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नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी ने बच्चों के उत्पीड़न पर लिखी किताब, अनुपम खेर ने की गांधी से तुलना

कैलाश सत्यार्थी ने बच्चों के साथ ज्यादती की 12 कहानियों को जोड़कर एक किताब लिखी है.

नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी ने बच्चों के उत्पीड़न पर लिखी किताब, अनुपम खेर ने की गांधी से तुलना
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डीएनए हिंदी: नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize) से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी (Kailash Satyarthi) ने अपनी नई किताब लॉन्च की है. उनकी किताब का नाम ‘तुम पहले क्यों नहीं आए’ है. इसमें दर्ज हर कहानी अंधेरों पर रौशनी की, निराशा पर आशा की, अन्याय पर न्याय की, क्रूरता पर करुणा की और हैवानियत पर इंसानियत की जीत का भरोसा दिलाती है. राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित लोकार्पण कॉन्सिटीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में राजकमल प्रकाशन एवं इंडिया फॉर चिल्ड्रेन द्वारा किया गया है. 

इस लोकार्पण कार्यक्रम में अभिनेता अनुपम खेर, नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी, श्रीमती सुमेधा कैलाश, राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी भी मौजूद थे. इस दौरान अभिनेता अनुपम खेर ने कहा है कि जैसे महात्मा  गांधी का जीवन अपने आप में एक संदेश है ठीक वैसे ही कैलाश सत्यार्थी भी नए संदेश देते हैं.

कैलाश सत्यार्थी की इस किताब ‘तुम पहले क्यों नहीं आए’ की बात करें तो इसमें जिन बच्‍चों की कहानियां हैं, उनमें से कई को संयुक्‍त राष्‍ट्र जैसे वैश्विक मंच से विश्‍व नेताओं से मिलने और बच्‍चों के अधिकार की मांग उठाने के मौके भी मिले है. इसके बाद बेहतर बचपन को सुनिश्चित करने के लिए कई राष्‍ट्रीय-अंतरराष्‍ट्रीय कानून भी बनाए गए जिससे बच्चों के साथ उत्पीड़न की घटनाओं को पूरी तरह खत्म किया जा सके. 

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कैलाश सत्यार्थी की तारीफ करते हुए अनुपम खेर ने कहा, "फिल्मों के नायक भले ही लार्जर देन लाइफ हों, लेकिन सत्यार्थी जी ने असली नायकों को बनाया है. वे खुद में एक प्रोडक्शन हाउस हैं. फिल्मों में जो नायक-नायिका होते हैं वे नकली होते हैं,  असली नायक-नायिका तो इस किताब के बच्चे हैं, जिन्हें कैलाश सत्यार्थी जी ने बनाया है. ये आपकी ही नहीं देश की भी पूंजी हैं.

अनुपम खेर ने महात्मा गांधी से कैलाश सत्यार्थी की तुलना करते हुए कहा, "जैसा कि महात्‍मा गांधी जी ने कहा था कि उनका जीवन ही उनका संदेश है, ठीक वैसे ही कैलाश सत्‍यार्थी जी का जीवन ही उनका संदेश है." इसके बाद अनुपम खेर ने किताब की भूमिका के कुछ अंश भी पढ़कर सुनाए. कैलाश सत्यार्थी ने कहा, "अगर इन कहानियों को पढ़कर आपकी आंखों में आसूं आते हैं तो वह आपकी इंसानियत का सबूत है. बच्चों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं. हमारे लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम खुद भी अपने भीतर के बच्चे को पहचानें."

कैलाश सत्‍यार्थी ने अपनी किताब के लिखने को लेकर आगे कहा, "इस किताब को कागज पर लिखने में भले ही मुझे 12-13 साल लगे हों लेकिन इसमें जो कहानियां दर्ज हैं, उन्हें मेरे हृदय पटल पर अंकित होने में 40 वर्षों से भी अधिक समय लगा है. मैं साहित्यकार तो नहीं हूं पर एक ऐसी कृति बनाने की कोशिश की है जिसमें सत्य के साथ साहित्य का तत्व भी समृद्ध रहे. ये कहानियां जिनकी हैं, मैं उनका सहयात्री रहा हूं; इसलिए जिम्मेदारी बढ़ जाती है.

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कैलाश सत्यार्थी ने कहा है कि उन्होंने अपनी यादों के आधार पर कहानियां लिखीं है, फिर उन पात्रों को सुनाया जिनकी ये कहानियां हैं. इस तरह सत्य घटनाओं का साहित्य की विधा के साथ समन्वय बनाना था. मैंने पूरी ईमानदारी से एक कोशिश की है. साहित्य की दृष्टि से कितना खरा उतर पाया हूं ये तो साहित्यकारों और पाठकों की प्रतिक्रिया के बाद ही कह सकूंगा.

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