Twitter
Advertisement
  • LATEST
  • WEBSTORY
  • TRENDING
  • PHOTOS
  • ENTERTAINMENT

Cloth Industry को मिल सकती है बड़ी राहत, जानिए कितने कम हो सकते हैं कॉटन के दाम

जानकारों के मुताबिक अगले एक से दो महीने में हाजिर और वायदा बाजार दोनों में ही भाव 40 हजार रुपये के स्तर तक आने की आशंका है.

Cloth Industry को मिल सकती है बड़ी राहत, जानिए कितने कम हो सकते हैं कॉटन के दाम
FacebookTwitterWhatsappLinkedin

डीएनए हिंदी: शॉर्ट टर्म में घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों (Cotton Price) में बड़ी गिरावट की आशंका जताई जाने लगी है. जानकारों का कहना है कि शॉर्ट टर्म यानी 1 से 2 महीने में कॉटन का भाव लुढ़ककर (Cotton Price Down)  40,000 रुपये के निचले स्तर तक आ सकता है. जानकारों के मुताबिक अगले एक से दो महीने में हाजिर और वायदा बाजार दोनों में ही भाव 40 हजार रुपये के स्तर तक आने की आशंका है. कॉटन आईसीई का भाव भी लुढ़ककर 131.5 सेंट प्रति पाउंड के स्तर पर आ सकता है. 

कितना गिरे भाव
शंकर-6 कॉटन का भाव जनवरी 2021 की तुलना में 108 फीसदी से ज्यादा बढ़कर 96,000 रुपये प्रति कैंडी के आस-पास कारोबार कर रहा है. जनवरी 2021 में शंकर-6 कॉटन का भाव 46,000 रुपये प्रति कैंडी (1 कैंडी=356 किलोग्राम) था, लेकिन भाव 1,00,000 रुपये की रिकॉर्ड ऊंचाई से नीचे है. बता दें कि शंकर-6 कॉटन एक्सपोर्ट में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने के साथ ही व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली किस्म है. 17 मई को 50,330 रुपये प्रति गांठ की रिकॉर्ड ऊंचाई को छूने के बाद कमोडिटी एक्सचेंज एमसीएक्स पर कॉटन जून वायदा करीब 12.2 फीसदी लुढ़क चुका है और मौजूदा समय में भाव 44,190 रुपये के आस-पास कारोबार कर रहा है. 

केंद्रीय सचिव ने कहा, देश में दो हफ्तों में स्थिर हो जाएंगी टमाटर की कीमत 

कीमतों में क्यों आई गिरावट?
ओरिगो ई-मंडी के असिस्टेंट जनरल मैनेजर (कमोडिटी रिसर्च) तरुण सत्संगी के अनुसार वैश्विक ग्रोथ की चिंता, सरकार के द्वारा शुल्क मुक्त कॉटन आयात नीति के ऐलान के बाद आयात में बढ़ोतरी, सामान्य मॉनसून का अनुमान और फसल वर्ष 2022-2023 में कपास का रकबा बढ़ने के अनुमान जैसे प्रमुख कारकों की वजह से कॉटन की कीमतों पर बिकवाली का दबाव है. तरुण सत्संगी का कहना है कि कीमतों में गिरावट की आशंका को लेकर हम पहले ही कई बार चेतावनी जारी कर चुके हैं. 

सत्संगी का कहना है कि पुरानी फसल-आईसीई कॉटन जुलाई वायदा का भाव 11 साल की ऊंचाई से 20 सेंट या 12.8 फीसदी लुढ़क चुका है. बता दें कि 4 मई 2022 को भाव ने 11 साल की ऊंचाई 155.95 को छुआ था. 17 मई से पुरानी फसल-आईसीई कॉटन जुलाई वायदा में भाव करेक्शन मोड में है. पुरानी फसल आईसीई कॉटन जुलाई वायदा के भाव ने प्रमुख सपोर्ट लेवल को तोड़ दिया है और ट्रेंड रिवर्सल प्वाइंट के नीचे बंद हो गया है, जो कि आने वाले दिनों में बाजार में मंदी का संकेत है. तरुण कहते हैं कि मांग की चिंता की वजह से कीमतों में करेक्शन देखा गया है. उन्होंने कहा कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में संभावित मंदी को लेकर शुरुआती संकेत के साथ ही चिंताएं भी हैं, ऐसे में अगर मंदी आती है तो औद्योगिक कमोडिटीज की कीमतें गिर सकती हैं और उस स्थिति में कॉटन में भी गिरावट आएगी. अमेरिका के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में हाल ही में हुई बारिश को तथाकथित 'राहत' के तौर पर देखा जा रहा है. अक्सर देखा जा चुका है कि पश्चिम टेक्सास में बारिश के संकेत मात्र से बाजार फिर से करेक्शन मोड में चला जाता है.

एक गलत Key दबने से हो गया 250 करोड़ रुपए का नुकसान, आखिर क्या होता है Fat Finger Key 

शुल्क हटाने के बाद कॉटन आयात में बढ़ोतरी
उनका कहना है कि भारतीय व्यापारियों और मिलों ने शुल्क हटाने के बाद 5,00,000 गांठ कॉटन की खरीदारी विदेशों से की है. 2021-22 के लिए कुल आयात अब 8,00,000 गांठ हो गया है. सितंबर के अंत तक अन्य संभावित 8,00,000 गांठ के आयात के साथ 2021-22 के लिए कुल आयात 16 लाख गांठ हो जाएगा. कॉटन के ज्यादातर आयात अमेरिका, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया और पश्चिम अफ्रीकी देशों से हुए हैं. भारत आमतौर पर अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका या ऑस्ट्रेलिया से 5,00,000-6,00,000 गांठ एक्स्ट्रा लॉन्ग स्टेपल कॉटन का आयात करता है, क्योंकि यह स्थानीय स्तर पर इसका उत्पादन नहीं होता है. भारत 5,00,000-7,00,000 गांठ संक्रमण मुक्त कॉटन का भी आयात करता है.

भाव ऊंचा होने से घट गया निर्यात
2021-22 के फसल वर्ष में मई 2022 तक तकरीबन 3.7-3.8 मिलियन गांठ कॉटन का निर्यात किया जा चुका है, जबकि एक साल पहले की समान अवधि में 5.8 मिलियन गांठ कॉटन का निर्यात किया गया था. कॉटन की ऊंची कीमतों ने निर्यात को आर्थिक रूप से अव्यवहारिक बना दिया है. इस साल भारत का कॉटन निर्यात 4.0-4.2 मिलियन गांठ तक सीमित रह सकता है, जबकि 2020-21 में 7.5 मिलियन गांठ कॉटन निर्यात हुआ था. 

Crude Oil प्रोडक्शन बढऩे के बाद भी सस्ता नहीं होगा भारत में Petrol और Diesel, जानिए सबसे बड़ी वजहें 

भारत में सीमित रह सकती है कपास की खेती 
2022-23 में भारत में कपास की बुआई सालाना आधार पर 5-10 फीसदी बढ़कर 126-132 लाख हेक्टेयर रहने का अनुमान है, जबकि 2021-22 में 120 लाख हेक्टेयर में कपास की बुआई हुई थी. भारत में ज्यादा रिटर्न और सामान्य मॉनसून के पूर्वानुमान को देखते हुए 2022-23 के लिए कपास आकर्षक फसलों में से एक है, लेकिन अन्य फसलों की तुलना में श्रम की लागत ज्यादा होने से कपास का रकबा सीमित रहेगा. देशभर में कपास की बुआई में बढ़ोतरी की संभावना के बावजूद महाराष्ट्र और गुजरात में कपास की खेती थोड़ी कम हो सकती है. महाराष्ट्र के किसान कम अवधि की फसल होने की वजह से सोयाबीन और दलहन की ओर रुख कर सकते हैं, जबकि गुजरात में किसान मूंगफली की खेती की ओर रुख कर सकते हैं.

अमेरिका में कपास की बुआई में हल्की बढ़ोतरी
USDA-NASS के मुताबिक अमेरिका में 29 मई 2022 तक फसल वर्ष 2022-23 के लिए कपास की बुआई 68 फीसदी पूरी हो चुकी है, जो कि पिछले हफ्ते की बुआई 62 फीसदी से 6 फीसदी ज्यादा है. पिछले साल की समान अवधि में 62 फीसदी बुआई हुई थी और पांच साल की औसत बुआई 64 फीसदी दर्ज की गई है.
 

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों पर अलग नज़रिया, फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर. 

Advertisement

Live tv

Advertisement

पसंदीदा वीडियो

Advertisement