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15 August 1947: दिल्ली में कैसा था जश्न-ए-आजादी का पहला दिन, जानें विस्तार से

15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था. उस दिन दिल्ली में जश्न का अलग ही माहौल था. पहली बार 14 से 16 अगस्त के दिन दिल्ली में जमकर पतंगबाजी हुई. इसके बाद यह परंपरा बन गई और लोग स्वतंत्रता दिवस के मौक पर पतंग उड़ाने लगे...

15 August 1947: दिल्ली में कैसा था जश्न-ए-आजादी का पहला दिन, जानें विस्तार से

1947 की तस्वीर

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डीएनए हिन्दी: देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. पूरा देश खुशियों में डूबा हुआ है. जश्न मना रहा है. लेकिन, 1947 में आजादी के दिन दिल्ली का माहौल कैसा था, आइए इसको विस्तार से समझते हैं.

सदियों की गुलामी के बाद देश आजाद हुआ था. पूरे देश के साथ-साथ दिल्ली में भी जश्न का माहौल था. सुबह-सुबह हर कोई अपने घरों से बाहर जश्न मनाने निकल पड़ा था. उस वक्त देश में गरीबी थी. उस वक्त मध्यम वर्ग भी आमतौर पर मिठाई नहीं खाता था, लेकिन वह भी उस दिन मिठाई खरीद रहा था. न सिर्फ खा रहा था बल्कि उसको गरीब लोगों के बीच बांट भी रहा था. जगह-जगह हवन-पूजन का आयोजन देखने को मिल रहा था.

पुरानी दिल्ली से ताल्लुक रखने वाले कई शख्स का कहना है कि 15 अगस्त 1947 को दिल्ली की रौनक कुछ अलग ही थी. पुरानी दिल्ली के हिन्दू-मुसलमान दोनों मिलकर जश्न मना रहे थे. उस समय 14 से 16 अगस्त के बीच खूब पतंजबाजी हुई. उसके पहले ऐसा देखने को नहीं मिलता था. स्वतंत्रता दिवस के दिन पतंजबाजी देश के लिए परंपरा बन गई. उसके बाद हर साल 15 अगस्त को लोग पतंग उड़ाने लगे. न सिर्फ दिल्ली में बल्कि पूरे देश में हर साल 15 अगस्त को लोग पतंग उड़ाने लगे हैं.

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कुछ लोगों का कहना है कि उस पुरानी दिल्ली, खासकर लालकिले के आसपास का माहौल ही अलग था. ऐसा लग रहा था कि कोई मेला लगा हो. सपेरे, भालू का नाच दिखाने वाले, जादूगर, ज्योतिषि, जगह-जगह दंगल, बांसुरी बजाने वाले, तरह-तरह के करतब दिखाने वाले बाजीगर, सब अपने-अपने कला का प्रदर्शन कर लोगों का मनोरंजन कर रहे थे.

पुरानी दिल्ली के कुछ बाशिंदों ने अलग ही दावा किया. उन्होंने कहा कि कटरा नील में कई हिन्दुओं का परिवार रहता था. उन्होंने उस दिन एक बड़ा हवन का आयोजन किया था. उस हवन में न सिर्फ हिन्दू बल्कि मुसलमानों ने भी आहुतियां डालीं. उन लोगों ने हवन  बाद चाय और नाश्ते का भी प्रबंध कर रखा था. 

उस लालकिले के आसपास बाइस्कोप वाले भी थे. उनके यहां गजब की भीड़ थी. बाइस्कोप देखने के लिए लंबी-लंबी लाइनें लगी थीं. अपनी बारी के लिए लोग घंटों इंतजार करने को तैयार थे.

मिठाई की दुकान चलाने वाले कई दुकानदारों ने उस दिन मुफ्त में मिठाइयां बांटी. पुरानी दिल्ली की पुराने बाशिंदे उसे याद कर आज भी आह्लादित हो उठते हैं.

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