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Dawoodi Bohra Community: क्या है दाऊदी बोहरा समुदाय की बहिष्कार प्रथा? सुप्रीम कोर्ट तक क्यों पहुंचा मामला?

What is Excommunication of Dawoodi Bohra Community : पिछले 400 सालों से इस समुदाय के धर्मगुरु भारत से ही बनाया जा रहा है.

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Dawoodi Bohra Community: क्या है दाऊदी बोहरा समुदाय की बहिष्कार प्रथा? सुप्रीम कोर्ट तक क्यों पहुंचा मामला?
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डीएनए हिंदीः दाऊदी बोहरा समुदाय (Dawoodi Bohra Community) में लागू बहिष्कार प्रथा का मामला सुप्रीम कोर्ट में है. पिछले दिनों इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की गई. पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में है. वह इस बात की पड़ताल करेगा कि क्या दाऊदी बोहरा समुदाय में बहिष्कार की प्रथा संविधान के तहत 'संरक्षित' है या नहीं. पीठ को बताया गया कि बंबई बहिष्कार रोकथाम कानून 1949 रद्द कर दिया गया है और महाराष्ट्र सामाजिक बहिष्कार से लोगों का संरक्षण (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2016 लागू हो गया है. इस मामले में अगली सुनवाई 11 अक्टूबर को होगी.  

दाऊदी बोहरा समुदाय कौन है?
इस समुदाय के लोग शिया मुस्लिम कम्युनिटी के सदस्य होते हैं. इस समुदाय के लोगों का एक लीडर भी होता है. इसे अल-दाइ-अल-मुतलक कहा जाता है. पिछले करीब 400 सालों से भारत से ही इसका धर्मगुरु चुना जा रहा है. वर्तमान में इस समुदाय के 53वें धर्मगुरु डॉ. सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन साहब हैं. इस समुदाय के लोगों की विश्वभर में संख्या 10 लाख से भी अधिक है. इन समुदाय के अधिकांश लोग व्यापारी होते हैं. भारत में यह महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में अधिकांश संख्या में पाए जाते हैं. इस समुदाय के लोग पाकिस्तान, दुबई, ब्रिटेन, अमेरिका, सऊदी और ईराक में भी रहते हैं. दाऊदी बोहरा समुदाय मुख्य रूप से इमामों के प्रति अपना अकीदा रखता है. दाऊदी बोहराओं के 21 वें और अंतिम इमाम तैयब अबुल कासिम थे. इनके बाद 1132 से आध्यात्मिक गुरुओं की परंपरा शुरू हो गई जो दाई अल मुतलक सैयदना कहलाते हैं. इन्हें सुपर अथॉरिटी माना गया है और इनके व्यवस्था में कोई भीतरी और बाहरी शक्ति दखल नहीं दे सकती. 

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सामाजिक बहिष्कार की क्या है प्रथा?
दरअसल इस समुदाय का एक मुखिया होता है. इसकी तुलना पोप और शंकराचार्य से की जा सकती है. इनके आदेश-निर्देश को चुनौती नहीं दी जा सकती है. वो दुनिया के किसी भी कोने में रहें उनके आदेशों को पालन समुदाय के सभी लोगों को करना जरूरी होता है. दाऊदी बोहरा समुदाय के लोगों के लिए एक पहचान पत्र भी जारी किया जाता है. अगर समुदाय को कोई सदस्य धर्मगुरु के आदेशों का पालन नहीं करता है तो उसका बहिष्कार किया जाता है. ऐसा व्यक्ति को दाऊदी बोहरा समाज से जुड़ी मस्जिद, कब्रिस्तान, मदरसे, सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों में शामिल होने की अनुमति नहीं होती. इसे ही बहिष्कार प्रथा के नाम से जाना जाता है. 

1949 में बना कानून
1949 में बंबई बहिष्कार रोकथाम कानून लाया गया था. इस कानून में अलग-अलग समुदायों में चली आ रही कुप्रथाओं को रोकने की मांग की गई थी. इस कानून को इसलिए लाया गया जिससे लोगों को उनके अधिकारों से वंचित ना रखा जाए. इस कानून को लेकर कई समुदाय के लोगों ने कोर्ट का रुख किया था. बाद में दाऊदी बोहरा समुदाय के सदस्य भी मामले को लेकर कोर्ट चले गए. 

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सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला
दाऊदी बोहरा समुदाय के लोग इस मामले को लेकर 1962 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. यहां तर्क दिया गया कि समाज में बहिष्कार का मामला धार्मिक मामलों से संबंधित नहीं है. इस दंडनीय अपराध ना बनाने की भी मांग की गई. सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने 1962 में फैसला सुनाया था कि बंबई बहिष्कार रोकथाम कानून 1949 संविधान के अनुरूप नहीं है. इस कानून को संविधान में अनुच्छेद 25 के तहत धर्म से जुड़े मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी बताया गया. अब तक बार फिर 2016 के कानून की धारा तीन में समुदाय के एक सदस्य का 16 प्रकार से सामाजिक बहिष्कार किए जाने का उल्लेख हुए मामला सुप्रीम कोर्ट ले जाया गया.  

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