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International Women’s Day : फ़ेमिनिज़्म का मतलब बराबरी का अधिकार पाना है पुरुषों के ख़िलाफ़ होना नहीं

फ़ेमिनिज़्म का मतलब बराबरी का अधिकार पाना है पुरुषों के ख़िलाफ़ होना नहीं. इस विषय में जानिए पूरे फ़ैक्ट्स

International Women’s Day : फ़ेमिनिज़्म का मतलब बराबरी का अधिकार पाना है पुरुषों के ख़िलाफ़ होना नहीं
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डीएनए हिंदी : आज महिला दिवस है. इसे स्त्रीत्व या फेमिनिटी का उत्सव भी माना जाता है. क्या आप जानते हैं फेमिनिनिटी का अर्थ क्या होता है? फेमिनिज्म की वैश्विक पुरोधा मानी जाने वाली सिमोन द बुवा के अनुसार फेमिनिनिटी कोई अंदरूनी भावना नहीं होती है. यह परम्परा और तात्कालिक सामजिक नियम-कानून के अनुसार कृत्रिम रूप से बाहर से इम्पोज़ की जाती है.

सिमोन द बुवा यह भी कहती हैं कि स्त्रियां पैदा नहीं होतीं, बनाई जाती हैं. सिमोन के इन दो कथनों को देखा जाए तो यह स्पष्ट होता है स्त्री अथवा पुरुष होना कोई अंदरूनी प्रक्रिया नहीं है.  यह दोनों ही कथन लैंगिक आधार पर बराबरी की मांग की नींव रखते हैं. इसे लैंगिक भेदभाव या जेंडर के आधार पर भेद-भाव के विरुद्ध रखी गयी प्रस्तावना भी कही जा सकती है.  लिंग या जेंडर के आधार पर भेदभाव के ख़िलाफ़ बात करना फेमिनिज़्म(Feminism) की शुरुआत है. यह क्या है और कैसे है? क्या यह पुरुषों के ख़िलाफ़ है? जानिए.

फेमिनिज़्म जेंडर इक्वलिटी की बात करता है

फेमिनिज़्म की मूल अवधारणा या कांसेप्ट लिंग के आधार पर किसी भी जेंडर के साथ होने वाले भेद-भाव की सुध लेना है. यह सुध लेना या चिंता शब्दों अथवा कार्यों के ज़रिए व्यक्त की जा सकती है. फ़ेमिनिज़्म(Feminism) यह भी सिखाता है कि किसी भी व्यक्ति की समाज में अहमियत उसके किए हुए काम के आधार पर होनी चाहिए बनिस्पत उसके लिंग, धर्म, जाति आधारित पहचान या भूमिका के.

फेमिनिज़्म या स्त्री विमर्श दरअसल सर्व समानता का भाव या सर्व- समानता की बात है. इसमें हर व्यक्ति के लिए बराबर अधिकार, बराबर सम्मान की बात की जाती है.

फेमिनिज़्म मानवता है

हाल तक भारत में स्त्री अधिकारों का सबसे मुखर स्वर रही कमला भसीन कहती थीं, 'फेमिनिज़्म इज़ ह्यूमनिज़्म'. इसका शाब्दिक अर्थ है,  'फेमिनिज़्म(Feminism) मानवता की बात है.' कमला भसीन फेमिनिज्म को औरतों के नज़रिये से दुनिया देखना भी क़रार देती हैं. यह दुनियाभर में लगभग बराबर संख्या में मौजूद औरतों के बराबर अधिकार की बात करता है. उदाहरण देते हुए भसीन समझाती हैं कि दुनिया की अधिकांश सत्ता से औरतें मरहूम हैं. जनसंख्या के लगभग एक जैसे होने के बाद भी न सड़कों पर बराबर स्त्रियां हैं न व्यवसाय में. अधिकतर जगह उन्हें घर की दीवार और घर के काम-काज के साथ बांध दिया जाता है. फेमिनिज़्म स्त्रियों के लिए समाज के हर हिस्से में बराबर अधिकार  की मांग करता है.

क्या यह पुरुषों के ख़िलाफ़ है ?

फेमिनिज़्म(Feminism) के बारे में कई ग़लत अवधारणाएं हैं. एक अवधारणा यह है कि फेमिनिज़्म मर्दों के ख़िलाफ़ है. वास्तव में फेमिनिज़्म की परिभाषा या अवधारणा कहीं भी पुरुषों के ख़िलाफ़ नहीं बात करती है. यह सभी लिंग के लिए बराबर अधिकार की बात करती है. फेमिनिज़्म का मूल कॉन्सेप्ट इक्वलिटी यानि बराबरी है. औरतों को बराबर अधिकार मिलना कहीं से भी पुरुषों के अधिकार को ख़त्म करने की बात नहीं है. इस मसले पर बेल हुक्स का कथन बेहद मायने रखता है. वे कहती हैं, फेमिनिज़्म सेक्सिज़्म को ख़त्म करने की प्रक्रिया है. सेक्सिज़्म सेक्स के आधार पर होने वाले शोषण का नाम है.

कौन होते हैं फेमिनिस्ट ?
हर स्त्री के लिए यह शब्द अलग महत्त्व लेकर आता है. दरअसल फेमिनिज्म हर स्त्री का अपनी जगह पर अपने अधिकारों के लिए ( (कई बार अपने साथ की औरतों के अधिकारों के लिए भी) संघर्ष है. इस संघर्ष को समझने और पहचानने वाला, उसे आवाज़ देने वाला व्यक्ति किसी भी लिंग का हो, वह फेमिनिस्ट होता है. यहां स्त्री-पुरुष के बीच की विभाजन रेखा नहीं काम करती हैं.  

 

 
 

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