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International Women's Day: भारत में अभी-भी संघर्षपूर्ण है महिलाओं का जीवन

भारतीय समाज में अभी-भी महिलाओं के मन में असुरक्षा का भाव रहता है. इसके साथ ही पर्याप्त प्रतिनिधित्व ना मिलने के कारण उनकी मुश्किलें बढ़ जाती हैं.

International Women's Day: भारत में अभी-भी संघर्षपूर्ण है महिलाओं का जीवन
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डीएनए हिंदी: दुनिया में 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 'International Women's Day' मनाया जाता है. यह दिन महिलाओं की उपलब्धियों और मानव अस्तित्व में उनके योगदान को समर्पित हैं. साल 2022 का थीम “Gender equality today for a sustainable Tomorrow” रखा गया है जिसका अर्थ है कि बेहतर और स्थायी कल के लिए लैगिंग समानता की आवश्यकता. भारत में लैंगिक असमानता दुनिया से काफी ज्यादा है जिसका असर यह है कि यहां महिलाओं को अपने मूलभूत अधिकारों एवं सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ता है. पढ़ें अभिषेक सांख्यायन की विशेष रिपोर्ट

भारत में महिलाओं की स्थिति  

विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओं का योगदान सिर्फ 17 फीसदी है. ये आंकड़ा दुनिया के औसत से आधा है. वहीं अगर पड़ोसी देश चीन की बात करें तो वहां पर महिलाओं का GDP में योगदान 40 फीसदी से ज्यादा है. महिलाओं की लेबर फोर्स में हिस्सेदारी की बात की जाए तो भारत का सूची में स्थान 131 देशों में से 120वां है. ऐसे में अगर देश में महिलाओं की हिस्सेदारी पुरुषों के समान हो जाए तो साल 2025 तक भारत की GDP में 60 फीसदी तक का इजाफा हो सकता है और देश की GDP में 2.9$ ट्रिलियन डालर की वृद्धि हो सकती है.

राजनीति में भी कम है महिलाओं का प्रतिनिधित्व

महिलाओं को संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण देने वाला कानून अब तक पास नहीं हो पाया है. हालांकि पंचायत स्तर पर महिलाओं को आरक्षण मिल रहा है मगर उसमें भी काफी बड़ी संख्या प्रधान पतियों की है. वहीं देश के सबसे बड़े जनप्रतिनिधियों की बात करें तो उस सूची में महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है. 17वीं लोकसभा में कुल 14.92 फीसदी महिलाएं (81) हैं. वहीं राज्यसभा में यह आंकड़ा और भी कम महज 11.84 फीसदी रह जाता है. अगर देश की विधानसभाओं की बात करें तो इनमें महिलाओं की भागीदारी मात्र 8 फीसदी के करीब की रह जाती है. 

न्यायपालिका में भी नहीं है प्रतिनिधित्व

मौजूदा समय में सुप्रीम कोर्ट के कुल 34 न्यायमूर्ति के पदों में से महिलाओं के हिस्से में सिर्फ 4 ही आए हैं. न्याय के सबसे बड़े मंदिर में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 फीसदी से थोड़ा ही ज्यादा है. अगर हाईकोर्ट की बात की जाए तो आंकड़े और खराब हो जाते हैं. हाईकोर्ट में कुल 1,098 जजों के पद में से सिर्फ 83 पर ही महिलाएं आसीन हैं. ध्यान देने वाली बात यह भी है कि न्यायपालिका में कोलेजियम सिस्टम हैं और यहां आरक्षण की व्यवस्था भी लागू नहीं हैं.  

कानून व्यवस्था की क्या है स्थिति

भारत  में महिलाओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती सुरक्षा व्यवस्था की है. घर से लेकर बाहर तक, कदम-कदम पर हमारे समाज ने उनके मन में असुरक्षा का भाव जगा रखा है. ऐसे में हमारी पुलिस फोर्स में महिलाओं की पर्याप्त संख्या होनी चाहिए. पिछले करीब 9 सालों से गृह मंत्रालय एडवाइजरी जारी कर रहा है कि कुल पुलिसबल में महिलाओं की संख्या 33 फीसदी होनी चाहिए. सभी राज्यों से आग्रह किया गया है कि पुलिस कांस्टेबल के खाली पदों को महिला कांस्टेबल की आरक्षित कर उन्हें भरा जाना चाहिए.  

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साल 2020 में ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च और डेवलपमेंट के आंकड़ों के अनुसार देश भर पुलिसबलों की कुल संख्या 20,91,488 है. महिला पुलिस बलों की संख्या 2,15,504 है जो कि कुल संख्या का 10.30 फीसदी है. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि देश के महत्वपूर्ण पदों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है और यह दर्शाता है कि भारत में महिलाओं के लिए जीवन अभी भी संघर्षों से भरा हुआ ही है.

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