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Sangrur में कैसे AAP को सिमरनजीत सिंह मान ने दी करारी हार? 5 पॉइंट्स में जानें

अकाली दल के प्रत्याशी सिमरनजीत सिंह मान को 2,53,154 वोट मिले, जबकि AAP के गुरमेल सिंह को 2,47,332 वोट पर ही सिमट गए.

Sangrur में कैसे AAP को सिमरनजीत सिंह मान ने दी करारी हार? 5 पॉइंट्स में जानें

सिमरनजीत सिंह मान.

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डीएनए हिंदी: 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में इस्तीफा देने वाले पूर्व आईपीएस अधिकारी और शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के प्रमुख सिमरनजीत सिंह मान ने 1999 के बाद से एक भी चुनाव नहीं जीता था. 

सिमरनजीत सिंह मान ने संगरूर संसदीय सीट पर जीत हासिल की है. अब उनकी जीत से ज्यादा आम आदमी पार्टी (AAP) के हार की चर्चा है. हाल ही में हुए पंजाब विधानसभा चुनावों में भी वह जीत का स्वाद नहीं चख सके थे. आलमगढ़ विधानसभा सीट पर वह दूसरे स्थान पर रहे थे.

ऐसा माना जा रहा था कि उनकी पार्टी पंजाब विधानसभा चुनावों में भी बेहतरीन प्रदर्शन कर सकती है लेकिन विधानसभा चुनावों के दौरान उनका खाता भी नहीं खुला. रविवार को आए नतीजों में सिमरनजीत सिंह मान ने 5,800 से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की है.

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आइए समझते हैं 5 ऐसे कारण जिनकी वजह से उन्होंने जीत हासिल की और भगवंत मान अपने गढ़ में भी पार्टी के अभेद्य किले को नहीं बचा सके.

1. AAP से खुश नहीं थे वोटर

सूबे में सत्तारूढ़ होते ही आम आदमी पार्टी से वोटर खुश नजर नहीं आए. वोटर स्थानीय विधायकों से बेहद नाराज हैं. विधायकों तक आम आदमी की पहुंच नहीं है. करीब 4 महीने पहले हुए विधानसभा चुनावों में जिले की सभी 9 विधानसभा सीटों पर आम आदमी पार्टी को जीत मिली थी. स्थानीय नेतृत्व से लोग बेहद नाराज हैं. राज्यसभा भेजे गए सांसदों पर भी इलाके का प्रतिनिधित्व न करने का आरोप लगा था.

2. सिद्धू मूसेवाला मर्डर केस

पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला की मौत एक बड़ा फैक्टर बन गया है. 29 मई को उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया था. मौत से ठीक पहले उनकी सुरक्षा कम की गई थी. मूसेवाला के प्रशंसकों ने उनकी हत्या के लिए खुले तौर पर सरकार को दोषी ठहराया था. इस इलाके में मूसेवाला के प्रशंसक बड़ी संख्या में थे. मूसेवाला ने कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्होंने इस चुनाव में सिमरनजीत सिंह मान का समर्थन करने का फैसला किया था.

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3. बेअदबी और किसान आंदोलन का साया|

सिमरनजीत मान 2015 से अचानक चर्चा में आ गए. वह सत्ता में हमेशा से हाशिए पर रहे हैं. बीजेपी-अकाली गठबंधन की सरकार के दौरान साल 2015 में उन्होंने सरबत खालसा की एक बैठक बुलाई थी. यह वही वक्त था जब बेअदबी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे थे. किसान आंदोलन के दौरान भी इनके नाम की खूब चर्चा हुई थी.

4.  कमजोर AAP कैंडिंडेट ने बदल दी तस्वीर   

आम आदमी पार्टी ने मान के सामने बेहद कमजोर प्रत्याशी उतारा था. घराचोन गांव के सरपंच गुरमेल सिंह अपने इलाके में प्रभावी चेहरों में से नहीं रहे हैं. पार्टी की दावेदारी को सही तरीके से वे उनके सामने नहीं रख पाए.

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5. संगरूर में 5 उम्मीदवारों की जंग|

संगरूर में 5 सियासी पार्टियों ने जीत के लिए जान झोंक दी थी. आम आदमी पार्टी ने इस फील्ड में बेहतरीन कैंपेनिंग भी नहीं की. कांग्रेस ने दलवीर गोल्डी को मैदान में उतारा था. बीजेपी ने केवल उद्योगपति और कांग्रेस के पूर्व विधायक केवल ढिल्लों को मैदान में उतारा था. अकाली दल ने पूर्व सीएम बेअंत सिंह हत्याकांड के दोषी बलवंत सिंह राजोआना की बहन कमलदीप कौर को टिकट दिया. AAP के गुरमेल सिंह किसी भी उम्मीदवार की बराबरी नहीं कर सके और यह किला AAP से दूर हो गया.

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