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Ganesh Jayanti Vrat Katha: आज गणेश जयंती पर जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, दूर होगा क्लेश और धन संकट

Ganesh Jayanti Vrat Katha: किसी कार्य में सफलता के लिए सर्वप्रथम भगवान गणेश का पूजन की जाती है. आज गणेश जयंती पर चलिए व्रत कथा का श्रवण करें.

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Ganesh Jayanti Vrat Katha: आज गणेश जयंती पर जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, दूर होगा क्लेश और धन संकट

Ganesh Jayanti Vrat Katha: आज गणेश जयंती पर जरूर पढ़ें ये व्रत कथा

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डीएनए हिंदीः माघ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन गणेश जयंती होती है. आज बुधवार 25 जनवरी को गणेश जयंती पर व्रत करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इसे तिलकुट चतुर्थी या माघ विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन लोग भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए उनकी विधिवत पूजा कर पसंदीदा भोग लगाते है और आरती के बाद कथा जरूर सुनते हैं, तभी माना जाता है कि व्रत सफल होता है. क्योंकि बिना व्रत कथा के कोई भी पूरा नहीं माना जात.

गणेश जयंती की व्रत कथा
एक दिन भगवान भोलेनाथ स्नान करने के लिए कैलाश पर्वत से भोगवती गए. महादेव के प्रस्थान करने के बाद मां पार्वती ने स्नान प्रारंभ किया और घर में स्नान करतो हुए अपने मैल से एक पुतला बनाकर और उस पुतले में जान डालकर उसको सजीव किया गया. पुतले में जान आने के बाद देवी पार्वती ने पुतले का नाम गणेश रखा. पार्वतीजी ने बालक गणेश को स्नान करते जाते वक्त मुख्य द्वार पर पहरा देने के लिए कहा. माता पार्वती ने कहा कि जब तक में स्नान करके न आ जाऊं किसी को भी अंदर नहीं आने देना.

भोगवती में स्नान कर जब श्रीगणेश अंदर आने लगे तो बाल स्वरूप गणेश ने उनको द्वार पर रोक दिया. भगवान शिव के लाख कोशिश के बाद भी गणेश ने उनको अंदर नहीं जाने दिया. गणेश द्वारा रोकने को उन्होंने अपना अपमान समझा और बालक गणेश का सर धड़ से अलग कर वो घर के अंदर चले गए. शिवजी जब घर के अंदर गए तो वह बहुत क्रोधित अवस्था में थे. ऐसे में देवी पार्वती ने सोचा कि भोजन में देरी की वजह से वो नाराज हैं, इसलिए उन्होंने दो थालियों में भोजन परोसकर उनसे भोजन करने का निवेदन किया.

दो थालियां लगी देखकर शिवजी ने उनसे पूछा कि दूसरी थाली किसके लिए है? तब शिवजी ने जवाब दिया कि दूसरी थाली पुत्र गणेश के लिए है, जो द्वार पर पहरा दे रहा है. तब भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा कि उसका सिर मैने क्रोधित होने की वजह से धड़ से अलग कर दिया. इतना सुनकर पार्वतीजी दुखी हो गई और विलाप करने लगी. उन्होंने भोलेनाथ से पुत्र गणेश का सिर जोड़कर जीवित करने का आग्रह किया. तब महादेव ने एक हाथी के बच्चे का सिर धड़ काटकर गणेश के धड़ से जोड़ दिया. अपने पुत्र को फिर से जीवित पाकर माता पार्वती अत्यंत प्रसन्न हुई. कहा जाता है कि जिस तरह शिव ने श्रीगणेश को नया जीवन दिया था, उसी तरह भगवान गणेश भी नया जीवन अर्थात आरम्भ के देवता माने जाते हैं.

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