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जानें, भारत-अमेरिका के लिए क्यों अहम है Indo Pacific Region और क्यों घबराया हुआ है चीन

हिंद-प्रशांत क्षेत्र सबके लिए अहम है. इस रीजन में दुनिया के 60 फीसदी संसाधन हैं. इस इलाके में जिसका दबदबा होगा वह इस महाशक्ति होगा...

जानें, भारत-अमेरिका के लिए क्यों अहम है Indo Pacific Region और क्यों घबराया हुआ है चीन

भारत चीन नेवी

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डीएनए हिन्दी: मंगलवार को QUAD की बैठक खत्म हो गई. जैसा कि नाम QUAD से ही पता चलता है कि यह 4 देशों का एक संगठन है. इसमें भारत के अलावा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं. बैठक में चारों देशों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक-दूसरे की सुरक्षा, आर्थिक गतिविधियों के साथ-साथ अन्य सामयिक मुद्दों पर चर्चा की.

QUAD सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने अमेरिकी प्रेजिडेंट जो बाइडेन (Joe Biden), जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा और ऑस्ट्रेलियाई पीएम एंथनी अल्बानीज मुलाकात की. कई मुद्दों पर उन लोगों ने बातचीत की. बातचीत के मुद्दों में चीन से जुड़े मुद्दे अहम थे. ध्यान रहे कि चीन शुरू से ही क्वॉड का विरोधी रहा है. इस बैठक के पहले भी चीन ने कहा था कि क्वॉड का फेल होना तय है. 

यह भी पढ़ें: Quad Summit: प्रेजिडेंट बाइडेन ने कहा, महामारी से निपटने में भारत पास, चीन फेल

मंगलवार की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी प्रेजिडेंट जो बाइडेन ने समान अवसर उपलब्ध कराने वाले मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर जोर दिया. अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा कि हमारा ऐसा हिंद-प्रशांत सुनिश्चित करने का साझा लक्ष्य है जो आर्थिक रूप से बेहद समृद्ध होगा. साथ ही क्वॉड का मकसद सामरिक रूप से अहम हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य मौजूदगी को रोकना भी होगा. चीन के प्रभुत्व को कम करना और और सभी के लिए निर्बाध समुद्री मार्गों के लिए रणनीति विकसित करना भी है क्वॉड का एक महत्वपूर्ण मकसद है. ध्यान रहे कि यह इलाका इतना संपन्न है कि जिसका भी इस क्षेत्र पर प्रभुत्व होगा वह महाशक्ति बन जाएगा.

यह भी पढ़ें: इधर चल रही थी QUAD SUMMIT, उधर मंडरा रहे थे चीनी-रूसी लड़ाकू विमान

आइए जानते हैं क्यों अहम है यह इलाका

वर्तमान में दुनिया के 75 फीसदी समानों का इंपोर्ट-एक्सपोर्ट इसी क्षेत्र से होता है. एक तरह से आप यह भी कह सकते हैं कि दुनिया का 75 फीसदी बिजनेस यहीं से होता है. हिंद-प्रशांत रीजन से जुड़े पोर्ट विश्व के सार्वाधिक बिजी बंदरगाहों में से एक हैं.

यही नहीं दुनिया की जीडीपी में इस क्षेत्र का योगदान 60 फीसदी है. पेट्रोलियम प्रॉडक्ट को लेकर उपभोक्ता और उत्पादक दोनों देशों के लिए यह इलाका बेहद संवेदनशील है.

ग्लोबल सिक्योरिटी और दुनिया की आर्थिक गतिविधियों की नई व्यवस्था की कुंजी भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के हाथ में ही है. इस इलाके में (हिंद-प्रशांत क्षेत्र) कुल 38 देश शामिल हैं. दुनिया की कुल आबादी का 65 फीसदी हिस्सा इसी इलाके में है.

विश्व के टॉप 10 सैन्य ताकतों में 7 इसी इलाके में हैं. इनमें से 6 परमाणु शक्ति संपन्न भी हैं.

क्यों भारत के लिए अहम है यह इलाका

इस इलाके में भारत एक मजबूत ताकत है. या यूं कहें तो इस इलाके में भारत का दबदबा भी है. भारत की नौसेना बेहद मजबूत है. क्वॉड देशों के साथ मिलकर भारत अपनी नौसेना की ताकत और बढ़ा सकता है. वह अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने के लिए क्वॉड देशों के साथ मिलकर नौसैनिक अभ्यास से अपनी ताकत और बढ़ा सकता है.

इस इलाके के समुद्री मार्ग से सबसे ज्यादा व्यापार होता है. इसकी वजह से भारत के लिए सबसे ज्यादा अहमियत इस क्षेत्र की है. साथ ही भारत का प्रतिद्वंद्वी चीन तकनीकी और व्यापार के मामले में मजबूत है. चीन को रोकने के लिए क्वॉड देश भारत के साथ मिलकर काम करते हैं तो इस क्षेत्र में भारत को बड़ा लाभ मिल सकता है.

दक्षिण और पूर्वी चीन सागर को लेकर चीन बेहद आक्रामक है. भारत सदस्य देशों के साथ मिलकर चीन का मुकाबला कर सकता है. गौरतलब है कि चीन के साथ भारत का लंबे समय से सीमा विवाद भी चल रहा है. अगर क्वॉड देश साथ आएंगे तो भारत से टकराने से पहले चीन भी 10 बार सोचेगा.

इस इलाके में क्यों इंट्रेस्ट ले रहा है अमेरिका

दुनिया के व्यापार पर धीरे-धीरे चीन का दबदबा बढ़ता जा रहा है. चीन ऑफेंसिव बिजनेस मॉडल को अपना रहा है जो अमेरिका के लिए खतरा है. अमेरिका क्वॉड देशों के साथ मिलकर चीन की इसी आक्रामक कारोबारी रणनीति का मुकाबला करना चाहता है.

अमेरिका ग्लोबल स्तर परअपना दबदबा कायम रखना चाहता है. इसी वजह से वह अब चीन के साथ रणनीतिक प्रतिस्पर्धा को प्राथमिता दे रहा है. वहीं इस इलाके में भारत की मौजूदगी है और भारत की ताकत लगातार बढ़ रही है. अमेरिका यह अच्छी तरह से जानता है कि सैन्य ताकत के माध्यम से अगर कोई चीन को टक्कर दे सकता है तो वह है भारत. इसी वजह से अमेरिका भारत से दोस्ती बढ़ाकर चीन को घेरना चाहता है. भारत का भी इसमें इंट्रेस्ट है. अभी भारत ज्यादातर रूसी हथियारों पर निर्भर है, अगर अमेरिका से दोस्ती बढ़ती है तो चीन से मुकाबले को लिए भारत को आधुनिक अमेरिकी हथियार भी मिल सकते हैं. इसमें दोनों देशों का फायदा है.

क्वॉड के साथ अन्य देशों को भी फायदा

क्वॉड की मौजूदगी से हिंद महासागर से लेकर प्रशांत महासागर के बीच चीन का दबदबा घटेगा. इससे इस रीजन में रह रहे प्रत्येक देश को चीनी प्रभुत्व से बचाया जा सकेगा. ध्यान रहे कि सुपरपावर बनने की सनक में चीन पूरे साउथ चाइना सी पर अपना दावा ठोक रहा है. 

चीन की वजह से इस क्षेत्र के कई देशों की स्वतंत्रता पर खतरा मंडराने लगा है. ताइवान इसका ताजा उदाहरण है. यही वजह है कि अमेरिका भारत के साथ मिलकर क्वॉड के विस्तार पर भी काम कर रहा है. माना जा रहा है कि जल्द ही क्वॉड का विस्तार होगा और इसमें इस रीजन का एक प्रमुख देश साउथ कोरिया शामिल हो सकता है. साउथ कोरिया के क्वॉड में शामिल होने की खबर से चीन भी चिंतित है. 

क्वॉड से क्यों चिढ़ रहा है चीन

फिलहाल चीन की महत्वाकांक्षाएं चरम पर हैं. वह जल्द दुनिया का सुपरपावर बनना चाहता है. चीनी नेतृत्व का मानना है कि क्वॉड उसके रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा बन सकता है. उससे सबसे ज्यादा डर भारत से है. चीन को यह डर सता रहा है कि भारत अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर उसके लिए खतरा न बन जाए.  (इसको विस्तार से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

भारत और अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी से चीन घबराया हुआ है. ध्यान रहे कि चीन इंडो-पैसिफिक रीजन में 95 फीसदी संसाधनों का दोहन कर रहा है. अब उसे यह डर सता रहा है कि भविष्य वह अब ऐसा नहीं कर पाएगा. इससे वह बेहद परेशान है.

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