और उग्रवाद बढ़ने का खतरा है.
  • PFI के संस्थापक सदस्यों में शामिल कई लोग प्रतिबंधित संगठन SIMI के भी नेता रह चुके हैं.
  • इस संगठन के संबंध जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश के साथ भी हैं, जो आतंकी संगठन है. 
  • PFI से जुड़े कई कैडर ISIS जैसे वैश्विक आतंकी संगठनों के साथ काम करते पाए गए हैं.
  • PFI के कैडर दिल्ली दंगे, केरल हिंसा, कर्नाटक हिंसा जैसे विध्वंस कामों में लिप्त मिले हैं.
  • PFI कैडर हाथ काटने, दूसरे धार्मिक संगठनों के पदाधिकारियों की हत्या, बम धमाके कर चुके हैं. 
  • यह संगठन हवाला, जकात और बैंकिंग चैनल के लूपहोल्स के जरिए देश-विदेश से धन जुटा रहा है.
  • इस धन का इस्तेमाल देश के अंदर आपराधिक, समाज विरोधी व आतंकी गतिविधियों में किया गया है.

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