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DNA TV Show: एक देश-एक चुनाव का क्या है कॉन्सेप्ट, कैसे होगा लाभ और कौन सी बाधाएं आएंगी राह में

One Nation One Election Latest News: केंद्र सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाया है. इस सत्र का एजेंडा जारी नहीं हुआ है, लेकिन इसके बाद सरकार ने एक देश, एक चुनाव को लेकर समिति बना दी है. इससे राजनीतिक सरगर्मी शुरू हो गई है. इसी का डीएनए कर रही है आज ये रिपोर्ट.

DNA TV Show: एक देश-एक चुनाव का क्या है कॉन्सेप्ट, कैसे होगा लाभ और कौन सी बाधाएं आएंगी राह में

DNA TV Show 

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डीएनए हिंदी: Ek Desh Ek Chunav- केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया है. इस सत्र का एजेंडा नहीं बताया गया है, लेकिन गुरुवार को इसकी घोषणा करने के बाद शुक्रवार को सरकार ने एक और फैसले से राजनीतिक सरगर्मी फैला दी है. केंद्र सरकार ने एक देश, एक चुनाव (One Nation On Election) के लिए एक समिति बना दी है, जिसकी बागडोर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सौंपी गई है. यह समिति एक देश-एक चुनाव कॉन्सेप्ट की Practicality को जांचेगी. साथ ही लोगों की राय भी लेगी. सरकार के इस फैसले के बाद यह चर्चा शुरू हो गई है कि संसद के विशेष सत्र में केंद्र सरकार एक देश, एक चुनाव कराने का बिल पेश करने जा रही है. इसलिए आज हम एक देश, एक चुनाव के Concept का संपूर्ण विश्लेषण करेंगे, जिसमें आपको इससे जुड़े हर सवाल का जवाब मिलेगा. एक तरह से आज DNA देखते हुए आप... एक देश, एक चुनाव पर घर बैठे PHD कर सकते हैं.

दो पार्ट में करेंगे इस फैसले का डीएनए

पहले पार्ट में हम इस फैसले का राजनीतिक पहलू समझेंगे. इसमें ये समझने की कोशिश करेंगे कि एक देश, एक चुनाव का नियम लागू हो गया तो इससे बीजेपी को क्या फायदा होगा और विपक्ष को क्या नुकसान होगा. कई सवाल, इसकी टाइमिंग को लेकर भी उठ रहे हैं. क्या एक देश, एक चुनाव का मुद्दा, INDIA गठबंधन की काट है?

दूसरे पार्ट में हम एक देश, एक चुनाव के बारे में हर वो Fact बताएंगे जो आप जानना चाहते हैं, या जो आपको पता होना चाहिए. जैसे कि एक देश, एक चुनाव से क्या होगा? और अगर इसे लागू करना है तो इसकी संवैधानिक प्रक्रिया क्या होगी? एक देश, एक चुनाव का पूरा Concept आज आपको इससे क्लियर हो जाएगा.

पहले 2 पॉइंट में समझ लेते हैं कि एक देश, एक चुनाव क्या है?

Point Number 1: अभी लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अलग-अलग होते हैं, लेकिन एक देश, एक चुनाव के Concept के तहत लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाए जाएंगे.

Point Number 2: देश में पंचायत और नगरपालिकाओं के चुनाव भी होते हैं, लेकिन एक देश, एक चुनाव के प्रस्ताव में इन्हें शामिल नहीं किया जाता. इस हिसाब से अगर एक देश, एक चुनाव का प्रस्ताव लागू होता है तो सिर्फ लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव ही एक साथ होंगे.

पहले होते रहे हैं एक साथ चुनाव

अब आप सोचेंगे कि ये तो बढ़िया चीज है. इसे लागू करने में क्या दिक्कत हो सकती है और ये नियम पहले क्यों नहीं लागू हुए? आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आजादी के बाद भारत में एक देश, एक चुनाव का ही Concept था.

  • 1967 तक भारत में राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के लिए एक साथ ही चुनाव होते थे.
  • 1952 में हुए पहले चुनाव, उसके बाद 1957, 1962 और 1967 में दोनों चुनाव साथ-साथ हो चुके हैं.
  • 1968 में ये सिलसिला तब टूटा, जब कुछ राज्यों की विधानसभाएं, समय से पहले भंग कर दी गईं.
  • 1969 में भी यही हुआ. फिर 1971 में लोकसभा चुनाव समय से पहले होने के कारण यह लागू नहीं हुआ.

क्या राजनीतिक है अब ये प्रस्ताव लाने की वजह?

जब लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव पहले एकसाथ होते रहे हैं, तो अब अगर ऐसा दोबारा हो जाए तो दिक्कत क्या है? वैसे भी बीजेपी ने 2014 के अपने चुनावी घोषणापत्र में एक देश, एक चुनाव का वादा किया था, लेकिन सवाल है कि ये प्रस्ताव अब ही क्यों लाया गया? इसके पीछे की वजह राजनीतिक है. दरअसल, राजनीतिक रूप से देखें तो एक देश, एक चुनाव के Idea को प्रधानमंत्री मोदी का चक्रव्यूह बताया जा रहा है, जो उन्होंने विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A के खिलाफ तैयार किया है. ऐसा क्यो कहा जा रहा है-

  • इसे ऐसे समझिये विपक्षी दल, I.N.D.I.A के बैनर तले सिर्फ लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए एकजुट हुए हैं. विधानसभा चुनावों के लिए नहीं. अगर इसी साल पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव भी लोकसभा चुनाव के साथ हो गए तो विपक्षी एकता बिखर जाएगी.
  • इसे ऐसे समझिये कि आज I.N.D.I.A की बैठक में तय हुआ है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ेंगी. ये समझौता सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए होगा, लेकिन अगर लोकसभा और दिल्ली विधानसभा के चुनाव एकसाथ हो जाएं तो आम आदमी पार्टी और कांग्रेस क्या करेंगी? विधानसभा के चुनाव तो दोनों पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ लड़ती हैं.

आसान भाषा में कहें तो ये माना जा सकता है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हो गए, तो नए बने विपक्षी गठबंधन दलों में सीट बंटवारे पर मतभेद हो सकते हैं और I.N.D.I.A का Idea फेल हो सकता है. ये बात I.N.D.I.A गठबंधन में शामिल विपक्षी दल भी अच्छे से समझ रहे हैं. इसलिए एक देश, एक चुनाव के प्रस्ताव की Timing पर सवाल उठा रहे हैं. 

क्या विशेष सत्र में आ सकता है एक देश, एक चुनाव बिल?

विपक्ष जो सवाल उठा रहा है. उन्हें भी पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता. इसलिए हम इन सारे सवालों का भी dna टेस्ट करेंगे, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही पूछा जा रहा है कि क्या सितंबर में अचानक से बुलाए गए संसद सत्र में ही एक देश, एक चुनाव के बिल को पेश किया जा सकता है? फिलहाल इसका जवाब, सरकार नहीं दे रही है, लेकिन संसद का विशेष सत्र बुलाना, फिर पूर्व राष्ट्रपति की अगुवाई में एक कमेटी का गठन करना, ये सब इस दिशा आगे बढ़ने के संकेत हैं. लेकिन ये सब इतना आसान भी नहीं है. अभी तो सिर्फ कमेटी बनी है. अभी कमेटी विशेषज्ञों से राय लेगी, संवैधानिक सवालों के जवाब तलाशेगी और अभी तो ये भी तय नहीं है कि कमेटी अपनी रिपोर्ट कब देगी तो ये प्रक्रिया अभी लंबी चलने वाली है.

क्या व्यवहारिक है एकसाथ चुनाव कराना?

राजनीतिक अध्याय के बाद अब बात करते हैं एक देश, एक चुनाव के प्रस्ताव की व्यवहारिकता यानी Practicality की. सवाल ये है कि एक देश, एक चुनाव से होगा क्या ? इस सवाल का जवाब हमें Law Commission की 5 साल पुरानी रिपोर्ट में मिला. साल 2018 में Law Commission ने एक Draft तैयार किया था. इसमें एक देश, एक चुनाव के समर्थन में कुछ तर्क दिए गए थे.

  • पहला तर्क: अगर देश को लगातार Election Mode से आजाद करना है तो लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ ही कराने होंगे.
  • दूसरा तर्क: एक बार में चुनाव करवाने से पैसे की बचत होगी. Centre For Media Studies का अनुमान है कि 2019 के लोकसभा चुनाव करवाने में करीब 10 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे.
  • तीसरा तर्क: सरकारी नीतियां बेहतर तरीके से लागू होंगी और सरकार इनके लिए बेहतर योजना बना पाएगी.
  • चौथा तर्क: सरकारी मशीनरी, पूरा साल चुनाव की तैयारियों में जुटे रहने के बजाय विकास के कार्यों पर फोकस कर सकेगी.

आपने भी महसूस किया होगा कि जब भी चुनाव आते हैं तो सरकारी स्कूलों के शिक्षकों से लेकर अलग-अलग विभागों में काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों की ड्यूटी चुनावों में लगा दी जाती है. इसके अलावा सालभर अलग-अलग राज्यों में चुनावों के दौरान भारी संख्या में पुलिस और सुरक्षाबलों की तैनाती भी करनी पड़ती है. ये सब ताम-झाम देखकर शायद आपके मन में भी कभी तो आया होगा कि ये रोज-रोज के झंझट के बजाय एक बार में ही चुनाव करवा लिये जाएं तो इसमें क्या दिक्कत है?

क्या मुश्किल है एक देश, एक चुनाव की राह में?

एक देश, एक चुनाव एक ऐसा Concept है, जो सुनने में तो आसान लगता है, लेकिन इसे लागू करना इतना आसान नहीं है. खुद Law Commission ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि संविधान के मौजूदा ढांचे के तहत, एक साथ चुनाव नहीं करवाए जा सकते. संवैधानिक विशेषज्ञों के मुताबिक...अगर एक देश-एक चुनाव को लागू करना है तो तीन शर्तें पूरी करनी होंगी-

  • पहली शर्त: संविधान में कम से कम 5 संशोधन करने होंगे.
  • दूसरी शर्त: कम से कम 50 प्रतिशत राज्यों को भी संवैधानिक संशोधनों पर रजामंदी देनी होगी.
  • तीसरी शर्त: संवैधानिक संशोधनों के बाद संसद में बहुमत से बिल को पास करवाना होगा.

इस लिहाज से देखा जाए तो अभी सिर्फ बात छिड़ी है, अभी एक साथ चुनाव करवाने के लिए लंबी प्रक्रिया बाकी है. एक साथ चुनाव का कानून बनाने में कई तरह की संवैधानिक और व्यवाहारिक बाधाएं हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि ये हो ही नहीं सकता. इसका उदाहरण तो खुद भारत ही है, जहां पहले एक साथ ही चुनाव होते थे और अभी भी दुनिया के कई देशों में एक साथ ही चुनाव करवाने की परंपरा है.

किन देशों में होते हैं एकसाथ चुनाव

  • ब्रिटेन में House Of Commons, स्थानीय चुनाव और मेयर चुनाव साथ में होते हैं.
  • दक्षिण अफ्रीका में संसद, विधानसभाओं और नगर पालिकाओं के चुनाव भी एक साथ होते हैं.
  • इंडोनेशिया में राष्ट्रपति और Legislative Election साथ करवाए जाते हैं.
  • स्वीडन में भी हर चार साल में आम चुनाव के साथ County और नगरपालिकाओं के चुनाव एक साथ होते हैं.
  • इसके अलावा Germany, Phillipines, Brazil समेत कई अन्य देशों में भी एक साथ ही सारे चुनाव होते हैं.

इस लिहाज से देखें तो जो अन्य देशों में हो सकता है, वो भारत में भी हो सकता है, लेकिन इसको लेकर देश की आम जनता की राय सबसे ज़्यादा मायने रखती है.

इन व्यवहारिक सवालों का तलाशना होगा जवाब

अगर एक देश, एक चुनाव लागू हो गया तो कई व्यवहारिक सवाल भी होंगे, जिनका जवाब तलाशना होगा. जैसे कि अगर एक साथ चुनाव हुए और किसी राज्य में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बन गई तो क्या होगा? अगर किसी राज्य की सरकार, अविश्वास प्रस्ताव के जरिये समय से पहले गिर गई तो क्या होगा?

ऐसे कई सवाल हैं, जिनके जवाब मिलना बाकी है, और अभी तो सिर्फ प्रस्ताव तैयार हुआ है. सवाल ये भी है कि भारत जैसे बड़े और दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश में क्या एक साथ चुनाव करवाना सही भी है या नहीं? इन सवालों के जवाब जानने के लिए ही आज सरकार ने समिति का गठन किया है. इसलिए अभी तो सिर्फ चर्चा चली है, लंबा रास्ता तय करना बाकी है और अगर आप सोच रहे हैं कि ये बहुत जल्द होने वाला है, तो ऐसा मुश्किल ही लगता है.

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