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Heat wave in india: हीटवेव के कहर से देश के कई हिस्से बुरी तरह प्रभावित हैं. क्या यह जलवायु परिवर्तन का संकेत है? पढ़ें विश्लेषण.
डीएनए हिंदी: देश कई हिस्से में भीषण गर्मी पड़ रही है. विज्ञान के शब्दों में कहें तो हीटवेव (Heat wave in india) से कई राज्य जूझ रहे हैं. हर कोने में तापमान (Temperature) अपने उच्चतम स्तर पर है. गर्मी के दिनों में जिन पहाड़ी शहरों (Hill Stations) की ओर लोग रुख करते थे, वहां भी पारा 40 डिग्री सेल्सियस पार कर चुका है.
गर्मी से बचने के लिए जिन उपायों को हम अपना रहे हैं, वही इस गर्मी की वजह बन रहे हैं. पर्यावरण कार्यकर्ता और सिंगरौली फाइल्स के लेखक अविनाश चंचल कहते हैं, 'जिसे हम समाधान समझ रहे हैं, वही समस्या की जड़ है.'
उनका इशारा बढ़ती गर्मी की वजह से धड़ल्ले से इस्तेमाल होने वाले एयर कंडीशनर (AC) की ओर है. ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में लगातार बिजली कटौती की वजह से इलेक्ट्रिक जनरेटर (Electric Generator) का इस्तेमाल बढ़ा है. प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की सबसे बड़ी वजह जानकार जीवाश्म ईंधन (Fossil fuel) को ही मानते हैं.
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जलवायु संकट को लेकर गंभीर नहीं है दुनिया
ग्रीनपीस इंडिया इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (IPCC) की हालिया रिपोर्ट की मानें तो सदी के अंत तक धरती पर औसतन तापमान 4 डिग्री सेल्सियस बढ़ा जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो इसके नतीजे बेहद भयावह होने वाले हैं. वैश्विक स्तर पर इसकी रोकथाम के न तो प्रयासों में दम नजर आ रहा है न ही विकासशील देश जलवायु परिवर्तन को लेकर गंभीर नजर आ रहे हैं.
लगातार बढ़ रहे हीटवेव को लेकर को लेकर भारत सरकार की गंभीरता भी सवालों के घेरे में है.सरकार हीटवेव को लेकर एडवाइजरी तो जारी करती है लेकिन कोई नियम या कानून नहीं तय करती है. एडवाइजरी, महज एक सलाह है जिस पर अमल करने वाले लोग गितनी के हैं.
हीटवेव से कौन लोग होते हैं प्रभावित?
अविनाश चंचल बताते हैं कि खराब मौसम के दुष्प्रभाव से हर कोई प्रभावित होता है. जिनके सिर पर छत है और बाहर न निकलने की सहूलियत है वे कम प्रभावित होते हैं. मजदूर वर्ग पर हीटवेव की मार सबसे ज्यादा पड़ती है. बेघर लोग, महिला, बच्चे और बुजुर्गों पर हीटवेव का असर सबसे ज्यादा होता है.
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ग्रामीण इलाकों में भी लू की वजह से हर साल कई लोग मरते हैं लेकिन उनकी मौत के आंकड़े नजर नहीं आते हैं. इन विपरीत परिस्थितियों में सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर सरकार हीटवेव से बचने के लिए क्या करे?
हीटवेव से कैसे बच सकते हैं मजदूर?
पर्यावरण एक्टिविस्ट अविनाश चंचल कहते हैं कि अगर सरकार कुछ बुनियादी बातों को कानून में तब्दील करे तो स्थितियां बेहतर हो सकती हैं. वह सुझाव देते हैं कि ऐसे मजदूर जिन्हें कड़ी धूप में काम करना होता है, जो कंस्ट्रक्शन वर्कर हैं या ईंट-भट्टों पर काम करते हैं उनके लिए काम की अवधि को बदला जाए. जैसे सुबह 5 बजे से लेकर 12 बजे तक काम कराया जाए. फिर शाम 4 बजे से 7 बजे तक काम कराया जाए. लोग सीधे धूप की चपेट में आने से बचेंगे और हीटवेव के कहर का सामना भी नहीं करना पड़ेगा.
सरकार बनाए हीटवेव पर एक्शन प्लान
अविनाश चंचल कहते हैं कि अगर सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र को मौसम विभाग से कनेक्ट कर दिया जाए तो लोग बड़ी मुसीबत से बच सकते हैं. जैसे अगर भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) कोई जानकारी शेयर करता है तो तत्काल उसे देखते हुए एडवाइजरी जारी कर दी जाए. उस एडवाइजरी का क्रियान्वयन सही तरीके से हो. सरकार और संबंधित विभागों के पास हीटवेव एक्शन प्लान हो. अस्पतालों के पास गर्मी से संबंधित बीमार मरीजों के इलाज का बेहतर साधन हो.
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Extreme weather है जलवायु परिवर्तन का साफ संकेत
इंडिया इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज की हालिया रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि कई राज्यों में एक्स्ट्रीम वेदर (Extreme weather) की घटनाएं भी सामने आ रही हैं. जैसे असम में भीषण बारिश हो रही है, वहीं उत्तरी भारत में लोग बारिश की उम्मीद कर रहे हैं क्योंकि गर्मी बेकाबू है. कुछ जगहों पर मॉनसून ने समय से पहले दस्तक दे दी है, कुछ जगहों पर देर से आने की आशंका है. यह साफ संकेत दे रहा है कि जलवायु संकट निकट भविष्य में नहीं आने वाला है बल्कि आ चुका है और हम जलवायु संकट से ही जूझ रहे हैं.
किन सुझावों को अपनाने से थम सकता है जलवायु परिवर्तन?
पर्यावरण एक्टिविस्ट अविनाश चंचल कहते हैं कि जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता जितनी कम होगी, जलवायु उतना बेहतर होगा. पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ज्यादा से ज्यादा लोग इस्तेमाल करें, जिससे सड़कों पर कम गाड़ियां नजर आएं. साइकिलिंग को लोग प्रमोट करें. प्राइवेट व्हीकल का इस्तेमाल कम से कम लोग करें. इलेक्ट्रॉनिक व्हीकल्स के लिए चार्जिंग सिस्टम की व्यवस्था व्यापक तौर पर की जाए. अक्षय ऊर्जा के संसाधनों को विकसित करने पर जोर दिया जाए.
क्या हो सकता है जलवायु परिवर्तन का असर?
जलवायु परिवर्तन का असर पहाड़ी हिस्सों से लेकर मैदानी इलाकों तक हो रहा है. इस साल गेहूं का उत्पादन मैदानी भागों में बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. जलवायु परिवर्तन के विपरीत असर से कृषि क्षमताएं प्रभावित होंगी. अनाज महंगा होगा और एक तबका खरीद नहीं सकेगा. गरीब भुखमरी का शिकार हो सकते हैं.
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अगर 2050 से पहले कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण नहीं किया गया तो जलवायु संकट अपने सबसे भयावह दौर में होगा.त्वचा से संबंधित रोगियों की संख्या बढ़ेगी. लू और हीटवेव से होने वाली मौतों के आंकड़े बढ़ेंगे. फूड चेन भी प्रभावित होगा. कुछ फसलों का प्रोडक्शन खत्म होने की कगार पर पहुंच जाएगा.
पर्यावरण की सुरक्षा के लिए क्या करें?
अविनाश चंचल के मुताबिक रियल स्टेट इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के लिए ग्रीन कवर को बढ़ाने की शर्त सरकार को अनिवार्य कर देनी चाहिए. ग्रीन बिल्डिंग बनाने की अब जरूरत है. वर्टिकल गार्डनिंग की जरूरत है. हर खाली जमीन को प्लांट से कवर किया जाए. शहरों का ग्रीन कवर बढाने की जरूरत है. ग्रीन बिल्डिंग बनाने की जरूरत है. वर्टिकल गार्डनिंग. रूफ टॉप गार्डनिंग को ज्यादा से ज्यादा अमल में लाने की जरूरत है.
सरकार तत्काल क्या करे?
केंद्र और राज्य सरकारें मिल-जुलकर क्लाइमेट फंड में इजाफा करें. व्यापक स्तर पर वृक्षारोपण हो और ग्रीन इंडिया मिशन पर जोर दिया जाए. जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है जिसके लिए हर देश के पहल करने की जरूरत है. अगर भारत जैसे बड़े देश इस दिशा में कदम बढ़ाते हैं तो कई दूसरे देश भी इसे अपनाने की सोच सकते हैं.
सरकार क्लाइमेट अडॉप्टेशन पॉलिसी को अपनाने पर जोर दे. जलवायु विभाग को अमल में लाया जाए और युद्धस्तर पर काम किया जाए. ऐसे उपाय किए जाएं जिससे विकास भी प्रभावित न हो और हरियाली भी बनी रहे. अगर आज पर्यावरण को बेहतर नहीं कर सकते हैं तो आने वाली पीढ़ियां अभिशप्त जीवन जीने के लिए बाध्य होने वाली हैं.
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