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Indian Sugar: दुनिया को पसंद आई भारतीय चीनी की मिठास, 4 गुना बढ़ा निर्यात तो सुधरा किसानों का भी भुगतान

पिछले पांच साल के दौरान चीनी उत्पादन के क्षेत्र में कई बदलाव हुए हैं, जिसका सीधा असर चीनी मिलों की आय और किसानों के भुगतान पर हुआ है.

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Indian Sugar: दुनिया को पसंद आई भारतीय चीनी की मिठास, 4 गुना बढ़ा निर्यात तो सुधरा किसानों का भी भुगतान
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डीएनए हिंदी: गन्ने की फसल में सालों से सरकार समर्थित मूल्य यानी MSP तय है. इसके बावजूद गन्ना किसानों से लेकर चीनी मिलों तक को लाभ नहीं हो पा रहा था. चीनी मिलें घाटे में चलती थीं और किसानों को भी महीनों या कई बार एक से दो साल बाद फसल का भुगतान मिलता था. पिछले कुछ साल के दौरान वैश्विक स्तर पर बदली परिस्थितियों और गन्ने के रस से बनने वाले एथेनॉल के बढ़े उपयोग ने हालात बदल दिए हैं. अब जहां चीनी मिलें दुनिया में पहले से ज्यादा चीनी का निर्यात कर अपनी और देश, दोनों की आर्थिक स्थिति विदेशी मुद्रा जुटाकर सुधार रही हैं. वहीं, किसानों का भुगतान भी अब पहले से कम समय में हो रहा है. आइए जानते हैं कि पिछले पांच साल के दौरान चीनी क्षेत्र में क्या बदलाव हुए हैं.

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साल 2017-18 तक थे ऐसे हालात

लोकसभा में साल 2017-18 में सवाल पूछा गया कि चीनी मिलें बंद क्यों है? सरकार ने जवाब दिया कि देश में 740 मिलों में से 216 बंद पड़ी हैं. सरकार ने इसके कई कारण बताए, जिनमें प्लांट का साइज, नई मशीनरी का अभाव, गन्ने की कमी, महंगी ब्याज दर, गन्ने से कम चीनी बनना, प्रोफेशनल मैनेजमेंट का अभाव और जरूरत से ज्यादा लोगों का होना इत्यादि शामिल थे. सारी बात का लबोलुआब यही था कि चीनी मिल चलाना फायदे का सौदा नहीं है.  

इधर दुनिया में चीनी के दाम बढ़े, उधर बदली तस्वीर

दुनिया में चीनी का दाम भारत की चीनी से कम होता था. इसी वजह से यहां की चीनी निर्यात नहीं हो पाती थी. देश में भंडार भरे रहते थे. कंपनियां नुकसान में जाती थीं. किसानों को भुगतान लटकता रहता था. साल 2017 के अक्तूबर महीने में चीनी की कीमत London Sugar Futures में 390 अमेरिकी डॉलर थी. इसके बाद कोविड के दौर में ये कीमत घटकर 280 अमेरिकी डॉलर (USD) तक भी चली गई थी, लेकिन इसके बाद इनमें एकतरफा तेजी देखी गई. कीमत दोगुनी होकर 575 अमेरिकी डॉलर तक भी पहुंच गई थी. मौजूदा वक्त में इसकी कीमत 540 USD चल रही है. पिछले 5 साल में चीनी के दामों में करीब 38 प्रतिशत का उछाल आया है. 

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उत्पादन में लगातार बढ़ोतरी से नंबर-1 चीनी उत्पादक बना भारत  

मौजूदा समय में भारत दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश है. जहां पिछले कुछ साल में दुनिया के 5 सबसे बड़े उत्पादक देशों के उत्पादन में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई. इस बीच भारत का चीनी उत्पादन लगातार बढ़ता रहा है. 

 

चार गुना बढ़ा चीनी निर्यात, पर ब्राजील से पीछे

भारत ने पिछले पांच साल में चीनी का निर्यात चार गुना बढ़ाया है. साल 2017-18 में भारत का निर्यात 22 लाख मीट्रिक टन का था. वहीं, साल 2021-22 में ये चार गुना बढ़कर 88 लाख मीट्रिक टन हो गया है. इसके बावजूद निर्यात के मामले में भारत ब्राजील से बेहद पीछे है. ब्राजील ने साल 2022 में 357 लाख मीट्रिक चीनी का उत्पादन किया, जिसमें से करीब 257 लाख टन निर्यात कर दी गई.

एथेनॉल ब्लेडिंग का हो रहा है फायदा

ब्राजील में गन्ने का इस्तेमाल एथेनॉल उत्पादन के लिए सालों से किया जा रहा है. अब भारत में भी पेट्रोल में एथेनॉल को मिलाने के प्रयास कुछ सालों से तेज हुए हैं. मौजूदा समय में पेट्रोल में 10% एथेनॉल मिलाया जाता है. साल 2025 तक इसे बढ़ाकर 20% करने का लक्ष्य रखा गया है.  

कच्चे तेल के दामों में तेजी के कारण भी एथेनॉल ब्लेंडिग किफायती भी हो गई है. साल 2018-19 में जहां चीनी से 1% से भी कम एथेनॉल बनाया जाता था. साल 2021-22 तक आते आते देश की कुल उत्पादित चीनी से लगभग 10% एथेनॉल बनाया जा रहा है. 

चीनी मिलों का मुनाफा बढ़ा  

अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में बेहतर दाम और एथेनॉल ब्लेडिंग के कारण चीनी मिलों का मुनाफा बढ़ रहा है. मार्केट कैप के आधार पर देश की सबसे बड़ी चीनी कंपनी श्री रेणुका शुगर का साल 2018 में घाटा 2204 करोड़ रुपये का था, जो साल 2022 में कम होकर -137 करोड़ रुपये रह गया है. 

वहीं, इन्ही पांच सालों में EID Parry के मुनाफे में तीन गुना, बलरामपुर चीनी के मुनाफे में करीब दोगुना और त्रिवेणी इंजीनियरिंग का मुनाफा लगभग 3.5 गुना बढ़ा है.  

गन्ना किसानों का भुगतान हुआ बेहतर  

दुनिया के बाजारों में चीनी के दामों में कमजोरी के कारण चीनी मिलें भी घाटे में चलती थीं. चीनी का उत्पादन एक तय कीमत पर होता था. यहां पर MSP की व्यवस्था लागू थी, लेकिन उत्पादन घाटे में होता था. चीनी मिलें दबाव के कारण गन्ना खरीदती थीं. चीनी बनाकर कई बार तो किसानों को ही भुगतान के एवज में चीनी उठाने के लिए कहते थे. 

गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966 के तहत गन्ना दिए जाने के 14 दिन के भीतर पैसों का भुगतान हो जाना चाहिए. बावजूद इसके किसानों को भुगतान के लिए लोगों को महीनों इंतजार करना पड़ता था, लेकिन अब कंपनियों के आर्थिक स्थिति बेहतर होने के कारम गन्ने के बकाया का भुगतान पहले से बेहतर हुआ है. जहां  साल 2017-18 में जहां गन्ने का बकाया और भुगतान में 14 प्रतिशत का अंतर था. बकाए और भुगतान का ये अंतर अब साल 2021-22 में कम होकर 5.1% रह गया है.

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