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उर्दू की दुर्दशा के लिए किसे जिम्मेदार ठहरा रहे हैं हामिद अंसारी?

पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा है कि जनसंख्या के आंकड़े साबित कर रहे हैं कि उर्दू बोलने वाले लोगों की संख्या कम हो रही है.

उर्दू की दुर्दशा के लिए किसे जिम्मेदार ठहरा रहे हैं हामिद अंसारी?

पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी. (फाइल फोटो)

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डीएनए हिंदी: पूर्व उपराष्ट्रपति एम हामिद अंसारी (Hamid Ansari) ने कहा है कि देश में आबादी बढ़ने के बावजूद उर्दू बोलने वालों की संख्या घट रही है और इसके लिए राज्यों की शिक्षा नीतियां जिम्मेदार हैं. हामिद अंसारी ने कहा कि विशेषज्ञों की राय में इसे राज्य सरकारों की ओर से प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर स्कूली पाठ्यक्रम में उर्दू को शामिल करने और उर्दू शिक्षकों को नियोजित करने की अनिच्छा से जोड़ा जा सकता है. 

हामिद अंसारी पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार की दो किताबों ‘बुक ऑफ विजडम’ और ‘एहसास ओ इजहार’ के विमोचन के मौके पर शुक्रवार को एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे. उन्होंने राज्य सरकारों पर उर्दू के अनादर का आरोप लगाया.

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घट रही है उर्दू बोलने वालों की संख्या 

हामिद अंसारी ने कहा, 'उर्दू बोलने वालों की संख्या घट रही है. जनगणना के आंकड़े इसकी गवाही देते हैं. जनसंख्या की समग्र वृद्धि के ढांचे में यह गिरावट एक सवाल उठाती है. ऐसा क्यों हो रहा है?'

हामिद अंसारी ने कहा, 'क्या यह स्वैच्छिक या किसी अन्य वजह से भाषा परित्याग के एक पैटर्न को दिखाता है. जिन लोगों ने इस विषय पर काम किया है, वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि इसका जवाब राज्य सरकार की नीतियों और स्कूल नामांकन के पैटर्न में निहित है.'

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प्राथमिक विद्यालयों में लोग शामिल नहीं करना चाहते उर्दू

हामिद अंसारी ने कहा कि उन्होंने यह डेटा जुटाया है, जिससे पता चलता है कि प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में पाठ्यक्रम में उर्दू को शामिल करने और उर्दू शिक्षकों को नियुक्त करने के लिए एक तरह की अनिच्छा है. 

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पूर्व उपराष्ट्रपति ने कहा, 'यह मेरे अपने राज्य उत्तर प्रदेश और दिल्ली में सबसे अधिक दिखती है, लेकिन महाराष्ट्र, बिहार, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में स्थिति अलग है.'

उर्दू को न समझा जाए एक धर्म की भाषा

भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर ने कहा कि उर्दू को केवल एक धर्म की भाषा नहीं माना जाना चाहिए. उन्होंने कहा, 'आज समय की मांग है कि समाज को एकजुट करने के लिए शायरी का इस्तेमाल किया जाए और यह प्रचार किया जाए कि सभी राह एक ईश्वर की ओर ले जाती हैं. समाज के लिए इससे बड़ा योगदान नहीं हो सकता.' (इनपुट: भाषा)

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