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तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं भी पूर्व पति से जीवनभर गुजारा भत्ता पाने की हकदार, इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

हाईकोर्ट ने कहा है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को सिर्फ इद्दत की अवधि यानी साढ़े तीन महीने ही नहीं, बल्कि जीवन भर गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है.

तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं भी पूर्व पति से जीवनभर गुजारा भत्ता पाने की हकदार, इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़�ा फैसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट

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डीएनए हिंदीः तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के गुजारे भत्ते को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने अपने इस फैसले में कहा मुस्लिम महिलाएं सिर्फ इद्दत नहीं बल्कि पूरी जिंदगी गुजारा भत्ता पाने की हकदार हैं. कोर्ट ने यह भी कहा कि यह रकम इतनी होनी चाहिए जिससे यह महिलाएं जीवन भर सम्मानजनक जिंदगी जी सकें. कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिला (तलाक अधिकार संरक्षण) कानून 1986 की धारा 3(2) के तहत तलाकशुदा महिला अपने पूर्व शौहर से गुजारा भत्ता के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष अर्जी दाखिल कर सकती है.

'सिर्फ इद्दक की हकदार नहीं मुस्लिम महिलाएं'
न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी तथा न्यायमूर्ति एमएएच इदरीसी की खंडपीठ ने जाहिद खातून की अपील को मंजूर करते हुए यह फैसला दिया है. हाईकोर्ट ने कहा है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को सिर्फ इद्दत की अवधि यानी साढ़े तीन महीने ही नहीं, बल्कि जीवन भर गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है. अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि इस सिर्फ लिंग या धर्म के आधार पर मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता. 

क्या है मामला 
गाजीपुर की रहने वाली जाहिद खातून की शादी 1989 में नूरुल हक खान के साथ हुई थी. नूरुल हक डाक विभाग में कर्मचारी है. तकरीबन 11 साल तक साथ रहने के बाद पति नूरुल हक ने याचिकाकर्ता पत्नी जाहिद खातून को ट्रिपल तलाक दे दिया. इसके बाद जाहिद खातून ने गुजारा भत्ता दिए जाने की मांग को लेकर गाजीपुर में मजिस्ट्रेट की कोर्ट में अर्जी दाखिल की. साल 2014 में यह मुकदमा गाजीपुर की ही फैमिली कोर्ट में ट्रांसफर हो गया. 

गाजीपुर की फैमिली कोर्ट ने पिछले साल 15 सितंबर को इस मामले में फैसला सुनाते हुए मुस्लिम महिला विवाह विच्छेदन पर अधिकार संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत याचिकाकर्ता जाहिद खातून को सिर्फ इद्दत की अवधि यानी 3 महीने और 13 दिन तक पन्द्रह सौ रुपए प्रति महीने की दर से गुजारा भत्ते का भुगतान करने का आदेश जारी किया. पत्नी ज़ाहिदा खातून ने गाजीपुर फैमिली कोर्ट के इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी. हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर को सुनवाई पूरी होने के बाद अपना जजमेंट रिजर्व कर लिया था. 

इनपुट - एजेंसी

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