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लेट-लतीफी की हद्द है! एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन पहुंचने में इस भारतीय ट्रेन ने लगा दिये साढ़े तीन साल

यह कहानी भारतीय रेलवे की है, जहां ट्रेनों का लेट होना उतना ही आम है जितना कि रोज सुबह का सूरज उगना. जापान में तो 1 मिनट की देरी पर रेलवे माफी मांगता है, लेकिन भारत में माफी? इस शब्द से दूर-दूर तक लेन लेना-देना नहीं है. हम जिस ट्रेन की बात कर रहे है वह तो पूरे साढ़े तीन घंटे लेट है.

लेट-लतीफी की हद्द है! एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन पहुंचने में इस भारतीय ट्रेन ने लगा दिये साढ़े तीन साल

Representational Image

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यह घटना नवंबर 2014 की है, जब विशाखापत्तनम से एक भारतीय रेलवे की मालगाड़ी, 1361 खाद के पैकेटों के साथ उत्तर प्रदेश के बस्ती स्टेशन के लिए रवाना हुई थी. इस मालगाड़ी को 1400 किमी की दूरी तय करके बस्ती पहुंचना था. इन खादों का ऑर्डर बस्ती के कारोबारी रामचंद्र गुप्ता ने दिया था, और उनकी डिलीवरी की जिम्मेदारी रेलवे पर थी. गाड़ी विशाखापत्तनम से समय पर रवाना हुई, लेकिन उसकी यात्रा किसी रहस्यमयी भूलभुलैया में बदल गई. जो हुआ, वह शायद भारतीय रेलवे के इतिहास में सबसे बड़े "लेट शो" में गिना जाएगा. जिस ट्रेन को अपने मंजिल तक पहुंचने में 42 घंटे लगने थे वह पूरे साढ़े तीन साल का समय लेट हो गई.

लापता हुई ट्रेन
उधर कारोबारी रामचंद्र गुप्ता जो बेसब्री से अपने खाद के पैकेट्स का इंतजार कर रहे थे, लेकिन मालगाड़ी का कुछ अता-पता नहीं था. उन्होंने रेलवे से संपर्क कियाऔर पूछा कि मालगाड़ी कब तक पहुंच रही है. तो रेलवे के पास इसका कोई जवाब नहीं था. गुप्ता जी ने रेलवे के कई चक्कर लगाए, कई शिकायतें दर्ज कीं, लेकिन कोई नतीजा निराशाजनक ही रहा. ट्रेन जैसे हवा में गायब हो गई थी. रेलवे अधिकारियों ने भी कई प्रयास किए, लेकिन यह ट्रेन एकदम लापता थी. ना तो कोई सुराग, ना ही कोई जानकारी. नार्थ ईस्ट रेलवे जोन के चीफ पीआरओ संजय यादव ने सफाई दी कि हो सकता है ट्रेन की बोगियों को बीमार (पुरानी) होने पर यार्ड में भेज दिया गया हो. लेकिन ये सिर्फ एक अनुमान था, कोई ठोस जानकारी नहीं थी.

ट्रेन का रहस्य
लंबी जांच-पड़ताल के बाद, 3.5 साल की देरी के बाद, जुलाई 2018 में वह रहस्यमयी ट्रेन आखिरकार बस्ती रेलवे स्टेशन पहुंची. जब यह ट्रेन बस्ती पहुंची, तो यह सिर्फ एक मालगाड़ी नहीं थी, बल्कि यह एक कहानी थी— भारतीय रेलवे की सबसे लेट ट्रेन की कहानी. जब ट्रेन के डिब्बे खोले गए, तो पाया गया कि उसमें रखे खाद के पैकेट्स पूरी तरह से बेकार हो चुके थे. 14 लाख रुपये का माल अब किसी काम का नहीं था. सबसे हैरान करने वाली बात यह थी कि इस ट्रेन के लेट होने का कारण आज तक भी किसी को पता नहीं चला.


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रेलवे का अनोखा अध्याय
इस किस्से ने साबित कर दिया कि भारतीय रेलवे में देरी का कोई मुकाबला नहीं. अगर कोई ट्रेन 3.5 साल लेट हो सकती है, तो बाकी ट्रेनें आराम से कह सकती हैं, "हम तो फिर भी टाइम पर ही हैं." यह कहानी भारतीय रेलवे की लेटलतीफी का एक ऐसा अध्याय है, जो शायद कभी भी भुलाया नहीं जा सकेगा. इस ट्रेन की लेटलतीफी ने न केवल रेलवे के रिकॉर्ड्स को तोड़ा, बल्कि हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि ट्रेन का इंतजार सिर्फ कुछ घंटों का नहीं, बल्कि सालों का भी हो सकता है.

 

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