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कोर्ट में अब बास्टर्ड-वेश्या, बिन ब्याही मां जैसे शब्द नहीं बोले जाएंगे, Supreme Court ने तय की नई गाइडलाइन

Supreme Court Handbook: चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने महिलाओं के लिए आपत्तिजनक शब्दों के इस्तेमाल को रोकने की जरूरत महिला दिवस पर बताई थी. अब उन्होंने इस हैंडबुक के जरिये इसे हकीकत बना दिया है.

कोर्ट में अब बास्टर्ड-वेश्या, बिन ब्याही मां जैसे शब्द नहीं बोले जाएंगे, Supreme Court ने �तय की नई गाइडलाइन

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डीएनए हिंदी: Supreme Court- देश की अदालतों में अब ऐसे जेंडर स्टीरियोटाइप शब्दों का इस्तेमाल नहीं होगा, जो महिलाओं के लिए आपत्तिजनक साबित होते हैं. ना तो ऐसे शब्दों के जरिये दलीलें दी जाएंगी और ना ही इनका इस्तेमाल जज अपने फैसले में कर पाएंगे. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक जेंडर स्टीरियोटाइप कॉम्बैट हैंडबुक लॉन्च की है, जिसमें ऐसे शब्दों का उदाहरण और उनका रिप्लेसमेंट सुझाया गया है. इससे जजों और वकीलों को अपने फैसलों और दलीलों में जेंडर रिलेटिड अनुचित शब्दों के इस्तेमाल से बचाव में मदद मिलेगी. यह हैंडबुक भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (cji dy chandrachud) ने लॉन्च की. उन्होंने इस दौरान कहा कि इस हैंडबुक से जजों और वकीलों को यह समझने में आसानी होगी कि कौन से शब्द स्टीरियोटाइप (रूढ़िवादी) हैं और उनसे कैसे बचा जा सकता है.

पहले समझ लीजिए क्यों लाई गई है ये हैंडबुक

दरअसल CJI चंद्रचूड़ ने 8 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में महिला दिवस पर हुए एक इवेंट में जेंडर स्टीरियोटाइप शब्दों की बात की थी. उन्होंने कानूनी मामलों में महिलाओं के लिए आपत्तिजनक शब्दों के इस्तेमाल पर चिंता जताई थी और इसे रोकने की जरूरत बताई थी. उसी समय उन्होंने इसके लिए एक हैंडबुक भी जल्द रिलीज करने का वादा किया था. अब यह हैंडबुक रिलीज कर दी गई है. CJI ने बुधवार को हैंडबुक लॉन्च करते समय बताया कि इसमें उन शब्दों की लिस्ट तैयार की गई है, जिन्हें जेंडर रिलेटिड स्टीरियोटाइप कैटेगरी में रखा जा सकता है. इन शब्दों के इस्तेमाल से बचने की सलाह के साथ ही इनकी जगह इस्तेमाल होने वाले शब्द और वाक्य भी सुझाए गए हैं यानी यह एक तरीके से डिक्शनरी जैसी है. यह हैंडबुक वकीलों के साथ ही जजों के लिए भी है ताकि कोर्ट में दलील देने के साथ ही आदेश देने के मामले में भी यह प्रॉसिजर फॉलो हो सके.

30 पन्नों की हैंडबुक में हैं इस तरह के शब्द

इस हैंडबुक में 30 पन्नों पर यह पूरी जानकारी दी गई है कि पहले कोर्ट में यूज किए जा रहे कौन से शब्द गलत हैं, वे गलत क्यों हैं और इनसे कानून की परिभाषा कैसे बिगड़ सकती है. ऐसे शब्दों में अफेयर की जगह शादी से इतर रिश्ता, प्रास्टिट्यूट/हुकर या वेश्या की जगह सेक्स वर्कर, बास्टर्ड की जगह ऐसा बच्चा जिसके माता-पिता ने आपस में शादी नहीं की, बिनब्याही मां की जगह मां, चाइल्ड प्रास्टिट्यूट की जगह तस्करी करके लाया बच्चा जैसे शब्द सुझाए गए हैं. हैंडबुक में कर्तव्यनिष्ठ पत्नी, आज्ञाकारी पत्नी, फूहड़, स्पिनस्टर जैसे शब्दों का इस्तेमाल भी निषेध बनाया गया है.  

यहां क्लिक करके देखें जा सकते हैं कुछ ज्यादा प्रचलित शब्द

तीन महिला जजों ने तैयार की है हैंडबुक

इस हैंडबुक के कलकत्ता हाई कोर्ट की जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य की अध्यक्षता और रिटायर्ड जस्टिस प्रभा श्रीदेवन, जस्टिस गीता मित्तल, प्रोफेसर झूमा सेन की मौजूदगी वाली कमेटी ने तैयार किया है. 

'आलोचना नहीं जागरूकता है मकसद'

CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि इस हैंडबुक को तैयार करने का मकसद किसी फैसले की आलोचना करना नहीं बल्कि जागरूक करना है. यह बताना है कि कैसे अनजाने में रूढ़िवादिता को बढ़ावा दिया जा रहा है. रूढ़िवादिता क्या है और इससे क्या नुकसान है, यह बताना है. इन सबसे कोर्ट महिलाओं के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा के इस्तेमाल से बच सकेंगे. इस हैंडबुक को जल्द ही सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया जाएगा. उन्होंने कहा, रुढ़िवादी शब्दों का इस्तेमाल सांविधानिक के उस सिद्धांत के खिलाफ है, जिसमें हर व्यक्ति के लिए कानून को समान व निष्पक्ष रूप से लागू होने की परिकल्पना की गई. ऐसे तर्क और भाषा का उपयोग कोर्ट में व्यक्ति की विशिष्टता, स्वायत्तता और गरिमा को कमजोर करता है. 

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