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Kashi Ki Holi: 3 मार्च को काशी के श्मशान घाट पर होगी चिताओं के भस्म से होली, नगरवधुएं करेंगी सारी रात नाच-गाना

Masane ki Holi: बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन रंग-गुलाल से नहीं बल्कि चिताओं के भस्म से होली खेलने की अनूठी परंपरा है.

Kashi Ki Holi: 3 मार्च को काशी के श्मशान घाट पर होगी चिताओं के भस्म से होली, नगरवधुएं करेंगी सारी रात नाच-गाना

3 मार्च को काशी के श्मशान घाट पर होगी चिताओं के भस्म से होली

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डीएनए हिंदीः इस बार 08 मार्च 2023 को देशभर में होली (Holi 2023) का त्योहार मनाया जाएगा. वैसे तो होली का रंग पूरे देश में छा जाता है लेकिन, बाबा विश्वनाथ (Kashi Vishwanath) की नगरी काशी में बेहद ही खास होली (Kashi Ki Holi) मनाई जाती है. यहां होली की शुरुआत रंगभरी एकादशी के दिन से ही शुरू हो जाती है और श्मशान घाट (Masane ki Holi) पर चिताओं की राख से होली खेली जाती है और वहीं पर नगरवधुएं सारी रात नाच-गाना करती हैं. 

कहा जाता है कि काशी के मणिकर्णिका (Manikarnika Ghat Holi) घाट और हरिश्चंद्र घाट पर भगवान शिव विचित्र होली खेलते हैं (Chita Bhasm Holi). तो चलिए जानते हैं काशी की होली की इस विचित्र व अनूठी परंपरा के बारे में. 

काशी में श्मशान में होली खेलने की है परंपरा (Masane Ki Holi 2023)

काशी में होली खेलने की परंपरा सबसे अलग और विचित्र है. यहां हरिश्चंद्र घाट और मणिकर्णिमा घाट पर चिताओं के जलने और शवयात्रा का सिलसिला लगा रहता है. होली के दिन यहां रंगों से नहीं बल्कि चिताओं की भस्म से होली खेली जाती है. काशी में इस विचित्र होली खेलने के पीछे एक मान्यता है, कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव यहां रंग-गुलाल नहीं बल्कि चिताओं के भस्म से होली खेलते हैं.

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क्या है ‘मसाने की होली’ खेलने की परंपरा (Masan Holi Varanasi) 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार काशी में मसाने की होली की परंपरा की शुरुआत भगवान शिवजी से मानी जाती है. मान्यता है कि यहां रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव माता गौरी का गौना कराने के बाद उन्हें काशी लेकर आए थे. ऐसे में इस दिन उन्होंने अपने गणों के साथ रंग-गुलाल की होली खेली थी. लेकिन श्मशान में बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष गन्धर्व आदि के साथ भगवान शिव होली नहीं खेल पाए थे. 

कहा जाता है तब रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन भगवान शिव ने श्मशान में बसने वाले अपने प्रिय भूत-पिशाचों के साथ होली खेली थी. इसलिए रंगभरी एकादशी से लेकर पूरे 6 दिनों तक यहां होली होती है और हरिश्चंद्र घाट में महाश्मशान नाथ की आरती के बाद इसकी शुरुआत होती है. यह पर भस्म की होली खेलने की परंपरा सालों से चली आ रही है.

होली खेलें मसाने में (Holi Khele Masane Mein)

'होली खेलें मसाने में' गीत से काशी के इस विचित्र होली को महसूस किया जा सकता है. क्योंकि, इस गीत पर भगवान भोलेनाथ की विचित्र तस्वीर पेश होती है. लोगों में आज भी श्मशान घाट पर मसाने की होली खेलने को लेकर अलग ही उत्साह देखने को मिलता है. हर साल रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन यहां लोग धूमधाम के साथ मसाने की होली खेलते हैं.

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इस दिन यहां चिताओं की राख, भस्म और गुलाल से होली खेली जाती है. यही कारण है कि काशी के मसाने की होली विचित्र और अनूठी मानी जाती है. काशी की मसाने की होली इस बात का संदेश देती है कि, शव ही अंतिम सत्य है और श्मशान घाट जीवनयात्रा की थकान के बाद की अंतिम विश्रामस्थली है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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