Twitter
Advertisement
  • LATEST
  • WEBSTORY
  • TRENDING
  • PHOTOS
  • ENTERTAINMENT

DNA एक्सप्लेनर: Public Debt बढ़ने से कैसे अर्थव्यवस्था पर पड़ता है नकारात्मक असर? जानिए

कोरोना महामारी की वजह से राजकोषीय घाटा हुआ है. यहां हम जानेंगे कि यह क्या होता है और कैसे काम करता है?

DNA एक्सप्लेनर: Public Debt बढ़ने से कैसे अर्थव्यवस्था पर पड़ता है नकारात्मक असर? जानिए
FacebookTwitterWhatsappLinkedin

डीएनए हिंदी: कोविड -19 महामारी के परिणामस्वरूप व्यापक राजकोषीय घाटा हुआ है. साथ ही सार्वजनिक ऋण (public debt) और जीडीपी  (gross domestic product) के बीच का अनुपात बढ़ गया है. हालांकि, सार्वजनिक ऋण की गुणवत्ता भी जरूरी है पर क्या इस ऋण की ज़रुरत केवल पूंजीगत व्यय (capital expenditure) या राजस्व व्यय (revenue expenditure) को पूरा करने के लिए है? आइए, इसे विस्तार से समझते हैं. 

सार्वजनिक ऋण से जीडीपी का अनुपात क्या है?

सार्वजनिक ऋण (public debt) से जीडीपी का अनुपात (GDP Ratio) किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद और देश के उपर सम्पूर्ण ऋण के बीच का अनुपात होता है.  सार्वजनिक ऋण में बाहरी ऋण (विदेशी उधारदाताओं से उधार लिया गया) और आंतरिक ऋण (Internal debt) (गवर्नमेंट सिक्योरिटीज, ट्रेजरी बिल, शॉर्ट टर्म लोन) शामिल हैं. ऐसे देश जो अपने ऋण पर ब्याज का भुगतान आर्थिक विकास और पुनर्वित्त में बाधा डाले बिना कर पाने में सक्षम हैं यानी उन्हें स्थिर माना जाता है. एन.के. सिंह समिति (2016) के अनुसार  ऋण-से-जीडीपी अनुपात केंद्र के लिए 38.7% और राज्यों के लिए 2022-23 (FY23) तक 20% होना चाहिए था.

वर्तमान आंकड़े क्या हैं?

महामारी से निपटने के लिए सरकारी उधार में बढ़त के कारण वित्त वर्ष 2022 में  केंद्र का ‘ऋण और जीडीपी’ अनुपात 59.9% था जबकि वित्त वर्ष 2023 के बजट अनुमानों ने इसे 60.2% पर आंका गया है. यह FY13 में 51% से घटकर FY19 में 48.1% हो गया था. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के मुताबिक राज्यों का ऋण से जीडीपी अनुपात भी वित्त वर्ष 2022 में 31% होने की संभावना है जो कि अनुमानित 20% से ज्यादा है. इससे ऋण और जीडीपी अनुपात लगभग 90.9% हो जाएगा. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund) के मुताबिक 2020 में भारत का ऋण से जीडीपी अनुपात 89.60% था जबकि यह 2019 में 74.08% ही था. वित्त वर्ष 22 में इसके 90.6% के रिकॉर्ड तक बढ़ने का अनुमान था.

उच्च ऋण अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करता है?

सार्वजनिक ऋण (Public Debt) बढ़ने से ब्याज का बोझ बढ़ता है. इसकी वजह से सरकार विकास और कल्याणकारी उपाय करने की क्षमता से दूर होती है. राजस्व के प्रतिशत के रूप में ब्याज भुगतान वित्त वर्ष 2021 और वित्त वर्ष 2022 में 42% और 39% हो गया जो वित्त वर्ष 2020 में 36% था. सार्वजनिक कर्ज बढ़ने से रेटिंग एजेंसियों का नजरिया भी प्रभावित हो सकता है.

ऋण किस प्रकार मुद्रास्फीति के संकट को बढ़ावा देता है?

राजकोषीय घाटा बढ़ने से बाज़ार के ब्याज दर पर दबाव पैदा होता है क्योंकि इसमें सरकार महत्वपूर्ण भूमिका में होती है. यह निजी-फर्मों को प्रभावित करता है, जिससे प्रति यूनिट लागत में वृद्धि होती है, फलतः उपभोक्ताओं को महंगाई की मार झेलनी पड़ती है. यह मूल्य-जनित (कॉस्ट-पुश) मुद्रास्फीति है. यह सुनिश्चित करने के लिए ऋण की गुणवत्ता भी जरूरी है चाहे वह पूंजीगत व्यय या राजस्व व्यय को पूरा करने के लिए हो. पूंजीगत व्यय के लिए ऋण की गुणवत्ता रणनीतिक रूप से विकास की प्रक्रिया का समर्थन करती है साथ ही मध्यम से लंबी अवधि में आर्थिक विकास में मदद करती है जबकि राजस्व व्यय के संदर्भ में यह भविष्य निर्माण में सहायक होती है. 

सार्वजनिक ऋण को कैसे नियंत्रित किया जाए?

राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम (2003) ने सरकार को अपने राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 3% तक सीमित करने का आदेश दिया है. इससे ब्याज भुगतान पर पड़ने वाले बोझ में सुधार करने में मदद मिली. इन मदद से विकासप्रद और कल्याणकारी कार्यों के लिए अधिक वित्त की सम्भावना बन सकी. गौरतलब है कि महामारी ने सरकारी उधारी को बढ़ा दिया है. यहां जनता को भी मुफ्त के सामानों के बारे में अपनी मानसिकता को बदलने की बहुत जरुरत है क्योंकि सरकार जो खर्च करती है वह आखिर में टैक्सपेयर वहन करते हैं.

हमसे जुड़ने के लिए हमारे फेसबुक पेज पर आएं और डीएनए हिंदी को ट्विटर पर फॉलो करें.

यह भी पढ़ें:  LIC IPO: क्या कर्मचारियों, पॉलिसीधारकों को मिलेगी कोई छूट या आरक्षण? पढ़िए यहां

Advertisement

Live tv

Advertisement

पसंदीदा वीडियो

Advertisement