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म्यांमार यात्रा वृतांत : शताब्दियों से क़ैद है एक प्रेमिका

  • गीताश्री

राजकुमारी थोएबा एक ख़्वाब थी, एक अभिशप्त रुह , एक सशक्त स्त्री , एक अप्रतिम रुपसी और इन सबसे बढ़ कर अद्भुत प्रेमिका !

ऐसी निष्ठावान प्रेमिकाएँ सदियों तक अभिशाप झेलती रहती हैं और एक दिन पत्थर बन जाती हैं.

जब मैं मणिपुर से बॉर्डर क्रॉस करके पैदल वर्मा की तरफ़ जा रही थी, अपने पत्रकार मित्रों के संग तब कहाँ पता था कि इस नये देश में किसी अभिशप्त प्रेमिका से , उसकी भटकती रुह से मुलाक़ात होगी. हम तो रंगून (यांगून) के रुमानी ख़्वाब में डूबे थे और गाना गा रहे थे - “मेरे पिया गए रंगून … वहाँ से किया है टेलीफून …”

मेरे साथ चल रही निवेदिता माने गुनगुनाई - पिया चल गइले रंगून (यांगून) … कचौरी गली सून कइले सून बलमू …

म्यांमार में दाख़िल होना

 

हम रंगून (यांगून) शहर से दूर मणिपुर बॉर्डर के पास एक गाँव में थे . रंगून (यांगून) दूर था. बस रंगून (यांगून) को लेकर नोस्टाल्जिक हो उठे थे हम सब. भारतीय सीमा से बहुत चेकिंग और परमिट लेकर हमें एक बड़े गेट से होते हुए रास्ता वर्मा की सीमा में प्रवेश करता है. गेट पार करते ही बड़ा -सा सब्ज़ी मार्केट दिखाई देगा, जहां सिर्फ़ स्त्रियाँ, लड़कियाँ सब्ज़ी, फल बेचती हुई बैठी मिली. पूरा माहौल उनके शोर से भरा हुआ था. भारतीय मज़दूर दोनों तरफ़ कंधे पर बोरा भर कर शायद अन्न इधर उधर ले जा रहे थे. ये गेट शाम पाँच बजे तक ही खुला रहता है. सुबह से लेकर शाम तक आप वर्मा देश में कहीं भी घूम सकते हैं. शाम होते ही गेट बंद और गेट बंद होने से पहले भारतीय सीमा में वापस आ जाना होता है, चाहे टूरिस्ट हों या व्यापारी. हम सुबह सुबह पहुँचे थे, इसलिए हमारे पास पूरा दिन था.

बॉर्डर पैदल पार कर जब हम वर्मा की सीमा में घुसे तो ऑटो सवारी ली हमने. भारत की तरह ही सौदेबाज़ी करनी पड़ी. थोड़ी बहुत खिचखिच के बाद रेट तय हुआ. हमें बुद्ध टेंपल दिखाने ले जा रहे थे कि रास्ते में ही ऑटो चालक ने कहा - यहाँ थोइबा लेक है… देखेगा ?

मैं उछल पड़ी. जरुर देखेगा… बस ले चलो. पानी खींचता है बहुत. इससे ज़्यादा आकर्षण मैंने किसी चीज में नहीं पाया.

जब हम बौद्ध टेंपल के पास पहुँचे , वहाँ एक छोटा-सा बर्मीज़ घर था जिसके बाहर बैठी एक स्त्री चंदन और हल्दी घिस रही थी. मई का महीना था, हल्की गर्मी पड़ रही थी. हवा में ठंड की ख़ुनक थी. वहाँ से गुजरने वाली हर लड़की के चेहरे पर , माथे पर चंदन -हल्दी का लेप लगा हुआ था. वे मज़े से घूम रही थी. चंदन घिसती हुई स्त्री के पास मैं बेधड़क पहुँच गई. उसके चेहरे पर भी लगा हुआ था चंदन. मैंने अपने चेहरे की ओर इशारा किया. वह बहुत खुश हो गई और अपनी गोरी -गदबदी ऊंगलियों से मेरे माथे पर लकीरें खींची और फिर दोनों गालों पर लगा दिया. मैंने अपना चेहरा मोबाइल के कैमरे में देखा , बड़ा भला -सा लगा. फिर तो मैं पूरे दिन उसी तरह घूमती रही. मुझे ज़रा -भी अटपटा नहीं लगा. हमारा ऑटो चालक टूटी फूटी हिंदी बोलता था. वो मेरी तरफ़ देख कर बहुत खुश होता हुआ बोला- “आप तो हमारे कल्चर में रंग गई हो. ये हमारे यहाँ की परंपरा है. गर्मी बहुत पड़ती है न. चेहरे का स्कीन दल जाता है. इसलिए लड़कियाँ चेहरे पर लगा लेती हैं, चेहरा दिन भर ठंडा रहता है और सेफ भी रहता है.”

वह मुझसे घुल मिल गया था. हम रास्ते भर उससे गाइड की तरह पूछते चल रहे थे और जानकारी का भंडार निकला.

थोइबा लेक पहुँची तो वहाँ थोड़ी निराशा हुई. कोई नाव न थी. न वहाँ रौनक़. जैसे कोई अभिशप्त झील शोक में गहरी हरी रंग की हो गई हो.

princess myammar

थोइबा और खामबा की कहानी वाला झील  

चालक को मैंने कहा कि यहाँ का इतिहास बताओ.. वो दूर झील के बीच में पिंजरे जैसा क्या है? किसकी मूर्ति है? किनारे से वहाँ तक जाने के लिए पतली राह थी, हम वहाँ पहुँचे. पिंजरे जैसा मंदिर और उसके अंदर एक बौद्ध भिक्षुणी , हाथ में कटोरा लिए हुए. वह सलाख़ों के भीतर थी और बाहर कुछ अगरबत्तियाँ जल रही थीं. कुछ फूल पड़े हुए थे.

ये कौन है? क्या कहानी है इसकी ?”

ये राजकुमारी थोइबा हैं …12वीं शताब्दी में मणिपुर के राजा की बेटी थोइबा यहाँ फ़िशिंग के लिए आती थीं. आज इन्हें वर्मा की लोक कथाओं में वर्मा की जूलियट कहा जाता है. “

इनका मंदिर ऐसा क्यों है? क्या वो बौद्ध भिक्षुणी बन गईं थीं? “

मेरी उत्सुकता चरम पर.

मैम… उनकी कहानी बहुत दुखद है. प्रेम की दुखद दास्तान है. इनके प्रेमी का नाम खामबा था. लेकिन इनकी सगाई एक दुष्ट इन्सान नोंगबान से हुई थी. उस आदमी की छवि रावण जैसी थी. राजकुमारी ने शादी से इंकार कर दिया. तब राजा ने ग़ुस्से में आकर उन्हें मणिपुर से बाहर निकाल दिया. उन्हें इसी झील में रहने की सजा दी. वे भिक्षा मांग कर गुज़ारा करती थीं और एक दिन यही तड़प कर मर गईं. “

खामबा से मिलन हुआ या नहीं? “

नहीं मैम… बड़ी लंबी और दुखद दास्ताँ है. इसीलिए यहाँ जूलियट है… रोमियों नहीं.

मुझे पूरी कथा चाहिए भाई.”

हम वापस लौट रहे थे और उस दुखद प्रेम कथा के बारे में सोच रहे थे.

मणिपुर पहुँच कर पूरी कथा जुटाई मैंने. सब काम छोड़कर मेरी दिलचस्पी प्रेम के उस दुखद महाख्यान की तरफ़ चला गया था. पता चला कि मणिपुर की यह सबसे लोकप्रिय लोककथा है.

Myanmar travel

12वीं शताब्दी में मोएरेंगो नगर के एक अमीर बहादुर ऑफ़िसर का बेटा खामबा अनाथ हो गया था. उसकी बहन उसे लेकर दर दर भीख माँगती फिरती थी. दोनों भाई बहन कभी कभी मज़दूरी करके अपना पेट पालते थे. थोएबी उस राज्य के राजा की सगी भतीजी थी. चूँकि राजा को कोई संतान न हुई तो थोइबी को पाला पोसा. एक दिन थोएबी की मुलाक़ात खामबा से हो गई. पहली मुलाक़ात में ही दोनों एक दूसरे से प्रेम कर बैठे. दोनों ने एक दूसरे से वादा किया कि शादी करेंगे. इनकी प्रेम कथा में एक विलेन घुसा. जैसा कि अक्सर हर युग की प्रेम कथाओं में यह त्रासदी होती है. राजा के ऑफ़िसर का बेटा नोंगबान उर्फ़ कोंगयाम्बा को भी राजकुमारी से प्यार हो गया. थोइबा ने उसका प्यार ठुकरा दिया. उससे नफ़रत करने लगी. राजा को थोइबा और उसके प्रेमी पर बहुत क्रोध हुआ. उन्होंने दरबार बुला कर सार्वजनिक घोषणा कर दी कि वे अपनी पुत्री का ब्याग कोंगयाम्बा से करेंगे. इस घोषणा के बाद दोनों प्रेमियों के जीवन में भूचाल आ गया.

थोइबा ने उसी महफिल में खामबा की पत्नी बनने का ऐलान कर दिया. अब सीधा टकराव प्रारंभ. राजा तो राजा पहले पिता बाद में. अपनी आज्ञा अवहेलना कैसे कहता? बेटी को राज्य से निर्वासित कर दिया और कोंगयाम्बा को आदेश दिया - खामबा का क़त्ल कर दे.

इस तरह इस प्रेम का दुखद अंत होता है. इस प्रेम कथा के कई अंत सुनाते हैं वहाँ. सबमें अंत में खाम्बा की मौत होती है और थोइबा का निर्वासन .

सदियों से प्रेम कहानी ऐसी ही होती है… सच्ची  प्रेमिकाएँ निर्वासन झेलती हैं और सच्चे प्रेमी मारे जाते हैं.

थोइबा आज भी क़ैद में निर्वासन झेल रही है और खामबा का कहीं पता नहीं.

लौटते हुए मेरा मन उद्विग्न हो उठा है. सदियों से

इस दुनिया में प्रेम के सबसे अधिक शत्रु हैं…!!

इतना इत्मीनान है कि आज भी वहाँ प्रेमी जोड़े थोइबा के आगे माथा टेकने आते हैं.

 

(रंगून म्यांमार की राजधानी यांगून शहर का प्राचीन नाम है.)

(गीता श्री लेखिका और पत्रकार हैं. अपने प्रखर विचारों और लोकप्रिय पुस्तकों के लिए सुख्यात हैं.)

(यहाँ दिये गये विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)

म्यांमार यात्रा वृतांत : शताब्दियों से क़ैद है एक प्रेमिका
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राजकुमारी थोएबा एक ख़्वाब थी, एक अभिशप्त रुह , एक सशक्त स्त्री , एक अप्रतिम रुपसी और इन सबसे बढ़ कर अद्भुत प्रेमिका !

ऐसी निष्ठावान प्रेमिकाएँ सदियों तक अभिशाप झेलती रहती हैं और एक दिन पत्थर बन जाती हैं.

जब मैं मणिपुर से बॉर्डर क्रॉस करके पैदल वर्मा की तरफ़ जा रही थी, अपने पत्रकार मित्रों के संग तब कहाँ पता था कि इस नये देश में किसी अभिशप्त प्रेमिका से , उसकी भटकती रुह से मुलाक़ात होगी. हम तो रंगून (यांगून) के रुमानी ख़्वाब में डूबे थे और गाना गा रहे थे - “मेरे पिया गए रंगून … वहाँ से किया है टेलीफून …”

मेरे साथ चल रही निवेदिता माने गुनगुनाई - पिया चल गइले रंगून (यांगून) … कचौरी गली सून कइले सून बलमू …

म्यांमार में दाख़िल होना

 

हम रंगून (यांगून) शहर से दूर मणिपुर बॉर्डर के पास एक गाँव में थे . रंगून (यांगून) दूर था. बस रंगून (यांगून) को लेकर नोस्टाल्जिक हो उठे थे हम सब. भारतीय सीमा से बहुत चेकिंग और परमिट लेकर हमें एक बड़े गेट से होते हुए रास्ता वर्मा की सीमा में प्रवेश करता है. गेट पार करते ही बड़ा -सा सब्ज़ी मार्केट दिखाई देगा, जहां सिर्फ़ स्त्रियाँ, लड़कियाँ सब्ज़ी, फल बेचती हुई बैठी मिली. पूरा माहौल उनके शोर से भरा हुआ था. भारतीय मज़दूर दोनों तरफ़ कंधे पर बोरा भर कर शायद अन्न इधर उधर ले जा रहे थे. ये गेट शाम पाँच बजे तक ही खुला रहता है. सुबह से लेकर शाम तक आप वर्मा देश में कहीं भी घूम सकते हैं. शाम होते ही गेट बंद और गेट बंद होने से पहले भारतीय सीमा में वापस आ जाना होता है, चाहे टूरिस्ट हों या व्यापारी. हम सुबह सुबह पहुँचे थे, इसलिए हमारे पास पूरा दिन था.

बॉर्डर पैदल पार कर जब हम वर्मा की सीमा में घुसे तो ऑटो सवारी ली हमने. भारत की तरह ही सौदेबाज़ी करनी पड़ी. थोड़ी बहुत खिचखिच के बाद रेट तय हुआ. हमें बुद्ध टेंपल दिखाने ले जा रहे थे कि रास्ते में ही ऑटो चालक ने कहा - यहाँ थोइबा लेक है… देखेगा ?

मैं उछल पड़ी. जरुर देखेगा… बस ले चलो. पानी खींचता है बहुत. इससे ज़्यादा आकर्षण मैंने किसी चीज में नहीं पाया.

जब हम बौद्ध टेंपल के पास पहुँचे , वहाँ एक छोटा-सा बर्मीज़ घर था जिसके बाहर बैठी एक स्त्री चंदन और हल्दी घिस रही थी. मई का महीना था, हल्की गर्मी पड़ रही थी. हवा में ठंड की ख़ुनक थी. वहाँ से गुजरने वाली हर लड़की के चेहरे पर , माथे पर चंदन -हल्दी का लेप लगा हुआ था. वे मज़े से घूम रही थी. चंदन घिसती हुई स्त्री के पास मैं बेधड़क पहुँच गई. उसके चेहरे पर भी लगा हुआ था चंदन. मैंने अपने चेहरे की ओर इशारा किया. वह बहुत खुश हो गई और अपनी गोरी -गदबदी ऊंगलियों से मेरे माथे पर लकीरें खींची और फिर दोनों गालों पर लगा दिया. मैंने अपना चेहरा मोबाइल के कैमरे में देखा , बड़ा भला -सा लगा. फिर तो मैं पूरे दिन उसी तरह घूमती रही. मुझे ज़रा -भी अटपटा नहीं लगा. हमारा ऑटो चालक टूटी फूटी हिंदी बोलता था. वो मेरी तरफ़ देख कर बहुत खुश होता हुआ बोला- “आप तो हमारे कल्चर में रंग गई हो. ये हमारे यहाँ की परंपरा है. गर्मी बहुत पड़ती है न. चेहरे का स्कीन दल जाता है. इसलिए लड़कियाँ चेहरे पर लगा लेती हैं, चेहरा दिन भर ठंडा रहता है और सेफ भी रहता है.”

वह मुझसे घुल मिल गया था. हम रास्ते भर उससे गाइड की तरह पूछते चल रहे थे और जानकारी का भंडार निकला.

थोइबा लेक पहुँची तो वहाँ थोड़ी निराशा हुई. कोई नाव न थी. न वहाँ रौनक़. जैसे कोई अभिशप्त झील शोक में गहरी हरी रंग की हो गई हो.

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थोइबा और खामबा की कहानी वाला झील  

चालक को मैंने कहा कि यहाँ का इतिहास बताओ.. वो दूर झील के बीच में पिंजरे जैसा क्या है? किसकी मूर्ति है? किनारे से वहाँ तक जाने के लिए पतली राह थी, हम वहाँ पहुँचे. पिंजरे जैसा मंदिर और उसके अंदर एक बौद्ध भिक्षुणी , हाथ में कटोरा लिए हुए. वह सलाख़ों के भीतर थी और बाहर कुछ अगरबत्तियाँ जल रही थीं. कुछ फूल पड़े हुए थे.

ये कौन है? क्या कहानी है इसकी ?”

ये राजकुमारी थोइबा हैं …12वीं शताब्दी में मणिपुर के राजा की बेटी थोइबा यहाँ फ़िशिंग के लिए आती थीं. आज इन्हें वर्मा की लोक कथाओं में वर्मा की जूलियट कहा जाता है. “

इनका मंदिर ऐसा क्यों है? क्या वो बौद्ध भिक्षुणी बन गईं थीं? “

मेरी उत्सुकता चरम पर.

मैम… उनकी कहानी बहुत दुखद है. प्रेम की दुखद दास्तान है. इनके प्रेमी का नाम खामबा था. लेकिन इनकी सगाई एक दुष्ट इन्सान नोंगबान से हुई थी. उस आदमी की छवि रावण जैसी थी. राजकुमारी ने शादी से इंकार कर दिया. तब राजा ने ग़ुस्से में आकर उन्हें मणिपुर से बाहर निकाल दिया. उन्हें इसी झील में रहने की सजा दी. वे भिक्षा मांग कर गुज़ारा करती थीं और एक दिन यही तड़प कर मर गईं. “

खामबा से मिलन हुआ या नहीं? “

नहीं मैम… बड़ी लंबी और दुखद दास्ताँ है. इसीलिए यहाँ जूलियट है… रोमियों नहीं.

मुझे पूरी कथा चाहिए भाई.”

हम वापस लौट रहे थे और उस दुखद प्रेम कथा के बारे में सोच रहे थे.

मणिपुर पहुँच कर पूरी कथा जुटाई मैंने. सब काम छोड़कर मेरी दिलचस्पी प्रेम के उस दुखद महाख्यान की तरफ़ चला गया था. पता चला कि मणिपुर की यह सबसे लोकप्रिय लोककथा है.

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12वीं शताब्दी में मोएरेंगो नगर के एक अमीर बहादुर ऑफ़िसर का बेटा खामबा अनाथ हो गया था. उसकी बहन उसे लेकर दर दर भीख माँगती फिरती थी. दोनों भाई बहन कभी कभी मज़दूरी करके अपना पेट पालते थे. थोएबी उस राज्य के राजा की सगी भतीजी थी. चूँकि राजा को कोई संतान न हुई तो थोइबी को पाला पोसा. एक दिन थोएबी की मुलाक़ात खामबा से हो गई. पहली मुलाक़ात में ही दोनों एक दूसरे से प्रेम कर बैठे. दोनों ने एक दूसरे से वादा किया कि शादी करेंगे. इनकी प्रेम कथा में एक विलेन घुसा. जैसा कि अक्सर हर युग की प्रेम कथाओं में यह त्रासदी होती है. राजा के ऑफ़िसर का बेटा नोंगबान उर्फ़ कोंगयाम्बा को भी राजकुमारी से प्यार हो गया. थोइबा ने उसका प्यार ठुकरा दिया. उससे नफ़रत करने लगी. राजा को थोइबा और उसके प्रेमी पर बहुत क्रोध हुआ. उन्होंने दरबार बुला कर सार्वजनिक घोषणा कर दी कि वे अपनी पुत्री का ब्याग कोंगयाम्बा से करेंगे. इस घोषणा के बाद दोनों प्रेमियों के जीवन में भूचाल आ गया.

थोइबा ने उसी महफिल में खामबा की पत्नी बनने का ऐलान कर दिया. अब सीधा टकराव प्रारंभ. राजा तो राजा पहले पिता बाद में. अपनी आज्ञा अवहेलना कैसे कहता? बेटी को राज्य से निर्वासित कर दिया और कोंगयाम्बा को आदेश दिया - खामबा का क़त्ल कर दे.

इस तरह इस प्रेम का दुखद अंत होता है. इस प्रेम कथा के कई अंत सुनाते हैं वहाँ. सबमें अंत में खाम्बा की मौत होती है और थोइबा का निर्वासन .

सदियों से प्रेम कहानी ऐसी ही होती है… सच्ची  प्रेमिकाएँ निर्वासन झेलती हैं और सच्चे प्रेमी मारे जाते हैं.

थोइबा आज भी क़ैद में निर्वासन झेल रही है और खामबा का कहीं पता नहीं.

लौटते हुए मेरा मन उद्विग्न हो उठा है. सदियों से

इस दुनिया में प्रेम के सबसे अधिक शत्रु हैं…!!

इतना इत्मीनान है कि आज भी वहाँ प्रेमी जोड़े थोइबा के आगे माथा टेकने आते हैं.

 

(रंगून म्यांमार की राजधानी यांगून शहर का प्राचीन नाम है.)

(गीता श्री लेखिका और पत्रकार हैं. अपने प्रखर विचारों और लोकप्रिय पुस्तकों के लिए सुख्यात हैं.)

(यहाँ दिये गये विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)

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