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गांधी से मोदी तक, कैसे खादी बन गया देश का सबसे बड़ा स्वदेशी ब्रांड?

स्वाधीनता संग्राम से लेकर आधुनिक भारत तक खादी ने अलग-अलग पड़ाव तय किया है. हर गुजरते साल के साथ-साथ खादी कपड़ों का सबसे बड़ा ब्रांड बनता गया.

गांधी से मोदी तक, कैसे खादी बन गया देश का सबसे बड़ा स्वदेशी ब्रांड?

महात्मा गांधी के खादी प्रेम ने भारत की दिशा बदल दी थी. (फाइल फोटो)

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जयराम विप्लव.

भारत में स्वदेशी का सबसे बड़ा ब्रांड है 'खादी' और इस ब्रांड का गुजरात कनेक्शन बड़ा दिलचस्प है. खादी की शुरुआत कर स्वदेशी अभियान से जोड़ने वाले महात्मा गांधी और आज खादी को अत्याधुनिक ब्रांड बनाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों हीं गुजरात से आते हैं.
 
भारत में खादी के इतिहास पर नज़र डालें तो चरखे के जरिये हाथ से काते हुए सूती कपड़े वाले खादी की शुरुआत सन 1920 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने की थी. कुछ वर्षों में ही विदेशी कपड़ों की होली जलाना और खादी वस्त्र पहनना भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक व्यापक अंग बन गया था. 

भारत की आज़ादी के बाद भी भारतीय नेताओं ने खादी को स्वदेशी पहचान से जुड़ने के लिए पहनना जारी रखा. खादी पर केंद्र सरकार की निगाहें बनी रही. साल 1956 में पारित एक कानून के अंतर्गत खादी की बिक्री, इसका उत्पादन और इसके प्रचार प्रसार की ज़िम्मेदारी सरकार ने अपने हाथों में रखी.

खादी ग्राम उद्योग के माध्यम से ही ग्राम समूहों के द्वारा उत्पादन और खादी भंडार के नाम से चल रहे विक्रय केंद्रों के माध्यम से यह आगे भी बढ़ी लेकिन जैसे-जैसे बाजार हावी होता गया कुछ सालों में खादी की चमक भी फीकी पड़ी. 

नए-नए फैशन के आने से भी खादी नज़रअंदाज़ होता गया. समय की धारा के साथ अपने को विकसित न कर पाने के कारण मांग घटती गई तो धीरे धीरे खादी ग्रामोद्योग महज एक सरकारी औपचारिकता बनकर 'गांधी जयंती' की सेल तक सिमट गई. 

किसी ने खादी की लोकप्रियता की संभावनाओं को तलाशने की मुकम्मल कोशिश नहीं की. हिंदी दिवस की भांति खादी भी सरकार की खानापूर्ति का पर्याय बनकर रह गया था लेकिन वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने खादी को अपने प्राथमिकताओं में रखा. 

खादी गुणवत्ता की सुधार के दिशा में कदम उठाया साथ ही साथ इस ब्रांड के प्रचार-प्रसार की योजनाएं बनाईं. मोदी के प्रयासों का नतीजा रहा कि देश में पिछले 8 वर्षों के दौरान खादी उत्पादों के उपयोग में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है, जिसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'स्वदेशी अभियान' की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है.  

प्रधानमंत्री द्वारा वोकल फॉर लोकल का नारा दिया गया. आज खादी उद्योग के बढ़ते कदम से प्रधानमंत्री का नारा साकार रूप लेता दिखाई पड़ रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील का असर विभिन्न स्टार्टअप से लेकर मेक इन इंडिया और ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़े खादी ग्रामोद्योग की इस सफलता में स्पष्ट तौर पर दिखाई पड़ता है.

कुल मिलाकर स्वदेशी उत्पादों खासकर खादी को ब्रांड बनाने की दिशा में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की भूमिका ने आज खादी को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई है. इसी का परिणाम है कि खादी ने शहरी क्षेत्र में 43 प्रतिशत का विकास दर और ग्रामीण क्षेत्र में 20 फीसदी की वृद्धि प्राप्त की है जो कि उल्लेखनीय है. 

खादी की वित्त वर्ष 2014-15 के तुलना में उत्पादन में 172 % और बिक्री में 248% की वृद्धि एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. अप्रैल 2020 से जून 2021 के पूर्ण लॉकडाउन के बावजूद खादी  का टर्नओवर शानदार रहा है. खादी की यह उपलब्धि आज की तारीख में औद्योगिक जगत और सामान्य लोगों में चर्चा का विषय है.

भारत के FMCG कम्पनियों के लिए वार्षिक टर्न ओवर में 1 लाख करोड़ का लक्ष्य हासिल करना स्वप्न से कम नहीं है. ऐसे में सार्वजनिक उपक्रम की संस्था' खादी ग्रामोद्योग' यानी KVIC का पिछले वित्तीय वर्ष में 1 लाख 15 करोड़ का आंकड़ा छू लेना एक महत्वपूर्ण घटना है. 

केंद्र में मोदी सरकार को इसी माह 8 वर्ष पूरे हो रहे हैं. इन आठ वर्षों में मोदी जी ने उन सभी आयामों पर ध्यान केंद्रित किया है जो आत्मनिर्भर भारत के वृहत उद्देश्य की पूर्ति में सहायक बन सके. ऐसे में खादी ग्राम उद्योग पर ध्यान जाना स्वाभाविक ही था. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को अपने मन की बात रेडियो कार्यक्रम में देशवासियों से खादी खरीदने की अपील के साथ इसकी भूमिका रखी थी. उसके बाद से अब तक कई बार मन की बात में मोदीजी जिक्र करते रहे हैं. मन की बात के साथ प्रधानमंत्री विभिन्न मौकों पर खादी के प्रयोग को बढ़ावा देने की पुरजोर वकालत करते रहते हैं. 

कहते हैं कि निरन्तरता में किया गया कोई भी प्रयास अंततः बड़े व्यापक परिणाम देता है और प्रधानमंत्री द्वारा खादी की ब्रांडिंग के प्रयासों का परिणाम सामने है.

खादी को बढ़ावा देने का प्रयास ग्रामीण अर्थव्यवस्था और ग्रामीण लोगों को रोजगार और आर्थिक समृद्धि से जोड़ने का उपक्रम बनकर उभरा है. खादी उत्पादों में विविधता ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. कपड़ों के साथ साथ घरेलू उपयोग की अन्य वस्तुओं का एक विस्तृत श्रेणी उपभोक्ताओं को आकर्षित कर रही है. 

खादी के बढ़ते उपयोग और इसके उत्पादों की मांग को देखते हुए आज आवश्यकता है कि खादी उत्पादों की कीमत को ग्रामीण उपभोक्ताओं के अनुरूप बनाकर ग्रामीण बाजारों तक खादी की खरीद को सुलभ करने की.  साथ ही साथ कच्चा माल तैयार करने वालों और उत्पादकों को नई तकनीक से जोड़ा जाए. उदाहरणस्वरूप सोलर चरखा सरीखे प्रयोगों को हर बुनकर परिवार तक हर क्लस्टर तक ले जाना वक़्त की मांग है.

बहुत से नए प्रयोगों जैसे सौंदर्य प्रसाधन की वस्तुओं के बढ़ते रेंज, खाद्य उत्पादों के जुड़ने, कपड़ों को आधुनिक फैशन के अनुरूप ढालने के लिए निफ्ट की मदद से सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाने, प्रदर्शनी और मेलों की संख्या बढ़ाने, रियायती दर पर कर्ज उपलब्ध कराने आदि का काम बीते 8 वर्षों में बखूबी हुआ है.

आज भारत के बाहर ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, रूस,चीन, बहरीन, ओमान, कुवैत, सऊदी अरब, मेक्सिको, मालदीव सहित 17 देशों में 'खादी' अपने ट्रेड मार्क के साथ एक लोकप्रिय ब्रांड बनकर उभरा है. खादी के खरीददारों का भी मानना है कि पहले के मुक़ाबले में खादी के कपड़ों में वैरायटी बढ़ी है, इसका डिज़ाइन बेहतर हुआ है और उत्पादों की श्रेणी कपड़ों के अतिरिक्त भी उपलब्ध है.

लेखक सामाजिक और नीतिगत विषयों के जानकार हैं.

(लेखक सामाजिक और नीतिगत विषयों पर लेखन करते हैं.)

(यहां दिए गए विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)

 

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