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Statue of Equality: जानें कौन थे संत रामानुजाचार्य और 216 फीट ऊंची उनकी प्रतिमा में क्या है खास?

आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैदराबाद में करेंगे Statue of equality का उद्घाटन. आयोजित किया गया है खास कार्यक्रम.

Statue of Equality: जानें कौन थे संत रामानुजाचार्य और 216 फीट ऊंची उनकी प्रतिमा में क्या है खास?

statue of equality

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डीएनए हिंदी: आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैदराबाद में 'स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी' प्रतिमा का अनावरण करेंगे और इसे देश के नाम करेंगे. प्रधानमंत्री के आज के कार्यक्रम के मुताबिक शाम 5 बजे वह हैदराबाद के सीमावर्ती इलाके मुचिन्ताल में 'स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी' का अनावरण करेंगे. इससे पहले जानते हैं क्या हैं 'स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी' और इससे जुड़ी खास बातें-

सन् 2014 में आया था विचार
216 फीट ऊंचा 'स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी' 11वीं शताब्दी के भक्ति संत श्री रामानुजाचार्य की याद में बनाया गया है. रामानुजाचार्य ने आस्था और जाति समेत जीवन के सभी पहलुओं में समानता के विचार को बढ़ावा दिया था. सन् 2014 में  रामानुजाचार्य आश्रम के श्री चिन्ना जीयार को रामानुजाचार्य की 1000वीं जयंती के उपलक्ष्य में ऐसी यादगार प्रतिमा बनाने का विचार आया था. इसी के बाद इस पर काम शुरू हुआ. रामानुजाचार्य ट्रस्ट की तरफ से ही इस प्रतिमा को 'स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी' का नाम दिया गया है. 

पंचधातु से बनी है प्रतिमा
श्री चिन्ना जीयार स्वामी आश्रम के 40 एकड़ के विशाल परिसर में 216 फीट की यह प्रतिमा लगाई गई है. इसे बनाने की कुल लागत 1,000 करोड़ रुपये बताई जा रही है. यह प्रतिमा 'पंचधातु' से बनी है, जिसमें सोना, चांदी, तांबा, पीतल और जस्ता का एक संयोजन है और यह दुनिया में बैठी अवस्था में सबसे ऊंची धातु की प्रतिमाओं में से एक है.

यह प्रतिमा 54-फीट ऊंचे आधार भवन पर स्थापित है, जिसका नाम 'भद्र वेदी' है. इसमें वैदिक डिजिटल पुस्तकालय और अनुसंधान केंद्र, प्राचीन भारतीय ग्रंथ, एक थिएटर, एक शैक्षिक दीर्घा हैं, जो संत रामानुजाचार्य के कई कार्यों का विवरण प्रस्तुत करते हैं. 

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कौन थे रामानुजाचार्य?
सन् 1017 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में जन्मे संत रामानुजाचार्य एक महान दार्शनिक और समाज सुधारक थे. उन्होंने भक्ति आंदोलन को पुनर्जीवित किया. बताया जाता है कि वह 120 साल तक जीवित रहे और उन्होंने पूरे देश की यात्रा की. वह ऐसे पहले व्यक्ति माने जाते हैं, जिन्होंने सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, आर्थिक और लैंगिक समानता की बात की थी. उन्होंने शिक्षा को सभी के लिए समान बनाया औऱ वासुदेव कुटुंबकम की धारणा भी उन्होंने ही शुरू की थी.

यही नहीं उन्होंने ही मंदिर में हर धर्म, जाति और वर्ग के लोगों का आना सुनिश्चित किया था. इससे पहले छोटी जाति के लोगों को मंदिर में नहीं आने दिया जाता था. उन्होंने उस समय ही ऐसे दर्शन स्थापित किए जिनमें प्रकृति के संसाधनों हवा, पानी औऱ मिट्टी के संरक्षण की अपील की गई. कहा जाता है कि वह कबीर और मीराबाई जैसे कवियों के लिए भी प्रेरणा रहे. 

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