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Haldwani Protest: हल्द्वानी में बेघर होंगे 4,000 परिवार, सड़कों पर शाहीनबाग जैसा दिखा नजारा, क्यों बरपा है हंगामा

उत्तराखंड सरकार का कहना है कि यह संपत्ति रेलवे की है. आदेश कोर्ट की तरफ से आया है. राज्य सरकार पक्षकार नहीं है.

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Haldwani Protest: हल्द्वानी में बेघर होंगे 4,000 परिवार, सड़कों पर शाहीनबाग जैसा दिखा नजारा, क्यों बरपा है हंगामा

रेलवे और कोर्ट के आदेश के खिलाफ लोग जमीन बचाने सड़क पर उतरे हैं. 

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डीएनए हिंदी: उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे की 78 एकड़ जमीन से 4,365 परिवारों को बेदखल करने की तैयारी की जा रही है. उत्तराखंड हाई कोर्ट ने 7 दिनों के अंदर अतिक्रमण को हटाने का आदेश दिया था. इसी आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट आज यानी गुरुवार को अहम सुनवाई करने वाला है. सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण सु्प्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.  हल्द्वानी (Haldwani) के बनभूलपुरा इलाके में करीब 50,000 लोग रहते हैं. अतिक्रमण हटेगा, बस्ती उजड़ेगी या सुप्रीम कोर्ट मानवीय आधार पर उन्हें रहने की इजाजत देगा, इस पर संशय की स्थिति बनी हुई है. हल्द्वानी के इस इलाके में 90 फीसदी मुस्लिम आबादी रह रही है. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार पर विरोधी दल आरोप लगा रहे हैं बीजेपी की ओर से जानबूझकर ऐसा किया जा रहा है, क्योंकि इस हिस्से पर मुस्लिम आबादी का बसेरा है, जो बीजेपी का वोटर नहीं है.

अतिक्रमण के खिलाफ अब तक के सबसे बड़े एक्शन की तैयारी में जुटा हल्द्वानी प्रशासन, कुछ तय नहीं कर पा रहा है. हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ लोग सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं. याचिकाकर्ताओं को आशा है कि सुप्रीम कोर्ट से उन्हें मानवीय आधार पर राहत मिल सकती है. हल्द्वानी में भी शाहीनबाग जैसा नजारा देखने को मिल रहा है. शाहीनबाग में जैसे नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ महिलाएं सड़कों पर उतर आई थीं, वैसा ही हाल, यहां भी है. महिलाएं, प्रशासनिक आदेश के खिलाफ सड़कों पर हैं.

Haldwani: हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर बेघर होंगे 4,000 से ज्यादा लोग या बचेगी बस्ती, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज

सोशल मीडिया पर नजर आ रहा लोगों का आक्रोश

हल्द्वानी प्रकरण को लेकर सोशल मीडिया पर उबाल देखने को मिल रहा है. कुछ लोग इसे जायज ठहरा रहे हैं तो कुछ लोग पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं. लोग कह रहे हैं कि जिस इलाके में दशकों से लोग बसे हुए हैं, उन्हें एक झटके में बाहर क्यों किए जाने की तैयारी की जा रही है. वहीं दूसरे पक्ष का कहना है कि अतिक्रमण वर्षों से लोगों ने जारी रखा था, अब उसे हटाया जा रहा है तो बेवजह विपक्षी दल हंगामा कर रहे हैं.

इलाके में मुस्लिमों की बड़ी आबादी, खतरे में बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों का भविष्य

हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर करीब 78 एकड़ इलाके में लोग बसे हुए हैं जिनमें ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के लोग बसे हुए हैं. इस इलाके में पांच वार्ड शामिल हैं. यहां करीब 25,000 वोटर रहते हैं. लोगों का सबसे बड़ा डर यह सता रहा है कि इस इलाके में कई बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं भी रहती हैं, जिनके सामने विस्थापन का खतरा मंडरा रहा है. राजनीतिक पार्टियों का कहना है कि इस इलाके में करीब 15,000 बच्चे रहते हैं, विस्थापन के बाद जिनका स्कूल से नाता खत्म हो जाएगा.

1910 से बस रहे लोग, अब तक क्या कर रहा था प्रशासन?

उत्तराखंड हाई कोर्ट  ने 20 दिसंबर को एक आदेश जारी किया था. अखबारों में प्रशान ने आदेश के संबंध में नोटिस जारी किया था. लोगों को स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि 9 जनवरी को लोग अपने घरों को खाली कर दें, जिससे ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया पूरी हो जाए. प्रशासन ने 10 एडीएम और 30 एसडीएम-रैंक के अधिकारियों को प्रक्रिया की निगरानी करने का निर्देश दिया है. कई परिवार 1910 के बाद से बनभूलपुरा में गफूर बस्ती, ढोलक बस्ती और इंदिरा नगर कॉलोनियों के कब्जे वाले इलाकों में बसे हुए हैं. आरोप लग रहा है कि उन्हें, उनके धर्म की वजह से निशाना बनाया जा रहा है.

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सरकारी स्कूल, एक बैंक, चार मंदिर फिर इलाका अवैध कैसे?

सियासी दलों का आरोप है कि क्षेत्र में चार सरकारी स्कूल, 10 निजी, एक बैंक, चार मंदिर, दो मजार, एक कब्रिस्तान और 10 मस्जिदें हैं. इनका निर्माण बीते कुछ दशकों में हुआ है. बनभूलपुरा में एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय भी है जो सौ साल से अधिक पुराना बताया जाता है. ऐसे में अगर इतने पुराने निर्माण हैं तो बस्ती अवैध कैसे है. अगर है तो इतने बड़े अंतराल तक नोटिस क्यों नहीं दिया गया.

क्या कह रहे हैं लोग?

स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर यह पूरा इलाका रेलवे का है, अतिक्रमण हुआ है तो पूरे परिसर में स्कूल और अस्पताल कैसे बने हुए हैं. 6 दशकों से इस इलाके में लोग बसे हुए हैं, अचानक पूरी बस्ती कैसे अवैध हो गई है. यहां के लोग कहां जाएंगे, अगर हटाया जा रहा है तो पुनर्वास कहां होगा, बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं कहां जाएंगी. अब रेलवे अचानक लोगों को विस्थापित करने पर क्यों जुटा है. 

सुप्रीम कोर्ट से है आखिरी उम्मीद

सुप्रीम कोर्ट में आज इस केस की अहम सुनवाई होने वाली है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसए नजीर और जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण की ओर से मामले का जिक्र किए जाने के बाद इसे सुनवाई के लिए स्वीकार किया है. अब देखते हैं कि सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखता है, या यहां के निवासियों को राहत मिलती है.

BJP ने भी की थी विध्वंसीकरण रोकने की कोशिश

साल 2018 में सत्तारूढ़ बीजेपी इन बस्तियों के विध्वंस को रोकने के लिए अध्यादेश  लेकर आई थी. झोपड़-पट्टियों को नियमित करने की पहल तो नहीं हुई थी लेकिन कम से कम विस्थापन की योजना तैयार करने की कोशिश हुई थी.  उत्तराखंड में 582 चिन्हित झुग्गी क्षेत्र हैं, जिनमें से 22 हल्द्वानी में हैं और पांच कथित रूप से अतिक्रमित रेलवे भूमि पर हैं. अब लोगों का कहना है कि अल्पसंख्यक इलाका होने की वजह से यह क्षेत्र बीजेपी के निशाने पर है लोगों को बेघर किया जा रहा है.

क्या कह रही है राज्य सरकार?

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि कोर्ट जो भी फैसला करेगा, राज्य उसका पालन करेगा. हम अदालत के फैसले का सम्मान करेंगे. राज्य सरकार इस मामले में पक्षकार नहीं है. यह रेलवे और उच्च न्यायालय के बीच है. कांग्रेस बेदखली का सामना कर रहे परिवारों की मदद करने के लिए सरकारी हस्तक्षेप की मांग कर रही है. यह मामला अब पूरी तरह से कोर्ट के हाथ में है.

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