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Panchayat से संसद तक विपक्ष को खत्म करने में जुट गई है बीजेपी? समझिए क्या है प्लान

BJP Plan for South India: नरेंद्र मोदी और अमित शाह की अगुवाई वाली बीजेपी अब उन राज्यों में भी अपने पैर पसारने की दिशा में तेजी से काम कर रही है जहां अभी तक उसे सफलता नहीं मिल पाई है.

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Panchayat से संसद तक विपक्ष को खत्म करने में जुट गई है बीजेपी? समझिए क्या है प्लान

बड़ी रणनीति पर काम कर रही है बीजेपी

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डीएनए हिंदी: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) लगातार कोशिश कर रही है कि उसकी विपक्षी पार्टियां पस्त हो जाएं और कोई खास चुनौती न पेश कर पाएं. दो लोकसभा सांसदों के साथ शुरू हुई बीजेपी की राजनीतिक यात्रा राम मंदिर आंदोलन, अटल बिहारी के गठबंधन युग, ऑपरेशन कमल, लगातार चुनावी विजय की यात्रा और कांग्रेस मुक्त भारत बनाने के पड़ावों से गुजरते हुए 'विपक्ष मुक्त भारत' बनाने के अभियान तक पहुंच गई है. हाल ही में महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन में सफल हुई बीजेपी इन दिनों गोवा में भी जबरदस्त दांवपेच चल रही है.

महाराष्ट्र से जुड़े बीजेपी के एक नेता ने कहा कि लोकतंत्र के लिए एक मजबूत विपक्ष का होना बहुत जरूरी होता है लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं कि विपक्ष को भी मजबूत बनाने की जिम्मेदारी बीजेपी की ही है. उन्होंने कहा कि अपनी गलतियों की वजह से विपक्षी राजनीतिक दल बिखरते जा रहे हैं तो इसमें भला बीजेपी क्या कर सकती है?

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अमित शाह की अगुवाई में देशभर में फैली बीजेपी
आपको याद दिला दें कि बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह अपने कार्यकाल के दौरान पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को अक्सर यह कहा करते थे कि अब वक्त आ चुका है कि पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक पूरी शासन व्यवस्था बीजेपी के हाथ में हो. अमित शाह उस समय, उदाहरण देते हुए यह कहा करते थे कि देश की आजादी के बाद शुरुआत के कुछ दशकों के दौरान पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक की व्यवस्था कांग्रेस के हाथ में थी और अब बीजेपी का समय आ गया है. बीजेपी कार्यकर्ताओं से मेहनत करने का आह्वान करते हुए अमित शाह यह भी कहा करते थे कि बीजेपी कार्यकर्ताओं को 50 साल तक पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक विजय के बारे में सोचना चाहिए.

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साल 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद अमित शाह देश के गृह मंत्री बन गए और जेपी नड्डा बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लेकिन बीजेपी लगातार अपने मिशन में जुटी रही और चुनाव दर चुनाव जीतती रही. इसी महीने तेलंगाना के हैदराबाद में हुए पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में गृहमंत्री अमित शाह ने यह दावा किया कि देश में अगले 30-40 साल तक बीजेपी का युग रहेगा. 2014 लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री के पद के लिए उम्मीदवार बनाए गए नरेंद्र मोदी ने पहली बार कांग्रेस मुक्त भारत बनाने के नारे का इस्तेमाल किया था जो आगे चलकर बीजेपी के तमाम नेता अपने भाषणों और रैलियों में बोलते नजर आए.

दिन-ब-दिन कमजोर होती गई कांग्रेस
कांग्रेस मुक्त भारत के नारे को साकार करने के लिए नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने जमकर काम किया. सरकार और बीजेपी दोनों ने मिलकर ऐसी रणनीति बनाई कि बीजेपी एक के बाद एक चुनाव जीतने लगी और आज कांग्रेस की हालत यह हो गई है कि सिर्फ दो राज्यों- राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही उसकी अपनी सरकारें बची हैं. कांग्रेस आज संसद में भी कमजोर है और देश भर की विधानसभाओं में भी कमजोर है. भाजपा 2023 में कांग्रेस को राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सत्ता से भी बाहर करने की योजना पर काम कर रही है.

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बीजेपी यहीं थमती नजर नहीं आ रही है. उसका सबसे बड़ा सपना अभी अधूरा है और वह सपना है दक्षिण भारत के राज्यों के साथ-साथ पश्चिम बंगाल में भी भगवा लहराना. तेलंगाना, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी विस्तार के लिए बीजेपी जोर-शोर से प्रयास कर रही है और इसीलिए हैदराबाद की कार्यकारिणी में परिवारवाद और वंशवाद जैसी तमाम पार्टियों पर हमला बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वंशवाद को लोकतांत्रिक राजनीति के लिए अभिशाप तक बता डाला था.

कांग्रेस के बाद क्षेत्रीय दलों पर फोकस करेगी बीजेपी
इससे साफ जाहिर है कि कांग्रेस की हालत पस्त करने के बाद बीजेपी अब क्षेत्रीय दलों से भी दो-दो हाथ करने को तैयार है. महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना से एकनाथ शिंदे को तोड़कर उन्हीं की पार्टी के विधायकों के बल पर मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं और अन्य दलों के असंतुष्ट नेताओं को इशारा भी दे दिया है.

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दरअसल, यह बात सही है कि देश के ज्यादातर क्षेत्रीय दलों में परिवार का ही वर्चस्व है और लगभग हर राजनीतिक दल में शिंदे की तरह जनाधार वाले असंतुष्ट नेता भी हैं. हाल ही में बीजेपी के तेलंगाना प्रदेश अध्यक्ष बी. संजय कुमार ने प्रदेश के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव पर निशाना साधते हुए यह दावा किया था कि उनकी पार्टी टीआरएस में कई एकनाथ शिंदे हैं. राजनीतिक मामलों के जानकार भले ही इसे 'ऑपरेशन कमल ' के नए प्रारुप की संज्ञा दें लेकिन बीजेपी का रुख बिल्कुल स्पष्ट है कि अपने राजनीतिक दल को एकजुट रखने की जिम्मेदारी उस दल विशेष के नेता और अध्यक्ष की है और अगर वो अपने नेताओं को संतुष्ट नहीं रख पाते हैं तो इसके लिए बीजेपी को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.

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