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Budget 2022: कृषि सेक्टर को मिल सकती है राहत, लाई जा सकती है नई स्कीम

अनुमान है कि इस बार के आम बजट में कृषि क्षेत्र के लिए कुछ खास बदलाव होंगे. क्या हो सकते हैं वे बदलाव? जानिए.

Budget 2022: कृषि सेक्टर को मिल सकती है राहत,  लाई जा सकती है नई स्कीम
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डीएनए हिंदी: 3 कृषि कानूनों को वापस लिए जाने के बाद कृषि क्षेत्र में निजी निवेश लाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गई है. अगर यही हालात रहे तो कृषि सुधारों की रफ्तार धीमी हो सकती है. साथ ही सरकारी खजाने पर बोझ भी बढ़ सकता है. कृषि, फर्टिलाइजर और फूड सब्सिडी का बढ़ता बोझ आम बजट पर अपना असर दिखा सकता है. इस वजह से अनुमानतः सरकार कृषि सेक्टर को राहत देने के तरीके में बदलाव कर सकती है. 

क्या हो सकती है खेती-किसान के लिए नई स्कीम? 

इन बदलावों में परंपरागत खेती की जगह मांग आधारित कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए विविधीकरण की नई स्कीम लाई जा सकती है. फसलों का उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने वाली राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (Remunerative Approach for Agriculture and Allied sector Rejuvenation ) के साथ दलहन और तिलहन की खेती के लिए चलाए जा रहे मिशन को आगे बढ़ाया जा सकता है. 

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कृषि और खाद्य क्षेत्र में दी जा रही सब्सिडी बनी रहेगी पर सब्सिडी के तौर-तरीके को बदलने की शुरुआत  इस बजट से हो सकती है. हालांकि इन तरीकों में बदलाव के बावजूद कृषि क्षेत्र को बड़े सरकारी मदद की जरुरत होगी. कितनी और क्या हैं वे जरुरतें, जानते हैं - 

  • MSP के लिए करीब पौने दो लाख करोड़ रुपये 
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत ढाई लाख करोड़ रुपये 
  • पीएम-किसान निधि के लिए 80 हजार करोड़ रुपये 
     

खेती के आधुनिक तौर तरीकों की आवश्यकता पर बल 

कृषि क्षेत्र की व्यापकता को देखते हुए यह जरुरी है कि खेती के आधुनिक तौर तरीके अपनाए जाएं. इन नए तौर-तरीकों में बायो टेक्नोलाजी की मदद से सीड टेक्नोलाजी अपनाकर बिना कीटनाशक और न्यूनतम फर्टिलाइजर से अधिकतम पैदावार देने वाली तकनीक शामिल है. 

हालिया जानकारियों के अनुसार परंपरागत खेती की विकास दर लगातार कम रही है. इसके मुकाबले अकेले बागवानी वाली फसलों से बेहतर आय और मुनाफा दर्ज किया गया है. इस क्षेत्र को बढ़ावा देने से फसलों के विविधीकरण (diversification) को मदद मिलेगी. 
कृषि विकास दर बेहतर करने के लिए पशुधन विकास, डेयरी जैसे क्षेत्रों का दायरा बढ़ाना भी जरुरी है. परंपरागत खेती के साथ आधुनिक तौर-तरीकों और अन्य सहयोगी क्षेत्रों का मेल किसान और सरकार दोनों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है.

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